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Written By BBC Hindi
Last Updated : शनिवार, 5 दिसंबर 2020 (19:03 IST)

किसान आंदोलन के नेता कैसे बदल रहे हैं अपनी रणनीति?

किसान आंदोलन के नेता कैसे बदल रहे हैं अपनी रणनीति? - Farmers Protest : How leaders are changing plans
दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
बीते नौ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान अब और आक्रामक रुख़ अपना रहे हैं।
 
शनिवार को सरकार के साथ होने वाली पाँचवे दौर की बैठक से पहले किसानों ने साफ कर दिया है कि अब वो अपनी माँगों से पीछे नहीं हटेंगे।
 
पहले जो किसान एमएसपी का क़ानूनी अधिकार मिलने पर मानने को तैयार थे, वो अब तीनों क़ानूनों को रद्द करने से कम किसी भी बात पर मानने को तैयार नहीं हैं।
 
कीर्ति किसान यूनियन के स्टेट वाइस प्रेसिडेंट राजिंदर सिंह कहते हैं, "हमारी एक ही माँग है कि तीनों क़ानून पूरी तरह रद्द होने चाहिए। हम इससे कम किसी भी बात पर नहीं मानेंगे। सरकार से जो चर्चा होनी थी, हो चुकी। अब दो-टूक बात होगी। जब तक सरकार क़ानून वापस नहीं लेगी, हम यहीं डटे रहेंगे।"
 
पंजाब और हरियाणा की किसान यूनियनों ने 26-27 नवंबर को 'दिल्ली चलो' आंदोलन का आह्वान किया था।
 
पंजाब से दिल्ली की तरफ मार्च कर रहे किसानों के काफ़िले को रोकने की सरकार ने हरसंभव कोशिश की। सड़कों पर बैरिकेड लगाये, सड़के खोद दीं, पानी की बौछारें कीं, लेकिन किसान हर बाधा को लांघते हुए दिल्ली पहुँच गए।
 
तब से हर दिन किसानों का आंदोलन और मज़बूत होता जा रहा है। पंजाब और हरियाणा से घर-घर से लोग यहाँ पहुँच रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए किसान आंदोलन के नेता भी अपनी रणनीति बदल रहे हैं।
 
8 दिसंबर का 'भारत बंद'
सरकार ने किसानों को बुराड़ी मैदान जाकर प्रदर्शन करने का आह्वान किया था। किसान यूनियन से जुड़े एक नेता के मुताबिक़, कई यूनियनें इस पर सहमत भी हो गईं थीं, लेकिन फिर जनाक्रोश को देखते हुए उन्हें सीमाओं पर ही डटे रहने का निर्णय लेना पड़ा।
 
किसान नेता कहते हैं कि "जनता में ज़बरदस्त गुस्सा है। अगर यूनियन के नेता सरकार से समझौता करेंगे, तो किसान अपने नेताओं को ही बदल देंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे।"
 
अब किसानों ने शनिवार और रविवार की वार्ता पूरी होने से पहले ही आठ दिसंबर को भारत बंद का ऐलान कर दिया है। क्या ये वार्ता को डीरेल यानी पटरी से उतारने का एक प्रयास है?
 
इस पर महाराष्ट्र से आये किसान नेता संदीप गिड्डे कहते हैं, "8 दिसंबर के भारत बंद की घोषणा करके हमने सरकार को अपनी रणनीति बता दी है। सरकार स्पष्ट रूप से समझ ले कि अगर उसने माँगे नहीं मानीं, तो ये आंदोलन और बड़ा होता जाएगा।"
 
गिड्डे कहते हैं, "अब दिल्ली के सातों बॉर्डर पूरी तरह सील कर दिये जायेंगे और किसान आंदोलन से जुड़े प्रमुख लोग हर बॉर्डर पर तैनात रहेंगे। किसी भी मोर्चे को खाली नहीं छोड़ा जाएगा।"
 
'मोदी मैजिक' ख़त्म कर देगा आंदोलन?
राजिंदर सिंह कहते हैं कि 'सरकार सिर्फ़ इसलिए इन क़ानूनों पर पीछे नहीं हट रही, क्योंकि सरकार को यह लग रहा है कि यदि वो पीछे हटी तो प्रधानमंत्री मोदी का जो जादू है, वो टूट जाएगा।'
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह कहते रहे हैं कि ये कृषि क़ानून किसानों के हित में हैं और किसानों को प्रदर्शन करने के लिए बरगलाया गया है।
 
वाराणासी में दिये अपने बयान में भी प्रधानमंत्री मोदी ने यही बात दोहराई थी। इसके बाद से उन्होंने इस विषय पर कोई बयान नहीं दिया है।
 
राजिंदर कहते हैं, "हम दो टूक बात करेंगे कि आप क़ानून रद्द करोगे या नहीं। मोदी सरकार यह जानती है कि इन क़ानूनों को रद्द करने का मतलब 'मोदी मैजिक' को ख़त्म करना होगा। जो मोदी सरकार का सात साल का कार्यकाल है, जिसमें उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी जैसे जन-विरोधी निर्णय लिये और उनकी वजह से जनाक्रोश है। मोदी सरकार अपना चेहरा बचाना चाहती है।"
 
किसान संगठन अब आगे क्या करेंगे
ओडिशा से आये किसान नेता अक्षय सिंह कहते हैं कि "दूर के राज्यों के किसान भले ही दिल्ली नहीं पहुँच पा रहे, लेकिन वो अपने राज्यों में आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।"
 
नव-निर्माण किसान संगठन से जुड़े अक्षय सिंह कहते हैं, "ओडिशा दिल्ली से दो हज़ार किलोमीटर दूर है। हमारे किसान यहाँ तो नहीं पहुँच सकते, लेकिन हम ओडिशा में आंदोलन तेज़ करने जा रहे हैं। यदि सरकार ने ये क़ानून वापस नहीं लिये तो हम हर ज़िले में प्रदर्शन करेंगे। ये अब सिर्फ़ किसान आंदोलन नहीं है, बल्कि सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ एक जनांदोलन है।"
 
अक्षय सिंह कहते हैं, "पहले सरकार जनता की नौकर होती थी, अब कार्पोरेट की नौकर हो गई है। जनता को यह बात समझ में आ रही है कि इस सरकार में फ़ैसले प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि कोई और ले रहा है।"
 
राजिंदर सिंह मानते हैं कि 'किसान नेताओं ने भी अंदाज़ा नहीं लगाया था कि ये आंदोलन इतना बड़ा हो जाएगा।'
 
वे कहते हैं, "हम छह महीने का राशन लेकर आये थे, लोगों ने और राशन भेज दिया और अब हमारे पास दो साल तक का राशन है। अब मोदी सरकार को सोचना चाहिए कि वो इस आंदोलन को कितना लम्बा चलाना चाहती है। जितना लंबा आंदोलन चलेगा, सरकार उतनी फंसती जायेगी।"