सोमवार, 23 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. पुस्तक-समीक्षा
  4. Shakuni : master of the game
Written By Author जितेंद्र जायसवाल

शकुनि: मास्टर ऑफ़ दी गेम

क्या शकुनि बेहतर पौराणिक छवि का हकदार है?

शकुनि: मास्टर ऑफ़ दी गेम - Shakuni : master of the game
आशुतोष नाडकर की किताब 'शकुनि: मास्टर ऑफ़ दी गेम' की चर्चा इन दिनों इंटरनेट पर खूब हो रही है। सोशल मीडिया पर हर दिन एक-दो समीक्षाएं तो नज़र आ ही जाती हैं। मैंने भी हफ़्तों पहले अमेज़न से किताब मंगवाकर रख ली, लेकिन दैनिक व्यस्तताओं के चलते इसके रसास्वादन का समय टलता ही जा रहा था। आखिरकार बीते सप्ताहांत दोपहर विश्राम के समय का सदुपयोग करते हुए मैंने किताब पढ़ना शुरू की। आशुतोष की किताब 'शकुनि: मास्टर ऑफ़ द गेम' का लेखन इतनी सजीव है कि उसे एक बार में पूरी पढ़े बिना रहा नहीं गया।
 
बहरहाल, लौटते हैं किताब के कथानक पर। वैसे तो पौराणिक कथाओं और पात्रों पर पहले भी काफी कुछ लिखा जा चुका है। मेरे विचार से रामायण, महाभारत या गीता की रचना के बाद से ही उनकी कहानी और पात्रों को लेकर लेखन का औपचारिक/अनौपचारिक क्रम शुरू हो गया था और अब तक हज़ारों किताबें लिखी जा चुकी हैं। लेकिन आशुतोष की किताब उन सभी से कुछ अलग नज़र आती है। इसका कारण है जानदार लेखन और विषय के बारे में एक बिल्कुल ही नया दृष्टिकोण।
 
जैसा कि नाम से ही कुछ-कुछ आभास होने लगता है,  'शकुनि: मास्टर ऑफ़ द गेम' का लेखन महाभारत के कुटिल पात्र शकुनि को केंद्र में रखकर किया गया है। शकुनि को महाभारत में एक खलनायक की छवि प्राप्त है और उसे महाभारत के युद्ध और कौरवों के सर्वनाश का कारण माना जाता है। पौराणिक लेखन में समय के साथ बदलाव हुआ है और आशुतोष की किताब का सबसे बड़ा आकर्षण उसकी लेखन शैली ही है जो पाठक को बांधकर रखती है। पूरी सामग्री एक-दूसरे से इतनी जुड़ी हुई है कि उसे बीच में छोड़ने से क्रम के अधूरेपन का एहसास होता है। 
 
किताब में महाभारत के पूरे घटनाक्रम को शकुनि की नज़र से प्रस्तुत किया गया है जो दुर्योधन का मामा और गांधारी का भाई है। जिसने भी टेलीविज़न पर महाभारत देखी है या यदा-कदा इस बारे में कहीं कोई कहानी सुनी है, वे सभी शकुनि को महभारत का सबसे बड़ा खलनायक मानते हैं। शकुनि की छवि लोगों की नज़र में वही है जो रामायण में मंथरा के लिए है। किताब इस प्रश्न का उत्तर देती है कि क्या शकुनि इसी छवि के लायक है? क्या उसका पक्ष भी नहीं सुना जाना चाहिए कि उसने वह पूरी व्यूह रचना क्यों की? क्या ये उसका एक भाई के रूप में अपनी बहन के प्रति प्रेम नहीं था?
 
किताब में शकुनि ने बड़ी खूबसूरती से इन सभी सवालों का जवाब दिया है। शकुनि कहते हैं कि अगर एक भाई के रूप में उन्होंने अपने प्राण देकर भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है तो उसमें गलत क्या है? महाभारत में काम के मोह में किसी ने अपने वंश को दांव पर लगाया, किसी ने स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसका हरण किया, किसी ने जुएं में अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया, किसी ने अपने नन्हे शिशु को नदी में प्रवाहित कर दिया। शकुनि ने तो ऐसा कुछ नहीं किया, फिर भी बाकी सभी को नायक क्यों माना जाता है और शकुनि को खलनायक क्यों?
 
महाभारत की कई घटनाओं का किताब में तार्किक विश्लेषण किया गया है जिनमें शकुनि अपनी जगह सही प्रतीत होते हैं। किताब के समापन अंश में शकुनि पाठकों से सवाल करते हैं कि चलिए यह मान लेते हैं कि कौरवों और शकुनि ने छल-कपट का सहारा लिया, लेकिन जो विदुर ने किया या श्रीकृष्ण ने किया वह भी धर्मसंगत कहा जा सकता है? क्या वो भी एक तरह का छल-कपट नहीं था? क्या भीष्म पितामह को मारने के लिए श्रीकृष्ण का एक अर्द्धस्त्री को आगे कर देना छल नहीं था? अगर नहीं, तो फिर उनकी योजनाओं को नीति या लीला का नाम क्यों दिया गया है और मेरी योजना को धूर्तता क्यों?
 
इसी तरह के सोचने पर मज़बूर करने वाले कई सवालों के साथ किताब समाप्त होती है। मनमोहक लेखन और तार्किक नज़र ने किताब को बेहद जानदार बना दिया है। आशुतोष को बधाई।