नई दिल्ली। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले निरस्त किए गए 3 विवादास्पद कृषि कानूनों का मुद्दा एक बार फिर गरमाता दिख रहा है। वजह है केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का एक बयान, जिसमें उन्होंने फिर इन कानूनों को लाने के संकेत दिए।
तोमर के इस बयान को आधार बनाकर कांग्रेस ने शनिवार को सरकार पर पूंजीपतियों के दबाव में दोबारा काले कानूनों को वापस लाने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से स्पष्टीकरण की मांग की।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो तोमर के बयान को प्रधानमंत्री की माफी का अपमान करार दिया और कहा कि सरकार ने इन विवादास्पद कानूनों पर यदि फिर से अपने कदम आगे बढ़ाए तो देश का किसान फिर सत्याग्रह करेगा। पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को पराजित कर उसे सबक सिखाने की लोगों से अपील की।
दरअसल, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को नागपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को आजादी के बाद लाया गया एक बड़ा सुधार करार दिया था और संकेत दिया था कि सरकार इन कानूनों को वापस ला सकती है।
उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में उनके द्वारा आयोजित कृषि उद्योग प्रदर्शनी एग्रोविजन का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में कहा था, कृषि क्षेत्र में निजी निवेश का आज भी अभाव है। हम कृषि सुधार कानून लेकर आए थे, कुछ लोगों को यह रास नहीं आया, लेकिन वह 70 वर्षों की आजादी के बाद एक बड़ा सुधार था, जो नरेंद्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था।
उन्होंने आगे कहा, लेकिन सरकार निराश नहीं है। हम एक कदम पीछे हटे हैं, आगे फिर बढ़ेंगे, क्योंकि हिंदुस्तान का किसान हिंदुस्तान की रीढ़ की हड्डी है। तोमर की इस टिप्पणी पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि देश के कृषि मंत्री ने प्रधानमंत्री की माफी का अपमान किया है और यह बेहद निंदनीय है।
उन्होंने कहा, अगर फिर से कृषि विरोधी कदम आगे बढ़ाए तो फिर से अन्नदाता का सत्याग्रह होगा- पहले भी अहंकार को हराया था, फिर हराएंगे! गांधी ने किसान प्रदर्शन हैशटैग का इस्तेमाल किया। इस टिप्पणी के संदर्भ में कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि तोमर के बयान से तीन किसान विरोधी कृषि कानून वापस लाने की ठोस साजिश का पर्दाफाश हो गया है।
उन्होंने कहा, कृषि मंत्री के बयान से मोदी सरकार का किसान विरोधी षड्यंत्र और चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। यह साफ है कि मोदी सरकार पांच राज्यों के चुनाव के बाद एक बार फिर किसान विरोधी तीनों काले कानून नई शक्ल में लाने की साजिश कर रही है और वह ऐसा पूंजीपति मित्रों के दबाव में कर रही है।
उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब सहित पांच राज्यों के चुनावों में हार का आभास करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगी थी और संसद में तीन काले कानूनों को निरस्त कर दिया था। यह दिल्ली की सीमाओं पर 380 दिनों से अधिक समय तक चले सबसे लंबे, शांतिपूर्ण, गांधीवादी आंदोलन के बाद हुआ, जहां 700 से अधिक किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने कहा, तब भी हमें प्रधानमंत्री, भाजपा, आरएसएस और मोदी सरकार की मंशा पर शक था।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि कानूनों को निरस्त करने के तुरंत बाद, भाजपा के कई नेताओं ने बयान दिए थे जो तीन कृषि कानूनों को वापस लाने की साजिश की ओर इशारा करते थे। सुरजेवाला ने कहा कि 21 नवंबर को राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा था कि निरस्त कर दिए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लाया जाएगा और भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने भी इस सिलसिले में एक बयान दिया था।
उन्होंने कहा, स्वाभाविक तौर पर वह कदम दोबारा बढ़ाएंगे यानी ये काले कानून पांच राज्यों के चुनाव के बाद वापस लेकर आएंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ऐसी किसी भी साजिश को सफल नहीं होने देगी। उल्लेखनीय है कि 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर सरकार के कदम वापस खींच लिए थे और देश से क्षमा मांगते हुए इन्हें निरस्त करने की घोषणा की थी।
उन्होंने कहा था, हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव-गरीब के उज्ज्वल भविष्य के लिए, पूरी सत्यनिष्ठा से, किसानों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी, लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि इन कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पूरी कर ली जाएगी। साथ ही उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर एक समिति गठित करने की घोषणा करते हुए किसानों से अपना आंदोलन वापस लेने की गुजारिश भी की थी।
इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन एक विधेयक लाकर इन कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। इस विधेयक के पारित होने के बाद किसानों ने सशर्त अपना आंदोलन वापस ले लिया था। केंद्र सरकार पिछले साल कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 विधेयक लेकर आई थी।
इसके बाद 26 नवंबर से बड़ी संख्या में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की सीमाओं पर डट गए और विरोध प्रदर्शन आरंभ कर दिया था। ज्ञात हो कि अगले साल की शुरुआत में पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। पंजाब को छोड़कर शेष चार राज्यों में भाजपा का शासन है।(भाषा)