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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 21 अगस्त 2025 (13:30 IST)

नृत्य से लेकर तांडव मुद्रा तक जानिए हर गणेश प्रतिमा का महत्व

ganesh chaturthi 2025
significance of lord ganesha statue in different pose: जब भी हम किसी शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं, तो सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करते हैं। उन्हें विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की हर प्रतिमा, हर मुद्रा का अपना एक विशेष महत्व है? उनकी अलग-अलग भाव-भंगिमाएं जीवन के अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइए, गणेश जी की कुछ प्रमुख प्रतिमाओं और मुद्राओं के पीछे छिपे गहरे अर्थों को जानें।

बैठे हुए गणेश: स्थिरता और शांति का प्रतीक
घर के लिए बैठे हुए गणेश की प्रतिमा को सबसे शुभ माना जाता है। इस मुद्रा में, गणेश जी ललितासन में बैठे होते हैं, जो स्थिरता, शांति और धैर्य का प्रतीक है। यह मुद्रा दर्शाती है कि भगवान घर में स्थायी रूप से विराजमान हैं। ऐसी प्रतिमा घर के सदस्यों के बीच सामंजस्य और प्रेम को बढ़ावा देती है और नकारात्मकता को दूर करती है। अगर आप अपने घर में सुख-शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो यह मुद्रा सबसे उपयुक्त है।

नृत्य करते हुए गणेश: आनंद और सकारात्मकता का संचार
नृत्य करते हुए गणेश की प्रतिमा घर में खुशी, उत्सव और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना आनंद और उत्साह से करने का संदेश देती है। नृत्य मुंद्रा में गणपति एक पैर मोड़कर और दूसरे पैर को फैलाकर नृत्य करते हुए देखने को मिलते हैं। वहीं, हाथों में संगीत वाद्ययंत्र लिए हुए हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, यह मूर्ति घर के माहौल को खुशनुमा बनाती है और कला के क्षेत्र में सफलता दिलाती है। यह उन लोगों के लिए खास तौर पर लाभदायक है जो रचनात्मक कार्य करते हैं या जीवन में नई ऊर्जा का संचार चाहते हैं।

एकदंत गणपति: पराक्रम और शक्ति का स्वरूप
गणेश जी को एकदंत (एक दांत वाले) के नाम से भी जाना जाता है। उनकी एक दंत वाली प्रतिमा विशेष महत्व रखती है। इस रूप में गणेश जी पराक्रम, साहस और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। माना जाता है कि इनकी पूजा करने से व्यक्ति में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की अद्भुत क्षमता आती है। कुछ प्रतिमाओं में गणेश जी को एक पैर पर खड़े हुए दिखाया जाता है, जो दृढ़ता और एकाग्रता का प्रतीक है। यह मुद्रा हमें लक्ष्य पर केंद्रित रहने और सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।

तांडव मुद्रा: विनाश से पहले का आनंद
जब हम भगवान शिव के तांडव की बात करते हैं, तो अक्सर इसका संबंध विनाश से जोड़ते हैं। लेकिन तांडव मुद्रा आनंद और सृष्टि के पुनर्जन्म का भी प्रतीक है। तांडव मुद्रा में गणेश की प्रतिमा सृष्टि के चक्र को दर्शाती है। यह मुद्रा विघ्नों को जड़ से समाप्त करने और नई शुरुआत के लिए मार्ग प्रशस्त करने का संकेत देती है। यह हमें यह सिखाती है कि जीवन में कुछ खत्म होने का मतलब अंत नहीं, बल्कि एक नए और बेहतर भविष्य की शुरुआत है।

गणेश चतुर्थी के शुभ मुहूर्त: 

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