Farmers protest : किसानों ने बताया, क्यों उनके बच्चे नहीं करना चाहते हैं खेती-बाड़ी?
नई दिल्ली। अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर डटे कुछ किसानों का कहना है कि उनकी दशा देखकर उनके बच्चे खेती-बाड़ी नहीं करना चाहते हैं। केंद्र के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले शनिवार से गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे हसीब अहमद ने कहा कि उनके 2 बच्चे हैं, जो स्कूल जाते हैं। वे उत्तरप्रदेश में रामपुर जिले के अपने गांव में ऑनलाइन कक्षाएं ले रहे हैं। वे बेहतर जीवन स्तर चाहते हैं।
अहमद ने बताया कि उनका बड़ा बेटा 12वीं कक्षा में है जबकि छोटा बेटा 9वीं कक्षा में पढ़ता है। उन्होंने बताया कि उनके दोनों बेटों में से कोई भी खेती-बाड़ी में नहीं आना चाहता है। उनकी अपनी महत्वकांक्षाएं हैं और वे अच्छी नौकरी करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि वे किसान नहीं बनेंगे।
अहमद ने बताया कि हमें हमारी फसल का जो दाम मिलता है, उससे हम उन्हें सिर्फ खाना और बुनियादी शिक्षा दे सकते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। वे यह देखकर मायूस होते हैं कि हम इतनी मेहनत करते हैं और बदले में उचित दाम तक नहीं मिलता है।
उत्तरप्रदेश के अमरोहा जिले की किसान सीता आर्य ने बताया कि उनके बच्चे अपने आपको आहिस्ता-आहिस्ता खेती-बाड़ी से दूर कर रहे हैं। वे जीविका के लिए बीड़ी, तम्बाकू या पान की दुकान पर बैठने को राजी हैं। आर्या ने कहा कि हम रात-दिन खेतों में पसीना बहाते हैं लेकिन हमें उतना मुनाफा नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए। किसानी में आना गड्ढे में गिरने के समान है। जब तक इसमें लाभ नहीं होगा, तब तक हमारे बच्चे खेती-बाड़ी में नहीं आना चाहेंगे। अगर सरकार ने ध्यान दिया होता और हमारी फसलों का उचित दाम तय किया होता तो हमारे बच्चे खेती-बाड़ी के खिलाफ नहीं होते।
आंदोलन कर रहे किसानों ने जोर देकर कहा कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता और नए कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता, तब तक वे राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं से कहीं नहीं जाएंगे और प्रदर्शन जारी रहेगा। उत्तरप्रदेश के अन्य किसान 65 वर्षीय दरयाल सिंह ने बताया कि उनके गांव के युवा 2,000 रुपए के लिए किसी व्यापारी के यहां काम करने को राजी हैं, पर वे खेती-बाड़ी नहीं करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि सदियों से उन्होंने देखा है कि उनके परिवार कृषि संबंधी कर्ज लेने के लिए जद्दोजहद करते हैं। वे खेती-बाड़ी से जो भी पैसा कमाते हैं, उसका एक अच्छा-खासा हिस्सा ऋण की अदायगी में चला जाता है और उनके पास कुछ ही पैसे बचते हैं। हम उनका नजरिया कैसे बदलते? आज की तारीख तक किसी सरकार ने किसानों के लिए क्या कभी कुछ किया है? (भाषा)