फायनेंशियल प्लानिंग : करें सपनों को साकार
हम सभी यह जानते हैं कि किसी भी कार्य की सफलता के लिए प्लानिंग आवश्यक होती हैं। प्लानिंग करने से हम अपने पास मौजूद संसाधनों में अपने लक्ष्य को भली-भाँति पा सकते हैं। प्लानिंग की आवश्यकता हम सभी समझते हैं, इसलिए हम जीवन में हर छोटे से छोटे कार्य जैसे परिवार के साथ छुट्टियों में बाहर घूमने जाना या फिर बड़े से बड़े कार्य जैसे अपने मकान के निर्माण को सुचारू रूप से प्लान करके ही करते हैं, परंतु बात फायनेंशियल प्लानिंग की करें तो अधिकांश लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं जबकि जीवन में हम सबसे ज्यादा समय वित्तीय मामलों (पैसा कमाने) में लगाते हैं।आज एक तरफ जहाँ हम महँगाई की मार एवं टैक्स के बोझ तले दब रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमारे पास सीमित वित्तीय संसाधन हैं। ऐसे में अपने सपनों को साकार करने के लिए फायनेंशियल प्लानिंग आवश्यक है।वैसे तो हम सभी ने फायनेंशियल प्लानिंग शब्द का उपयोग कई लोगों द्वारा करते हुए सुना है। परन्तु इसके बारे में आम जनता की सोच टैक्स एवं निवेश तक ही सीमित है। जबकि वास्तव में फायनेंशियल प्लानिंग एक बहुत ही व्यापक विषय है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों, आवश्यकताओं एवं जोखिम क्षमता को ध्यान में रखकर प्लानिंग की जाती है। जिसमें निम्न बातों का समावेश होता है।जीवन के लक्ष्य : जीवन के लक्ष्य ही फायनेंशियल प्लानिंग का केन्द्र बिन्दु है, अतः फायनेंशियल प्लानिंग करने के लिए इनका सही आकलन आवश्यक है। इनका सही आकलन करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना होता है।1.
लक्ष्यों का निर्धारण- हर व्यक्ति के जीवन में अपने विभिन्न लक्ष्य होते हैं जैसे बच्चों की पढ़ाई-शादी, कार खरीदना, रिटायरमेंट आदि। इन लक्ष्यों को सही रूप से आकलन कर इनकी सूची बनाना एवं यह निर्धारित करना कि इन लक्ष्यों के लिए वित्तीय आवश्यकता संभवतः किस वर्ष में होगी।2.
लक्ष्यों को वित्तीय स्वरूप देना- हम सभी अपने लक्ष्य को अच्छे से हासिल करना चाहते हैं। अक्सर लोगों से यह सुनने में आता है कि वह अपनी रिटायरमेंट लाइफ अच्छे से जीना चाहते हैं अथवा अपने बच्चों की शादी अच्छे से करना चाहते हैं। फायनेंशियल प्लानिंग के लिए हमें अपने लक्ष्यों को वित्तीय स्वरूप देना आवश्यक है साथ ही हमें महँगाई दर को ध्यान में रखकर भविष्य में लगने वाली राशि का निर्धारण भी करना आवश्यक है जैसे बच्चों की शादी में 10 लाख का खर्च आएगा, घर बनाने में 25 लाख लगेंगे आदि। 3.
प्राथमिकता का निर्धारण- सामान्यतः हमारे लक्ष्यों का क्रम एवं लक्ष्यों की प्राथमिकता का क्रम अलग-अलग होता है। प्राथमिकता का निर्धारण करने से हम अपने वित्तीय संसाधनों का सही रूप से प्रबंध कर सकते हैं। निवेश प्लानिंग- हर व्यक्ति अपने निवेश पर अधिक से अधिक रिटर्न चाहता है परन्तु हमें यह समझना आवश्यक है कि रिस्क एवं रिटर्न एक सिक्के के दो पहलू हैं अतः अधिक रिटर्न में रिस्क भी अधिक होती है, जबकि वास्तव में हम अधिक रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं होते। अतः निवेश करने के पूर्व हमें निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।1.
