• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. क्या तुम जानते हो?
  4. amazing facts about the elephant ramprasad of maharana pratap who fought haldighati war
Written By

चेतक के अलावा यह जीव भी था स्वामी भक्त, जानिए हल्दीघाटी के युद्ध की यह रोचक जानकारी

चेतक के अलावा यह जीव भी था स्वामी भक्त, जानिए हल्दीघाटी के युद्ध की यह रोचक जानकारी - amazing facts about the elephant ramprasad of maharana pratap who fought haldighati war
- अथर्व पंवार
 
18 जून 1576 के दिन ही हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया था। यह एक ऐसा युद्ध है जो स्वामी भक्ति, स्वाभिमान, राष्ट्र प्रेम, वीरता, पुरुषार्थ, सर्वस्व त्यागने और आत्मविश्वास के साथ पुनः जीतने जैसी प्रेरक शिक्षाएं सीखा गया। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के अश्व चेतक ने भी अपना नाम इतिहास के स्वर्णाक्षरों में पाया है। उसकी स्वामी भक्ति मनुष्यों के लिए भी आदर्शस्वरुप है। जब चेतक ने प्राण त्यागे थे तो एक ही वार में शत्रु को दो भागों में काटने वाले पराक्रमी प्रताप भी एक शिशु की भांति फूट-फूट कर रोए थे।
चेतक के अलावा भी इस युद्ध में एक और पशु था जो चेतक के सामान ही वीर था और उसकी स्वामी भक्ति भी वैसी ही थी। पर इतिहास में उकेरे गए इस नाम पर हमने अनदेखी की धुल की मोटी चादर से ढंक दिया था। जब हम उस चादर को पोंछते हैं तो हमें वह ऐतिहासिक नाम प्राप्त होता है, वह है महाराणा प्रताप का गज 'रामप्रसाद'।
 
युद्ध में घोड़ों के साथ में हाथियों की भी भूमिका होती है। वह पैदल सेना को तहस-नहस करके एक मार्ग बनाने में बड़ी भूमिका निभाते थे। इनके द्वन्द्व युद्ध भी होते थे। ऐसे ही हाथियों का हल्दीघाटी के युद्ध में भी योगदान रहा।
हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के हाथी लूणा का सामना मुगल सेना के हाथी गजमुक्ता से हुआ था। दोनों ने कई सैनिकों को ईश्वरदर्शन कराए। लूणा के महावत को गोली लगने के कारण वह हौदे (हाथी के ऊपर बना सांचा जिसमें बैठकर युद्ध लड़ा जाता था और हाथी का संचालन भी किया जाता था) में ही बलिदानी हो गया था। उस समय उन हाथियों का प्रशिक्षण ऐसा था जिसके कारण लूणा बिना महावत के ही मेवाड़ी खेमे में आ गया था।
 
इसके बाद मेवाड़ की ओर से रामप्रसाद नाम के हाथी को उतारा गया। यह मेवाड़ का सर्वश्रेष्ठ हाथी था। यह मुगल सैनिकों को कुचलने लगा जिससे उनकी सेना में हड़कंप हो गया। रामप्रसाद के विरूद्ध मुगल सेना ने फिर रणमदार नाम के हाथी को उतारा। युद्ध में एक समय ऐसा भी आया जब रामप्रसाद मुगलों के हाथी रणमदार पर भरी पड़ रहा था। पर इसी समय इसके महावत को एक तीर लग गया और वह शहीद हो गया। रामप्रसाद फिर भी नहीं रुका। वह निरंतर मुगल सेना का कुचलते हुए नाश करता रहा। मुगल हाथी सेना का सेनापति हुसैन खां अवसर पाकर रामप्रसाद पर चढ़ा गया और उसे नियंत्रित कर के मुगल खेमे में ले गया। वहां इसे बंदी बना लिया गया।
आसिफ खां ने इस विस्मित करने वाले जीव को अकबर को उपहार के रूप में दिया। इसे पाकर अकबर अति प्रसन्न हुआ। अकबर के पास पहले ही इसकी प्रसिद्धि पहुंच चुकी थी। उसने इसका नाम बदलकर पीरप्रसाद रख दिया था। अपने स्वामी और स्वदेश से दूर जाना रामप्रसाद के लिए हृदयविदारक था। उसने इस शोक में अन्न-जल का त्याग कर दिया। और युवा अवस्था में ही यह बलशाली और पराक्रमी जीव स्वामी भक्ति की वेदना से मृत्यु को समर्पित हो गया।
 
यह प्रसंग दर्शाता है कि स्वदेश प्रेम की भावना मात्रा मनुष्यों में ही नहीं होती बल्कि पशुओं में भी होती है। वे युद्ध में मात्रा एक साधन नहीं होते थे, वह भी एक सैनिक जितनी ही भागीदारी दिखाते थे। ऐसे स्वामी भक्त जीव का इतिहास में एक अडिग स्थान रहेगा।
ये भी पढ़ें
Fathers Day Special: Top-10 songs, जो आप कर सकते हैं अपने पापा को डेडिकेट