चेतन सिंह सोलंकी : रोशनी बिखेरता युवा सितारा
प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी से विशेष मुलाकात
चेतन सिंह सोलंकी, उस होनहार और इरादों के पक्के युवा का नाम है जिसने लाखों रुपयों की नौकरी को ठुकराकर अपने गांव को अपनी विशेषज्ञता का लाभ देने का शुभ संकल्प लिया। चेतन मानते हैं कि पैसा माध्यम है, मंजिल नहीं। उन्होंने तकनीकी क्षेत्र में शिक्षा ली है चाहते तो और मित्रों की तरह पैसा और स्टेटस बना सकते थे लेकिन उनका मानना है कि जीवन बिना लक्ष्य के नहीं जिया जा सकता। सबकुछ कमा कर भी मैंने लोगों में खालीपन देखा है लेकिन मैं खुद को अपने फैसले के साथ संपूर्ण पाता हूं। चेतन ने भारतीय गांव की घोर अभाव वाली जिंदगी भी देखी और विकसित देशों में रहकर आलीशान सुविधाएं भी लेकिन अपने देश के लिए कुछ करने के जज्बे ने उन्हें हर परिस्थिति में मजबूत बनाए रखा। अपने संकल्प से वे डिगे नहीं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मुंबई के एनर्जी सिस्टम्स इंजिनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर चेतन ने अपनी विशेषज्ञता का जो सबसे विशिष्ट लाभ अपने गांव झिरन्या (भीकनगांव,मध्यप्रदेश) को दिया है वह है सोलर ऊर्जा से एक पूरा स्कूल चलाना। उनका उद्देश्य है गांव के हर बच्चे के पास उसकी अपनी रोशनी हो। चेतन मानते हैं कि सरकार शिक्षा और रोजगार के लिए इतने अभियान चला रही है लेकिन अगर बिजली नहीं होगी तो छात्र क्या पढ़ पाएगा और कितना पढ़ सकेगा? उन्होंने एक ऐसे डिजाइन का स्कूल तैयार करवाया जिसमें अव्वल तो बिजली-पंखे की किसी मौसम में जरूरत ही ना रहे और अगर कभी जरूरत पड़े भी तो सोलर ऊर्जा के माध्यम से उसकी आपूर्ति हो। अपने गांव में उन्होंने आरंभ किया है 'वन चाइल्ड-वन लाइट' का प्रोजेक्ट। चेतन को 2002 में सेकंड बेस्ट टॉक अवॉर्ड-स्पेन, 2003 में EMRS यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड-फ्रांस, 2009 में यंग इन्वेस्टीगेटर अवॉर्ड-मुंबई मिला है। चेतन ने पुस्तकें भी लिखी है। उनकी पुस्तक 'अक्षय ऊर्जा प्रोद्योगिकी' को भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत किया गया है। चेतन 'रोज' और 'एजुकेशन पार्क' जैसी गैर सरकारी संस्थाओं के संस्थापक है। प्रस्तुत है विलक्षण प्रतिभा के धनी आईटी विशेषज्ञ/प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी से विशेष बातचीत : * चेतन, तमाम विपरीत परिस्थितियों से गुजर कर आपने उच्च शिक्षा अर्जित की और जब उसका लाभ लेने की बारी आई तो आपने समाज हित में फैसला बदल लिया, यह सब कैसे हुआ? -
देखिए, मैंने बहुत ही छोटे से गांव से अपनी शिक्षा आरंभ की। मैंने देखा है कि एक ही कमरे की क्लास में पूरे गांव के बच्चे कितनी मुश्किल में पढ़ाई करते हैं फिर भी उन्हें वह क्वॉलिटी एजुकेशन नहीं मिल पाता है जिसके वे हकदार हैं। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं उनकी नींव पुख्ता होना चाहिए लेकिन होता ठीक इसके विपरीत है। वे कक्षा-दर-कक्षा कमजोर होते जाते हैं। अपनी डिग्री के बाद मुझे उच्चतम वेतनमान पर नौकरियां सहजता से मिल रही थी। भारत में और भारत के बाहर भी लेकिन मेरा अपने आप से वादा था कि मैं इस देश का हिस्सा हूं और मुझे इसके प्रति अपनी जिम्मेदारियों से विमुख नहीं होना है। * आपने आरंभिक शिक्षा कहां से प्राप्त की? -
तीसरी तक ग्राम झिरन्या, पोस्ट-उदरिया, फिर चौथी से आगे तक मल्हार आश्रम-इंदौर, इंदौर से ही जीएसआईटीएस से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेली कम्यूनिकेशन (93-97) में इंजीनियरिंग की। 1999 में IIT मुंबई से माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स में एम.टेक किया। 2004 में बेल्जियम से सोलर एनर्जी पर पीएचडी की। * समाज सेवा का फैसला अचानक लिया या बचपन से ही कोई मंशा रही? -