रिस्क प्रोफाइलिंग- रिस्क प्राफाइलिंग में व्यक्ति विशेष की जोखिम वहन क्षमता अर्थात वित्तीय रूप से रिस्क लेने की क्षमता एवं जोखिम सहनशीलता अर्थात मानसिक रूप से रिस्क लेने की क्षमता दोनों का ही आकलन किया जाता है।2.
निवेश का उद्देश्य- इसमें व्यक्ति विशेष के लघु, मध्यम एवं लम्बी अवधि के लक्ष्यों एवं रिस्क प्रोफाइलिंग के आधार पर निवेश के उद्देश्य तैयार किए जाते हैं। जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि व्यक्ति किस उद्देश्य से निवेश करना चाहता है। (अ) नियमित आय (ब) नियमित आय अथवा ग्रोथ (स) ग्रोथ।3.
असेट एलोकेशन- असेट एलोकेशन से आशय यह है कि कितना पैसा किस असेट् क्लॉस में लगाया जाए अर्थात कितना पैसा निश्चित आय एवं सुरक्षित साधनों में लगाया जाए, कितना पैसा इक्विटी में, कितना गोल्ड में, कितना प्रापर्टी में एवं कितना नगद में रखा जाए। विभिन्न रिसर्च के मुताबिक निवेश के रिटर्न को असेट् एलोकेशन सर्वाधिक प्रभावित करता है। असेट् एलोकेशन व्यक्ति विशेष की आवश्यकता एवं रिस्क प्रोफाइलिंग के आधार पर तय किया जाता है। रिस्क मैनेजमेंट एवं इन्शोरेन्स प्लानिंग- हमारा जीवन अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है, जिसके कारण हमारे लक्ष्यों को हासिल करने में विभिन्न रुकावट आ सकती है। अतः रिस्क मैनेजमेंट में व्यक्ति विशेष की संभावित रिस्क का आकलन करके उसके लिए उचित योजना बनाई जाती है।इन्श्योरेंस, रिस्क को ट्रान्सफर करने की प्रक्रिया है, जिसके तहत हम प्रीमियम चुकाकर अपनी वित्तीय रिस्क, इन्श्योरेंस कंपनी को ट्रान्सफर कर सकते हैं एवं अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं। इन्श्योरेंस प्लानिंग के तहत यह निश्चित किया जाता है कि व्यक्ति- विशेष को इन्श्योरेंस की जरूरत है या नहीं एवं है तो कितनी है? टैक्स प्लानिंग- टैक्स प्लानिंग केवल टैक्स बचत तक ही सीमित नहीं है बल्कि टैक्स बचत के साथ-साथ व्यक्ति विशेष की आवश्यकताओं, जीवन के लक्ष्य एवं जोखिम वहन-क्षमता को ध्यान में रखकर उचित साधनों में निवेश करना है। एस्टेट प्लानिंग- एस्टेट प्लानिंग में किसी भी अनहोनी होने की दशा में व्यक्ति- विशेष की संपत्ति उसके प्रियजनों को उसकी इच्छानुसार कम से कम न्यायिक प्रक्रिया, विवाद एवं खर्चे के टैक्स इफेक्टिव तरीके से मिल सके इसका प्रबंध किया जाता है। साथ ही यह भी बंदोबस्त किया जाता है कि शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता की स्थिति में प्रियजनों द्वारा पारिवारिक हित में संपत्ति का सही उपभोग किया जा सके।फायनेशिंयल प्लानिंग के अभाव में अपने सपनों को साकार करना किसी भी व्यक्ति के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव है। अतः यह समझ लेना आवश्यक है कि फायनेंशियल प्लानिंग महज टैक्स बचत या निवेश करने तक ही सीमित नहीं है एवं यह केवल उन्हीं के लिए उपयोगी नहीं है, जिनके पास निवेश करने की क्षमता है। वास्तव में फायनेंशियल प्लानिंग हर उन व्यक्तियों के लिए आवश्यक है, जो अपने जीवन के लक्ष्यों को पाना चाहते हैं।