गुरुवार, 21 नवंबर 2024
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मैं धरती हूं : मेरी सहनशक्ति की परीक्षा मत लीजिए

Earth
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5 June World Environment Day Prithvi tatva: मनुष्‍यों के रहने के लिए वर्तमान में एक ही जगह है और वह है धरती। उसमें भी सभी जगह मनुष्य नहीं रह सकता। मनुष्य की खतरनाक गतिविधियों के चलते धरती की सहनशक्ति अब लगभग समाप्ति की कगार पर है। इसके कई कारण है।
 
 
1. धरती पर भार : धरती के करीब 70 प्रतिशत भाग पर समुद्र का विस्तार है। धरती पर जल का भार सबसे अधिक माना गया है, लेकिन यह भार धरती के लिए जरूरी है क्योंकि यह धरती को टिकाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शोध के अनुसार अकेले प्लास्टिक का वजन ही धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं के वजन से ज्यादा है। जहां जमीन और समुद्र में मौजूद सभी जीवों का वजन करीब 4 गीगाटन है जबकि अकेले प्लास्टिक का वजन 8 गीगाटन के करीब है। पेड़ों और झाड़ियों का वजन 900 गीगाटन है जबकि उसके विपरीत सभी बिल्डिंग्स और रोड एवं अन्य निर्माण का वजन करीब 1,100 गीगाटन है। अनुमान है कि यदि इंसान इसी दर से निर्माण करता रहा तो 2040 तक इंसानों द्वारा निर्मित सभी वस्तुओं का वजन 1.1 टेराटन से बढ़कर 3 टेराटन हो जाएगा।
 
2. क्या है पृथ्‍वी : मिट्टी, पत्थर, पानी, हवा, आग और आकाश मिलाकर धरती बनी है। इसे जड़ जगत का हिस्सा कहते हैं। हमारा शरीर भी धरती का ही एक हिस्सा है। धरती मनुष्य और अन्य प्राणियों के रहने का स्थान है। यहीं पर जल, वायु और अग्नि भी निवास करते हैं। पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जिस पर पानी तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। ठोस, तरल और गैस। इसी से मौसम बनता और ऋ‍तु चक्र चलता है। 
 
3. पुराणों में धरती : पुराणों में पृथ्वी को भूदेवी कहा गया है जो कि श्रीहरि विष्णु की पत्नी हैं। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर धरती को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाया था। बाद में उन्होंने कई जन्म लिए। माता सीता और मंगलवेद उनकी संताने हैं। हालांकि पुराणों के अनुसार धरती का यह प्रौढावस्था का काल कहा गया है। हालांकि वेदों में धरती को लेकर अलग धारणा है।
 
आंकड़े (figures): 
 
1. खनन से खोगली होती धरती : खनन, उत्खनन या खुदाई का अर्थ है धरती के शरीर पर फावड़ा चलाना, उसके शरीर को छलनी करना। खनन 5 जगहों पर हो रहा है- 1.नदी के पास खनन, 2.पहाड़ की कटाई, 3.खनीज, धतु, हीरा क्षेत्रों में खनन, 4.समुद्री इलाकों में खनन और 5.पानी के लिए धरती के हर क्षेत्र में किए जा रहा बोरिंग। इन सभी से धरती खोखली होती जा रही है।
 
2. भू-जल स्तर के गिरने से धंसती धरती : भूजल स्तर गिरने से जमीन की भीतरी परत जहां पानी इकठ्ठा होता है, वह सिकुड़ रही हैं और जमीन बैठती जा रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, पिछले दशक में उत्तरी भारत का भूजल 8.8 करोड़ एकड़-फिट कम हो चुका है। यहां भूजल के खत्म होने के चलते जमीन की सतह का आकार तेजी से बदल रहा है। भारत में ही लगभग 433 अरब क्यूबिक मीटर भूजल का सालाना इस्तेमाल होता है। शोध बताते हैं कि यह बहुत खतरनाक स्तर है। भविष्‍य में धरती भीतर से जब दरकने लगेगी तो भूकंप और बाढ़ के साथ ही समुद्र में सुनामी की संख्‍या बढ़ती जाएगी और धरती समुद्र में समा जाएगी।
3. बढ़ रहा धरती का तापमान : नदी के सूखने, वायु प्रदूषण, वृक्ष और पहाड़ कटने और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने से धरती का तापमान 1 डीग्री से ज्यादा बढ़ गया है, जिसके चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। 
 
4. प्राकृतिक संसाधनों का दोहन : रेत, गिट्टी, खनिज पदार्थों, हीरा, कोयला, तेल, पेट्रोल, धातु और पानी के लिए संपूर्ण धरती को ही खोद दिया गया है। कहीं हजार फीट तो कहीं 5 हजार फीट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। खोखली भूमि भविष्य में जब तेजी से दरकने लगेगी तब मानव के लिए इस स्थिति को रोकना मुश्‍किल हो जाएगा।
 
