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Last Updated : शनिवार, 5 दिसंबर 2020 (19:03 IST)

Farmers protest : हाईवे बना किसानों के लिए नया घर, न ठंड की चिंता न कोरोनावायरस का डर

Farmers protest : हाईवे बना किसानों के लिए नया घर, न ठंड की चिंता न कोरोनावायरस का डर - Farmers protest : Highway becomes new home for farmers, neither worry of cold nor fear of coronavirus
नई दिल्ली। केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली की टीकरी बॉर्डर किसी पिंड (गांव) की तरह दिखाई दे रहा है। कहीं ट्रैक्टरों पर तंबू लगे हैं, तो कहीं खाना बनाने के लिए सब्जियां काटी जा रही हैं। कहीं सौर ऊर्जा पैनलों से मोबाइल चार्ज किए जा रहे हैं तो कहीं चिकित्सा शिविर लगे दिखाई दे रहे हैं।
यहां अधिकतर किसान पड़ोसी राज्य पंजाब से आए हैं, जो केन्द्र सरकार से 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। पंजाब के मनसा जिले से आए 50 वर्षीय गुरनाम सिंह कहते हैं- 'निकट भविष्य में यही हमारा घर बनने वाला है क्योंकि यह लड़ाई लंबी चलने वाली है। हम यहीं डटे रहेंगे।
 
उन्होंने कहा कि 'हमारे पास हर चीज काफी मात्रा में है। कम से कम 6 महीने का पर्याप्त राशन-पानी है।' नौ दिन पहले दिल्ली की सीमा पर पहुंचे ये किसान तब से हर दिन लंगर लगाकर स्थानीय लोगों तथा प्रदर्शन स्थल पर आने वाले लोगों समेत 5,000 लोगों को खाना खिला रहे हैं।
कड़ाके की ठंड के बीच प्रदर्शन स्थल पर डटे किसानों के लिए डॉक्टरों ने चिकित्सा शिविर लगाए हैं। यहां कुछ ही लोग मास्क लगा रहे हैं तथा भौतिक दूरी का पालन कर रहे हैं। ऐसे में कोरोनावायरस संक्रमण फैलने का खतरा भी मंडरा रहा है, लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा।
 
26 नवंबर को अपने घर से निकले गुरनाम ने कहा कि उन्हें टीकरी बॉर्डर पर पहुंचते ही सीने में दर्द हुआ। इसके बाद उन्हें राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वे प्रदर्शनकारियों के बीच लौट आए।
 
 गुरनाम ने कहा कि 'हम पंजाब से हैं। जहां भी जाते हैं, प्यार बांटते हैं। न तो कोरोनावायरस और न ही ठंड हमें हमारी लड़ाई लड़ने से रोक पाएगी। ' अपने ट्रैक्टर में आराम कर रहे रामसिंह भी मनसा से हैं। उन्होंने कहा कि जब तक कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया जाता, तब तक वे और उनके बुजुर्ग चाचा वापस नहीं जाने वाले।
राम ने कहा कि उन्हें अपने गांववालों का पूरा समर्थन हासिल है। हर घर से कम से कम एक व्यक्ति यहां प्रदर्शन में शामिल हुआ है। सड़क पर एक के पीछे एक 500 से अधिक ट्रैक्टर खड़े हैं। अधिकतर पर पोस्टर लगे हैं, जिनपर 'किसान नहीं तो खाना नहीं, जीडीपी नहीं, कोई भविष्य नहीं' जैसे नारे लिखे हुए हैं। ये पोस्टर किसानों के एक समूह ने बनाए हैं, जिनमें अधिकतर युवा शामिल हैं।
 
बीए द्वितीय वर्ष के छात्र हनी अपनी ऑनलाइन कक्षाएं छोड़कर प्रदर्शन में आए हैं। वे एक पोस्टर बनाने में व्यस्त हैं, जिसपर लिखा है, 'हम किसान हैं, आतंकवादी नहीं।' हनी ने कहा- 'मैं किसान का बेटा हूं। अगर आज हम अपने किसान समुदाय के अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ सकते तो ऐसी पढ़ाई-लिखाई का क्या फायदा।'
 
कुछ स्वयंसेवियों ने प्रदर्शन स्थल पर सौर ऊर्जा पैनल लगा रखे हैं ताकि किसान अपने मोबाइल फोन चार्ज कर सकें। इसके अलावा कई स्थानीय समूह पानी, साबुन, सूखे-मेवे तथा मच्छर मारने के साधन उपलब्ध करा रहे हैं। टीकरी बॉर्डर पर अस्थायी शौचालय भी बनाए गए हैं।  किसानों ने खुद को मिल रही मदद के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों ने हमारे लिए न केवल अपने घर के बल्कि दिलों के दरवाजे भी खोले हैं। 
 
दरअसल, केन्द्र सरकार ने सितंबर में तीन कृषि कानूनों को मंजूरी दी थी। सरकार का कहना है कि इन कानूनों का मकसद बिचौलियों को खत्म करके किसानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की अनुमति देकर कृषि क्षेत्र में 'सुधार' लाना है।
किसानों को चिंता है कि इन कानूनों से उनकी सुरक्षा कवच मानी जानी वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यवस्था और मंडियां खत्म हो जाएंगी। सरकार का कहना है कि एमएसपी जारी रहेगी और नए कानूनों से किसानों को अपनी फसल बेचने के और विकल्प उपलब्ध होंगे।  इस बीच उन्होंने 8 दिसंबर को भारत बंद का भी आह्वान किया है। (भाषा)