चेतना भाटी का हाल में प्रकाशित उपन्यास चंद्रदीप सहज स्त्री भावनाओं की अभिव्यक्ति है। उपन्यास बहुत बड़े कैनवास पर नहीं रचा गया है किंतु उसमें भी जिस तरह से विभिन्न भावनाओं को दर्शाया गया है वह सहज ही जेन ऑस्टीन की शैली को याद दिला देता है।
एक साधारण स्त्री पूनम और उनके पति सुधीर का जीवन कितने विचार और पहलू समेटे हुए होता है यह उनकी रचना से जाना जा सकता है। उनकी कहानी की नायिका एक घरेलू स्त्री है, किंतु वह चेतना संपन्न है, अन्वेषी हैं , सीखने की ललक लिए अपने आस पास के परिदृश्य का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना जानती है। वह अपने में खोई रहने वाली किंतु फिर भी आस पास के जगत की जानकारी रखने वाली मृदुभाषा महिला है।
पति की बड़ी नौकरी, बच्चों के विदेश में बसने से आये अकेलेपन का बखूबी चित्रण है इस उपन्यास में।
उपन्यास अपने साथ साथ प्रकृति के प्रति, जीवों के प्रति नायिका के उदार स्वरूप को भी बताता है । घर के पालतू कुत्तों के व्यवहार के अंतर को वे बारीकी से समझती हैं और उसमें नर-मादा के व्यवहार को देखती हैं। प्रकृति के हर बदलाव से वो वाक़िफ़ है। समाज के भी। नई पीढ़ी के घटते संस्कार की चिंता भी उसे होती है तो अमीरी के दिखावे पर भी उनकी नज़र है।
छोटे छोटे वाक्य और घटनाओं का विश्लेषण करती लेखिका की लेखनी एक स्त्री मन से सभी घटनाओं को देखती है। काम वाली बाई और उसके संघर्ष, चतुराई से भी वह बहुत सरस तरीके अपने पाठकों का परिचय करवाती है। अकेले होते बुजुर्ग, देश की युवा प्रतिभा का विदेश पलायन,समाज में स्त्री की स्थिति, घरेलू महिला के द्वंद्व, उसकी अपनी पहचान की तलाश सब कुछ है इस उपन्यास में।
प्रगतिशीलता की बात करती स्त्री है, देश विदेश के परिदृश्य में, पीढ़ियों की विचारधारा में अंतर का सुंदर चित्रण है। इतिहास के साथ अपने रोचक संवाद में बदलते समय का चित्रण है तो नई तकनीक और आभासी क्रांतियों व दिखावे की बात भी वे स्वीकार करती हैं।
लेकिन इन सबके बीच अपने लिए कोई विशिष्ट पहचान न हो पाने का दर्द उनके मन में चलता रहता है। एक गृहिणी को केवल अपने लिए किसी वस्तु को खरीदने में कितनी सफाई देनी पड़ती है यह देख बहुत सी सरल स्त्रियों का चेहरा आंखों के आगे घूम गया जिनका पूरा जीवन परिवार को समर्पित हुआ लेकिन अपने लिए कुछ चाहने में वे स्वयं अपराध बोध महसूस करती हैं और कभी हिम्मत कर कह दे कि यह हमें चाहिए तो क्यों - किसलिए के प्रश्न उनके सामने आ खड़े होते हैं।
अंत में किसी तरह अपने पति को मना वे अपने लिए एक कंप्यूटर खरीदने में कामयाब हो जाती हैं और यहाँ से एक नई यात्रा का प्रारंभ होता है। सोशल मीडिया से जुड़ कर वे दुनिया जहान की बातें जानती हैं, अपने विचार साझा करती हैं और आभासी दुनिया के मित्र बनाती हैं।
उनके विचारों को एक मंच मिलता है, वे अपने खींचे फ़ोटो, अपने इर्द गिर्द होनेवाली प्रकृति और जीवों की हलचल से दुनिया को वाक़िफ़ करवाती हैं, इसी बहाने उनके अकेलेपन को बाँटने का एक माध्यम उनके हाथ लगता है जिसका वे कुशलता से दोहन भी करती हैं। वह कहती भी है कि मेरा दायरा छोटा है, सीमित है तो क्या, मैं उसमें ही अपने लिए आसमान चुन लूंगी।
यह स्त्री का अपने लिए बनाया एक द्वीप हो जाता है, जो केवल उसका है, जहाँ वह अपनी प्रसंशा और अपने महत्व को जानने लगती है, खुश रहने लगती है। पति को अंत में भी जन्मदिन याद न रहने पर जब वह दुखी होती हैं और देखती हैं कि सारे रिश्तेदार और दोस्त सोशल मीडिया पर अनेक बधाई देते हैं तो वह उसी से खुश हो जाती हैं।
उसे दुनिया में इतने जानने वाले लोग है यह अनुभूति ही उन्हें खुशी दे देती है।
दरअसल यह हमारे आस पास रहने वाली तमाम ऐसी महिलाओं की कहानी है जिन्हें कभी संज्ञान में नहीं लिया जाता, चेतना संपन्न इन महिलाओं ने अपने परिवार के लिए अपनी स्वयं की इच्छाओं और प्रतिभा को दबा दिया। दुःख तब होता है जब परिवार भी उनके इस त्याग से , उनकी प्रतिभा से अनभिज्ञ रह उनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक नहीं होते। किंतु उपन्यास की नायिका अपनी उम्र को आड़े न आने देकर नये सिरे से अपने लिए दुनिया रचती है, क्योंकि उसे भी प्रसन्न रहने और अपनी कला, प्रतिभा के लिए मंच चुनने का अधिकार है। चंद्रदीप एक काल्पनिक लोक तो है, प्राप्त होना कठिन किंतु स्त्री अपने प्रयास से अपना वह दीप पा सकती है।
एक गृहिणी के मन की भावना से सजा यह सहज सरल भाषा शैली में लिखा उपन्यास आदरणीय चेतना जी की उत्कृष्ट रचना है जिसमें विभिन्न सामाजिक विषयों पर उनकी पकड़ और उसका सुंदर विश्लेषण देखने को मिलता है। एक सुंदर कृति के लिए उन्हें साधुवाद।
पुस्तक - चंद्रदीप ( उपन्यास )
लेखक - चेतना भाटी
मूल्य - रू . 300 / --
प्रकाशक - अंश प्रकाशन
X/3282, स्ट्रीट नं.4 , रघुबरपुरा नं. 2,
गाँधी नगर , दिल्ली - 110031
समीक्षक : डॉ गरिमा संजय दुबे
18 बी, वंदना नगर एक्स.
इंदौर, म. प्र.