5. कटते वृक्ष से घटता ऑक्सीजन : ब्राजील, अफ्रीका, भारत, चीन, रशिया और अमेरिका के वन और वर्षा वनों को तेजी से काटा जा रहा है। वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सीएफसी जैसी जहरीली गैसों को सोखकर धरती पर रह रहे असंख्य जीवधारियों को प्राणवायु अर्थात 'ऑक्सीजन' देने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जंगल हैं तो पशु-पक्षी हैं, जीव-जंतु और अन्य प्रजातियां हैं। कई पशु-पक्षी, जीव और जंतु लुप्त हो चुके हैं। पेड़ों की भी कई दुर्लभ प्रजातियां और वनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं।
 
6. सूखती नदियों से गहराता जल संकट और लुप्त हो रहे जलीय जीव : विश्व की प्रमुख नदियों में नील, अमेजन, यांग्त्सी, ओब-इरिशश, मिसिसिप्पी, वोल्गा, पीली, कांगो, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, नर्मदा आदि सैकड़ों नदियां हैं। ये सारी नदियां पानी तो बहुत देती हैं, परंतु एक ओर जहां बिजली उत्पादन के लिए नदियों पर बनने वाले बांध ने इनका दम तोड़ दिया है तो दूसरी ओर मानवीय धार्मिक, खनन और पर्यावरणीय गतिविधियों ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के लिए, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। इसके कारण तो कुछ नदियां लुप्त हो गई हैं और कुछ लुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं। जब सभी नदियां सूख जाएंगी तो भयानक जल संकट से त्रासदी की शुरुआत होगी।
 
7. पर्वत बने मैदान : पर्वत धरती की भुजाएं या कहें कि हवाओं का घर है। पक्के मकानों और सिमेंट की सड़कों के चलते पर्वत अब मैदान बनने लगे हैं। बहुत से शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआ करते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदान कर दिए हैं। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगा है। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अब ज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अब समझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहर ढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठित तो बारिश भी अब बिखर गई है। सोचिये जब धरती पर पर्वत नहीं होंगे तो क्या धरती होगी। एक सूखा मैदान या रेगिस्तान। 
 
8. समुद्र और रेगिस्तान : ग्लेशियर के पिघलने और समुद्री उत्खनन के कारण खबर में आया है कि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और आने वाले समय में बहुत से तटवर्ती नगर डूब जाएंगे। मतबल धरती पर भविष्य में या तो रेगिस्तान रहेगा या समुद्र। समुद्र में जीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत। सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनके अध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य की सीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती के गर्भ से पानी को सूखा दिया। और फिर चला मानव को खतम करने का चक्र। लोग पानी, अन्न और छाव के लिए तरस गए। लोगों का पलायन और रेगिस्तान की चपेट में आकर मर जाने का सिलसिला लगातार चलता रहा। उक्त पूरे इलाके में सिर्फ चार गति रह गई थी- तेज धूप, बाढ़, भूकंप और रेतीला तूफान। यदि यही हालात रहे तो भविष्य कहता है कि बची हुई धरती पर फैलता जाएगा रेगिस्तान और समुद्र।

9. धरती पर गिरते बम से बदसूरत होती धरती : धरती वैसे ही ज्वालामुखी के विस्फोट से परेशान है और उपर से परमाणु परिक्षण करना तो धरती की हत्या करने के जैसा ही है। जानकार लोग लगातार इस बात की चेतावनी देते रहे हैं कि परमाणु और रासायनिक हथियारों का उपयोग धरती पर से जीवन को ही नहीं धरती को भी लुप्त कर देगा। ICAN के मुताबिक, एक परमाणु बम पूरा शहर तबाह कर देगा. अगर आज के समय में कई सारे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है तो इसमें करोड़ों लोग मारे जाएंगे। वहीं, अगर अमेरिका और रूस के बीच बड़ा परमाणु युद्ध छिड़ गया तो मरने वालों की संख्या 10 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। यह तो बात है परमाणु बमों की लेकिन आधुनिक युग में धरती पर कई युद्ध हुए जिसमें जिन बमों का उपयोग किया गया उससे जहां धरती का तापमान बढ़ा वहीं धरती को भीतर तक बहुत नुकसान भी झेलना पड़ा। दूसरे विश्‍व युद्‍ध में बमबारी में ब्रिटेन का शहर कॉवेंटरी चूर-चूर हो गया था और जर्मनी का शहर ड्रेसडेन तो लगभग पूरी तरह जमींदोज ही हो गया था। तीन साल में इस शहर में 4000 टन बम गिरा दिए गए थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के खिलाफ जर्मनी के बमबारी अभियान का नाम ब्लिट्ज था। ब्लिट्ज के दौरान ही 29 हजार टन बम गिराए गए थे। आज हम देख रहे हैं कि किस तरह एक खूबसूरत धरती के देश यूक्रेन के क्या हालात हैं।