मंगलवार, 17 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. सेहत
  3. सेहत समाचार
  4. indian institute of technology mandi
Written By

हिमालयी पौधे ‘बुरांश’ में मिले एंटी-वायरल फाइटोकेमिकल्स

हिमालयी पौधे ‘बुरांश’ में मिले एंटी-वायरल फाइटोकेमिकल्स - indian institute of technology mandi
नई दिल्ली, 17 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): भारतीय शोधकर्ताओं के एक नये अध्ययन में ‘बुरांश’ नाम से प्रसिद्ध हिमालयी क्षेत्र में पाये जाने वाले पौधे रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम (Rhododendron arboreum) की फाइटोकेमिकल युक्त पंखुड़ियों में वायरल गतिविधि रोकने और वायरस से लड़ने के गुणों का पता चला है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग ऐंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन संयुक्त रूप से किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ‘बुरांश’ की पंखुड़ियों में पाये जाने वाले फाइटोकेमिकल्स की पहचान होने से कोविड-19 संक्रमण के इलाज की संभावना उभरकर आयी है।


हिमालयी बुरांश की पंखुड़ियों का सेवन स्थानीय आबादी स्वास्थ्य संबंधी कई लाभों के लिए विभिन्न रूपों में करती है। आईआईटी, मंडी और आईसीजीईबी के वैज्ञानिकों ने वायरस गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से शोध में विभिन्न फाइटोकेमिकल्स युक्त अर्क का वैज्ञानिक परीक्षण किया। उन्होंने बुरांश की पंखुड़ियों से फाइटोकेमिकल्स निकाले और इसके वायरस-रोधी गुणों को समझने के लिए जैव रासायनिक परीक्षण और कम्प्युटेशनल सिमुलेशन आधारित अध्ययन किये।

कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस की प्रकृति को समझने और इसका संक्रमण रोकने के अभिनव तरीकों की खोज निरंतर जारी है। पूरी दुनिया वैक्सीन के अतिरिक्त दवाओं की खोज में भी जुटी है, जो मनुष्य के शरीर को वायरस के आक्रमण से बचाने में सक्षम हों। ये दवाएं रसायनों का उपयोग कर शरीर की कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर्स से जुड़ती हैं और वायरस को अंदर प्रवेश करने से रोकती हैं, या फिर सीधे वायरस पर असर करती हैं और शरीर के अंदर वायरस की संख्या बढ़ने से रोकती हैं।

डॉ. श्याम कुमार मसकपल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस, आईआईटी मंडी ने बताया, “उपचार के लिए विभिन्न एजेंटों का अध्ययन किया जा रहा है। उनमें पौधों से प्राप्त रसायन - फाइटोकेमिकल्स से विशेष उम्मीद है, क्योंकि उनके बीच गतिविधि में सिनर्जी है और प्राकृतिक होने के चलते इनके विषाक्त होने की आशंका कम होती है। हम बहु-विषयी दृष्टिकोण से हिमालयी वनस्पतियों से संभावित अणुओं की तलाश कर रहे हैं।’’

इस अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता, डॉ रंजन नंदा, ट्रांसलेशनल हेल्थ ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने बताया, “हमने हिमालयी वनस्पतियों से प्राप्त रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम पंखुड़ियों के फाइटोकेमिकल्स का प्रोफाइल तैयार किया और उसका परीक्षण किया है, जिसमें कोविड वायरस से लड़ने की उम्मीद दिखी है।’’



आईआईटी, मंडी द्वारा इस संदर्भ में जारी वक्तव्य में बताया गया है कि इन पंखुड़ियों के गर्म पानी के अर्क में प्रचुर मात्रा में क्विनिक एसिड और इसके डेरिवेटिव पाए गए है। मोलिक्यूलर गतिविधियों के अध्ययनों से पता चला है कि ये फाइटोकेमिकल्स वायरस से लड़ने में दो तरह से प्रभावी हैं। ये मुख्य प्रोटीएज से जुड़ जाते हैं, जो (प्रोटीएज) एक एंजाइम है, और वायरस का रेप्लिका बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये मानव एंजियोटेंसिन-परिवर्तित एंजाइम-2 (एसीई-2) से भी जुड़ता है, जो होस्ट सेल में वायरस के प्रवेश की मध्यस्थता करता है।

शोधकर्ताओं ने प्रायोगिक परीक्षण कर यह भी दिखाया कि पंखुड़ियों के अर्क की गैर-विषाक्त खुराक से वेरो ई-6 कोशिकाओं में कोविड का संक्रमण रुकता है (ये कोशिकाएं आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया संक्रमण के अध्ययन के लिए अफ्रीकी हरे बंदर के गुर्दे से प्राप्त होती हैं), जबकि खुद कोशिकाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

डॉ. सुजाता सुनील, वेक्टर बोर्न डिजीज ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग ऐंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने बताया, “फाइटोकेमिकल प्रोफाइलिंग, कंप्यूटर सिमुलेशन और इन विट्रो एंटी-वायरल परीक्षण के मेल से यह सामने आया है कि खुराक के अनुसार बुरांश की पंखुड़ियों का अर्क  कोविड-19 वायरस को बढ़ने से रोकता है।’’

ये निष्कर्ष रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम से विशिष्ट जैव सक्रिय दवा (कैंडिडेट), कोविड-19 के मद्देनजर इन विवो और चिकित्सीय परीक्षणों के उद्देश्य से अग्रिम वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं। शोध टीम की योजना बुरांश की पंखुड़ियों से प्राप्त विशिष्ट फाइटोकेमिकल्स से कोविड-19 का रेप्लिकेशन रोकने की सटीक प्रक्रिया समझने की है।

यह अध्ययन डॉ श्याम कुमार मसकपल्ली, डॉ. रंजन नंदा, और डॉ सुजाता सुनील के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन के अन्य शोधकर्ताओं में, डॉ. मनीष लिंगवान, शगुन, फलक पाहवा, अंकित कुमार, दिलीप कुमार वर्मा, योगेश पंत, श्री लिंगराव वी.के. कामतम और बंदना कुमारी भी शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘बायोमोलेक्यूलर स्ट्रक्चर ऐंड डायनेमिक्स’ में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)
ये भी पढ़ें
गणतंत्र दिवस पर हिन्दी कविता: करें तिरंगे की पूजा