गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025
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Written By WD

बेशरम समय शरमा ही जाएगा

बेशरम समय शरमा ही जाएगा -
- नीर

ND
बूढ़े अंबर से माँगो मत पान
मत टेरो भिक्षुक को कहकर दान
धरती की तपन न हुई अगर कम त
सावन का मौसम आ ही जाएग

मिट्टी का तिल-तिलकर जलना ही त
उसका कंकड़ से कंचन होना ह
जलना है नहीं अगर जीवन में त
जीवन मरीज का एक बिछौना ह
अंगारों को मनमानी करने द
लपटों को हर शैतानी करने द
समझौता न कर लिया गर पतझर स
आँगन फूलों से छा ही जाएगा
बूढ़े अंबर से...

वे ही मौसम को गीत बनाते ज
मिज़राब पहनते हैं विपदाओं क
हर ख़ुशी उन्हीं को दिल देती है ज
पी जाते हर नाख़ुशी हवाओं क
चिंता क्या जो टूटा हर सपना ह
परवाह नहीं जो विश्व न अपना ह
तुम ज़रा बाँसुरी में स्वर फूँको त
पपीहा दरवाजे गा ही जाएगा
बूढ़े अंबर से...

जो ऋतुओं की तक़दीर बदलते है
वे कुछ-कुछ मिलते हैं वीरानों स
दिल तो उनके होते हैं शबनम क
सीने उनके बनते चट्टानों स
हर सुख को हरजाई बन जाने दो,
हर दु:ख को परछाई बन जाने दो,
यदि ओढ़ लिया तुमने ख़ुद शीश कफ़न,
क़ातिल का दिल घबरा ही जाएगा
बूढ़े अंबर से...

दुनिया क्या है, मौसम की खिड़की प
सपनों की चमकीली-सी चिलमन है,
परदा गिर जाए तो निशि ही निशि ह
परदा उठ जाए तो दिन ही दिन है,
मन के कमरों के दरवाज़े खोल
कुछ धूप और कुछ आँधी में डोल
शरमाए पाँव न यदि कुछ काँटों स
बेशरम समय शरमा ही जाएगा
बूढ़े अंबर से...