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मध्यप्रदेश में मौजूद है विश्व का पहला विज्ञापन

मध्यप्रदेश में मौजूद है विश्व का पहला विज्ञापन - first ever advertisement of world is in mundsour of madhyapradesh
- अथर्व पंवार
'एमपी गजब है' यह गीत हर मध्यप्रदेशवासी के मन में बसा है और ऐसा है भी। मध्यप्रदेश सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से संपन्न राज्य है। यहां आदिमानवों की चित्रकारी से लेकर डायनासोर के अंडे तक प्राप्त हो चुके हैं। विक्रमादित्य, भोज और यशोधर्मन जैसे पराक्रमी राजाओं की यह भूमि रहा है। मध्यप्रदेश से विश्व को अनेक चीजें प्राप्त हुई है। उन्हीं में से एक है विज्ञापन।
 
जी हां, विश्व का पहला विज्ञापन हमारे मध्यप्रदेश में ही मौजूद है। मंदसौर, यानि प्राचीन दशपुर मध्य भारत का एक प्रमुख नगर था। इसके बारे में कालिदास ने मेघदूत में कहा है कि यहां की स्त्रियां इतनी सूंदर है कि आप जमीन पर देख ही नहीं सकते। उनकी मोहकता देखकर आपका ध्यान कहीं ओर जाएगा ही नहीं। यहां के राजा हुए हैं महाराजा यशोधर्मन जिन्होंने हूणों के आक्रमण से बचाया था। नगर में अनेक मंदिर थे और आज जहां खिलचीपुरा है, वहां तो समझिए कि पुरातत्व में रूचि रखने वालों के लिए सोने की खान होगी। स्थानीय नगर वासियों के अनुसार यह खिलचीपुरा का क्षेत्र प्राचीन दशपुर नगर का एक अहम भाग था। यहां प्राचीन कुबेर मंदिर और सूर्य मंदिर भी हैं।
 
यह सूर्य मंदिर ही वह स्थान है जहां विश्व का पहला विज्ञापन मौजूद है। विज्ञापन से पहले हम सूर्य मंदिर को जान लेते हैं। यह सूर्य मंदिर किसी और सूर्य मंदिर की तरह विशाल और भव्य नहीं है। शायद हो भी सकता था क्योंकि मुगल काल में जो यहां की संस्कृति का नाश हुआ है उसकी गाथा बहुत दर्दनाक है।

यह सूर्य मंदिर  कितना पुराना है इसके अनेक मत है। पर दो बातें महत्वपूर्ण है- पहली कि इसमें 10-11 शताब्दी के अलग-अलग मंदिरों के शिल्पखंड हैं और दूसरा कि इसका जीर्णोद्धार 18वी शताब्दी में हुआ। इससे एक बात साबित होती है कि इस प्राचीन मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा। अगर आप नए-नए मंदसौर जा रहे हैं और खिलचीपुरा जाकर सोचें की मंदिर ढूंढेंगे तो यह सफर आपके लिए कठिन होगा। मंदसौर सिटी क्षेत्र में रहने वालों को भी नहीं पता है कि यह मंदिर आखिर है कहां। इसीलिए स्थानियों की मदद से ही यहां तक हम पहुंच पाए थे।
 
अब आते हैं विज्ञापन की उस मुख्य बात पर। जैसा कि अब आप एकदम कम्फर्टेबल हो गए होंगे कि दशपुर कैसा था। तो आगे चलते हैं। इस दशपुर में गुजरात के व्यापारी आकर बस गए थे। चूंकि गुप्तकालीन समय में शिलालेखों के माध्यम से प्रचार-प्रसार होता था। तो व्यापारियों के लिए यह उचित साधन बन गया। इसी मंदिर की एक दिवार पर एक शिलालेख पर विश्व का पहला विज्ञापन है। जैसा कि हमें मालूम है कि मंदिर एक सार्वजनिक स्थल होते हैं। साथ ही एक ऐसा केंद्र होते हैं जहां लोग स्वयं आते हैं तो ऐसी जगह को विज्ञापन लगाने के लिए चुनाव करना उस जमाने की दूरदर्शी सोच को बताता है।
 
अब हम जानते हैं कि इस विज्ञापन में आखिर लिखा क्या है। यह विज्ञापन संस्कृत भाषा में लिखा है। विज्ञापन की पंक्तियां है -
"तारुण्य कान्यु पछितौ पि सुवर्ण हार
ताम्बूल पुष्प विधिना समल को पि। 
नारी जनः प्रिय भूपेति न तावदस्या
यावन्न पट्टमाय वस्त्र युन्गानि निधत्ते।।"
इसका अर्थ है कि आपका शारीरिक यौवन कितना ही अच्छा क्यों न हो, आपने भलेही फूलों की माला, अच्छे आभूषण ही क्यों न पहने हो, भले ही आपके ताम्बूल के समान होंठ हो, पर एक नारी आपके पास तब तक नहीं आएगी, जब तक आप अच्छे वस्त्र धारण नहीं करते हैं।
 
यह बात जानकर हर मध्यप्रदेशवासी गर्व करेगा। पर, हमें इस बात का अफसोस है कि ऐसे स्थानों की जानकारी हमें नहीं है। इन ऐतिहासिक धरोहरों की स्थिति देखकर लगता है कि पुरातत्व विभाग ने खुदाई में किसी सोमरस को पा लिया है और उसका सेवन करके वह मीठी निद्रा में मस्त है।

कई स्थान ऐसे भी हैं जहां स्थानीय लोग ही देखभाल करते हैं, पर उन्हें पता नहीं होता कि वह वास्तु कितनी बहुमूल्य है और क्या मायने रखती है। इस आलेख को चलिए आखरी बात के साथ खत्म करते हैं कि धरोहरों और संग्रहालयों के संरक्षण और देखरेख के लिए सरकार, पुरातत्व विभाग इत्यादि जिम्मेदारों की गलती है चलिए मान लेते हैं। लेकिन आमजन की इसमें भागीदारी नहीं गिनना चाहिए क्या? हमारे पास इस डिजिटल युग में जानकारी आ जाती है तो हम रिएक्ट कर देते हैं। इसे हम जागरूक  होना समझते हैं। पर अपनी जागरूकता को जानने के लिए स्वयं से एक प्रश्न करिएगा कि "अंतिम बार अपने शहर के संग्रहालय कब गए थे?"