मुंबई में पढ़ाई के दौरान ही एक बार मैं और मेरा एक मित्र अन्ना हजारे से मिलने रालेगण सिद्धी गए। उन्हें देखकर मैंने सोचा था मैं शादी नहीं करूंगा और सारा ध्यान समाज सेवा में लगा दूंगा। जब अन्ना को यह बात बताई तो उन्होंने ऐसा करने से मुझे मना कहा। उनका कहना था, जब मैं लोगों के बीच जाता हूं तो वे कहते हैं इनका तो कोई घर-बार नहीं है इसलिए इन्हें समाज की सेवा का समय है। अगर तुम शादी करने के बाद समाज सेवा करोगे तो समाज में एक संदेश जाएगा कि अगर यह व्यक्ति सब दायित्वों के साथ समाज के लिए वक्त दे सकता है तो हम क्यों नहीं दे सकते। बाद में मैंने शादी की और समाज सेवा भी जारी रखी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान किसी लेक्चर में मैंने सुना था कि इंजीनियर को जॉब नहीं करनी चाहिए बल्कि उसे जॉब क्रिएट करना चाहिए। बस तब से दिमाग में यह बात बैठ गई कि अगर मैंने नौकरी की भी तो और बेरोजगारों के लिए भी अवसर देने का प्रयास करूंगा। * विदेशों में अध्ययन के पश्चात एक बेहतरीन करियर आपके सामने था, लेकिन आपने देश लौटने का फैसला लिया यह कितना कठिन रहा आपके लिए? -
जब मैं सोलर एनर्जी में बेल्जियम से पीएचडी कर रहा था तब ही मेरे दिमाग में स्पष्ट था कि जो कुछ मैंने सीखा या समझा है उसका लाभ मेरे गांव के बच्चों को मिलना चाहिए। बाद में प्रदेश और देश के लिए सोचा जा सकता है। मैं यह मानता हूं कि हर अभिभावक अपने बच्चे के लिए थोड़ा-थोड़ा करते हैं, उसी तरह सरकार भी अपने प्रयासों से थोड़ी-थोड़ी ही जनता तक पहुंचती है। जबकि एक बच्चे को 'हाई वोल्टेज सपोर्ट' उस वक्त मिलना चाहिए जब उसे उसकी जरूरत है। मेरा मानना है कि सरकार हर गांव में स्कूल खोलने के बजाय 10 या 20 गांवों को जोड़कर एक अच्छा क्वॉलिटी एजुकेशन स्कूल खोलें तो बच्चों को अधिक फायदा होगा। आरंभ में मेरे फैसले से परिवार को परेशानी हुई लेकिन अब सब मेरे साथ हैं। * आपने शुरूआत कैसे की? -
मेरा उद्देश्य था अपने गांव को विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाना। गंभीर विद्युत संकट से जूझ रहे मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों के लिए सौर ऊर्जा एक बेहतर विकल्प हो सकता है यह बात सबको समझाने की कोशिश की। अपने स्तर पर स्वयं के पैसों से जमीन खरीदी। प्रायमरी स्तर पर ऐसे स्कूल का निर्माण किया जिसमें मुख्य रूप से बिजली और पंखों की जरूरत ही ना रहे अगर जरूरत पड़े भी सोलर एनर्जी वहां काम आए। * सोलर एनर्जी के लिए आपने सबका विश्वास कैसे अर्जित किया? -
सोलर एनर्जी से कोई भी अनभिज्ञ तो नहीं है। लेकिन प्रचलित सोलर सिस्टम में जो खामियां हैं उन्हें दूर कर अर्जित ज्ञान और नए शोध का इस्तेमाल किया। दूसरी जो जरूरी बात कि हमने बाहर से किसी व्यक्ति को अपने साथ नहीं जोड़ा क्योंकि मेरा प्रबल विश्वास है कि गांव में प्रतिभा की कमी नहीं है प्रशिक्षण का अभाव है। कुशल प्रशिक्षण और विश्वास के अभाव' के चलते हम कोई कदम उनके साथ मजबूती से नहीं उठा सकते। हमने गांव वालों को बताया कि कैसे सोलर एनर्जी उनके बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ उनके दैनिक उपयोग -खेती और अन्य चीजों में काम आ सकती है। सोलर एनर्जी ना सिर्फ गांव का केरोसिन भी बचाएगी बल्कि इसके इस्तेमाल से गांव में ही रोजगार भी मिल सकेंगे। जैसे सोलर पंप हर लिहाज से डीजल पंप से कहीं ज्यादा सस्ता है। सोलर पंप से एक क्यूबिक मीटर पानी खींचने पर मात्र 52 पैसे खर्च आता है जबकि डीजल से इसका खर्च 1.57 रु. होता है। हमने सोलर एनर्जी के लोकलाइजेशन यानी स्थानीयकरण पर भी जोर दिया। यानी अपनी बिजली आप खुद तैयार करें। मैं यह मानता हूं कि अगर आपके कर्म और लक्ष्य में शुभता- पवित्रता है तो वह चहेरे और व्यवहार से छलकती है। अच्छे लोग अपने आप जुड़ते हैं।