हर बंदा खुश रहना चाहता है। इसके लिए वह मीठे पलों की तलाश करता है। कई बार जीवन में खुशनुमा पल आते हैं मगर मूड, अवसाद, विद्वेष आदि कारकों के हावी हो जाने से ठीक तरह से खुश होना भी दुश्वार हो जाता है।
दूसरी ओर जब हम जीवन में पल-पल को जीने का निर्णय लेते हैं तो अपनी खुशी के लिए खुद ही जिम्मेदार हो जाते हैं और यहीं से हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
खुशी क्या है? अवसाद, मूड आदि कारक उसे कैसे प्रभावित करते हैं? इन कारकों पर कैसे जीत पाई जा सकती है? किस तरह व्यायाम, संयम, संगीत, नृत्य और संतुलित भोजन से जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है? इन्हीं सब बातों को समेटते हुए लेखिका निर्मला भुराड़िया ने खुशी का विज्ञान की रचना की है।
इस पुस्तक में खुशी जैसे अनूठे विषय को बहुत सरलता से पाठकों के समक्ष परोसा गया है। खुश रहने के फायदे बताते हुए अवसाद, मूड, एंग्जाइटी डिसऑर्डर, एनेरोक्सिया नर्वोसा और बूलिमिया जैसी बीमारियों पर समग्रता से प्रकाश डालते हुए निर्मलाजी ने इनके समुचित उपचार पर जोर दिया है।
खुशी क्या है? अवसाद, मूड आदि कारक उसे कैसे प्रभावित करते हैं? इन कारकों पर कैसे जीत पाई जा सकती है? किस तरह व्यायाम, संयम, संगीत, नृत्य और संतुलित भोजन से जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है....
पुस्तक में बड़े ही दिलचस्प अंदाज में छोटी-छोटी िकन्तु महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आती है । जैसे ह्रदय रोगी यह ध्यान रखें कि उनका ह्रदय सबसे अधिक तनाव शाम पाँच बजे और सबसे कम तनाव सुबह नौ बजे झेल सकता है ।
दाँतों में दर्द सर्वाधिक दोपहर तीन बजे से रात आठ बजे के बीच महसूस हो सकता है। अत: दोपहर से पहले डेंटिस्ट के यहाँ जाना एक अच्छा सुझाव हो सकता है।
एलर्जी के प्रति संवेदनशीलता दिन के बजाय रात में अधिक होती है। वहीं अस्थमा के अटैक की संभावनाएँ रात्रि ग्यारह बजे या सुबह छह बजे अधिक बढ़ जाती है ।
लेखिका ने बड़े ही पते की बात यह कही है कि सबसे पहले व्यक्तिगत अंदरूनी लय को पहचानें । उसी के हिसाब से अपनी देखभाल और नियम का चार्ट बनाए।
स्नेह से लेकर अच्छी बुद्धि तक और अवसाद से लेकर रोने की इच्छा तक सबकुछ चक्रीय बताते हुए लेखिका ने मानों सही मायने में खुश रहने का मंत्र दे दिया है।
संगीत और नृत्य को वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बताते हुए लेखिका ने उसे देह, मस्तिष्क से भी ऊपर आत्मा को सराबोर करने वाला बताया है। दोनों मन को प्रफुल्लित करते हैं, प्रफुल्लित लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र बेहतर काम करता है और वे बीमार होने पर भी जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं।
लेखिका ने बड़े ही पते की बात यह कही है कि सबसे पहले व्यक्तिगत अंदरूनी लय को पहचानें । उसी के हिसाब से अपनी देखभाल और नियम का चार्ट बनाए....
पुस्तक में पैट थैरेपी का जिक्र भी किया गया है। इस थैरेपी में पालतू पशुओं को स्कूलों, अस्पतालों और मनोचिकित्सालयों आदि में रहने वालों से मिलवाया जाता है। इससे पशुओं को पुचकार मिलती है और मरीजों को नि:स्वार्थ अपनत्व का स्पर्श।
अपनापन, आपसी साझेदारी, दोस्तों से गप्पे लड़ाना, दिवास्वप्न आदि छोटी-छोटी मगर महत्वपूर्ण बातों का भी खुशी से गहरा संबंध होता है।
पुस्तक सरल और सुव्यवस्थित है। वैज्ञानिक कसौटियों पर खरी उतरती यह पुस्तक आम आदमी की समझ को भी आकर्षित करती है।
उल्लास का पैगाम देती यह पुस्तक आम आदमी को जीवन की बोझिलता से दूर रहकर खुश रहने के लिए प्रेरित करती है। आनंदित रहने के लिए दूसरों की निर्भरता को नकारते हुए यह भीतर से प्रफुल्लित होने के लिए तैयार करती है।
पुस्तक ना सिर्फ पठनीय है बल्कि हर माह स्वयं के आँकलन के लिए पठनीय है। जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए पठनीय है।
पुस्तक : खुशी का विज्ञान लेखिका : निर्मला भुराड़िया प्रकाशक : कल्याणी शिक्षा परिषद्, नई दिल्ली मूल्य : 150 रुपए