'आप' के हो जाएंगे मुगालते साफ!
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी 5 सीटों के भीतर सिमट जाएगी, किसी ने भी नहीं सोचा था। अरविन्द केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने भी नहीं। मगर एक्जिट पोल की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सर्वे के मुताबिक आप को 4 सीटों से ज्यादा नहीं मिलने जा रहीं।आखिर ऐसा क्या हुआ कि कुछ समय के भीतर ही आप का जादू आम आदमी के सिर से उतर गया। पहले ही चुनाव में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें हासिल कर आश्चर्यजनक प्रदर्शन करने वाली आप पूरे देश में इतनी कम सीटों पर सिमटेगी, इसका किसी को भी अनुमान नहीं था। बनारस में तो यह भी अनुमान हैं कि कहीं केजरीवाल अपनी जमानत ही न गंवा बैठें।हालांकि इसके पीछे की हकीकत अरविन्द केजरीवाल भी जानते हैं और वे कुछ-कुछ स्वीकार भी कर चुके हैं कि दिल्ली की सत्ता छोड़ने का उनका फैसला पूरी तरह गलत था। दरअसल, उन्हें मुगालते हो गए थे कि वे इसी तरह का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में दोहरा देंगे, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यदि वे दिल्ली में मिले मौके का सही इस्तेमाल करते तो संभव है परिणाम कुछ और ही होता। आम आदमी पार्टी 'पूरी के लिए आधी' भी खो बैठी। ...और यह भी तय है कि अब दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसा समर्थन उन्हें शायद ही मिले। हालांकि ये एक्जिट पोल के संकेत हैं, मगर 16 मई को हकीकत भी सामने आ जाएगी।
अगले पन्ने पर... आप को भारी पड़ी यह गलतियां...
पानी के बुलबुलों की तरह बनी और कुकुरमुत्ते की तरह उग आई आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविन्द केजरीवाल एक आत्ममुग्ध व्यक्ति की तरह इस चुनाव मे गलती पर गलतियाँ करते रहे...और जिस जनता जनार्दन ने उन पर भरोसा किया, उनके ही कोपभाजन का शिकार होते रहे..... उनकी दस प्रमुख गलतियाँ जिसके बारे मे आम आदमी पार्टी के तमाम प्रचारक भी इत्तेफाक रखते हैं....1.
दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर भाग खड़े होना..2.
गुजरात जाकर मोदी के काम का मूल्यांकन करने की नाकाम कोशिश करना.... 3.
पूरे चुनाव मे मोदी को गाली देना और राहुल सोनिया के बारे मे बोलने से परहेज करना...4.
चुनाव क्षेत्र बनारस चुनना...5.
जिस मीडिया के समर्थन से आपकी पहचान बनी.. उसी मीडिया को टाइम टाइम पर जम के कोसना...7.
स्वयं उलूल जुलूल बयान देना जो राजनीतिक आत्महत्या का कारण बना...8.
तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात करना.. जिससे मनीष सिसोदिया और आशुतोष तक का इंकार है...9.
ध्रवीकरण और जातिगत राजनीति के प्रबल विरोधी केजरीवाल अचानक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिये अपनी ढपली लेकर अपना राग अलापने लगे....10.
रातो रात सब कुछ पा लेने की चाहत मे हर वो राजनीतिक टोटका आजमाने की कोशिश करना जो अन्य पार्टी के नेता करते हैं... तो आप उनसे अलग होने का दावा कैसे कर सकते हो?