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Written By संदीपसिंह सिसोदिया

'ग्लोबल वॉर्मिंग स्केप्टिक्स' सिद्धांत

डरें नहीं ग्लोबल वॉर्मिंग से

World Environment Day | ''ग्लोबल वॉर्मिंग स्केप्टिक्स'' सिद्धांत
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ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगातार होती बहस के बीच कुछ लोगों का मानना है कि इससे नुकसान की बजाय फायदे भी होंगे। उनकी नजर में यह एक प्राकृतिक घटना है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए। इस सिद्धांत को 'ग्लोबल वॉर्मिंग स्केप्टिक्स' कहा जा रहा है।

इसके मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग एक प्राकृतिक चक्र का हिस्सा है, जो हमेशा पृथ्वी पर जलवायु को बदलता रहा है। इसके मुताबिक बदलती जलवायु से धरती को कई लाभ हो सकते हैं। जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बढ़ती गरमी समुद्र में जलवाष्पीकरण में इजाफा करेगी। नतीजतन ज्यादा नमी उत्पन्न होगी जो हवा के साथ बह कर ऊष्णकटिबंधीय रेगिस्तानी क्षेत्रों में अप्रत्याशित रूप से नमी में वृद्धि करेगी, जिससे वहां हरियाली उत्पन्न होगी।

इसी प्रकार बढ़ते कार्बन फुट प्रिंट्स से भी नुकसान के बजाय फायदा इसलिए होगा कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उच्च स्तर पेड़-पौधों को जल्दी बढ़ाने में ट्रिगर का काम करेगा। इस प्रकार ग्लोबल वॉर्मिंग धरती के इकोलॉजिकल सिस्टम को सकारात्मक रूप से बदलने में सहायक होगी।

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स्केप्टिक्स के अनुसार धरती पर आया पिछला हिमयुग भी तभी खत्म हुआ था, जब ग्लोबल वॉर्मिंग का एक दौर चला था जिससे बर्फ पिघली और पृथ्वी पर जीवन के लिए अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ बनी थीं।

ग्लोबल वॉर्मिंग स्केप्टिक्स के पक्ष में कुछ तार्किक आँकड़े भी हैं, जो दर्शाते हैं कि पृथ्वी पर पहले के युगों में आज की अपेक्षा अधिक गर्म वातावरण था। अतीत में दर्ज किए गए आँकड़े बताते हैं कि हजारों साल पहले की जलवायु आज की अपेक्षा ज्यादा गर्म थी।

उस समय के गर्म माहौल के कारण ही कई प्रजातियों का प्रादुर्भाव हुआ था। इस हिसाब से ग्लोबल वॉर्मिंग वर्तमान जलवायु में कई सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है, जो विकास चक्र को तेज कर सकते हैं।

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कुछ स्केप्टिक्स के मुताबिक पृथ्वी पर आज मौजूद ठंडी जलवायु की अपेक्षा पहले की गर्म जलवायु विकास क्रम के लिए ज्यादा मुफीद थी। पृथ्वी पर तापमान तब के मुकाबले आज काफी ठंडा हो चुका है। भूगर्भिक समय के अनुसार पहले पृथ्वी का औसत तापमान 22 डिग्री सेल्सियस था जो अब कम हो कर 15.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।

भविष्य में ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र का स्तर बढ़ने की बात से तो स्केप्टिक थ्योरी को मानने वाले भी इनकार नहीं करते, लेकिन उनका मानना है कि इस प्रक्रिया के धीरे-धीरे होने से इसका सामना कर खुद को इसके साथ अनुकूलित किया जा सकता है।

इसके पीछे इतिहास के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं, जब बड़े भू-भागों या मानव बसाहट के क्षेत्रों को समुद्र लील गया। इस स्केप्टिक्स थ्योरी के आधार पर लोगों में ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर मतभेद पता चलता है, पर अधिकांश लोगों की नजर में ग्लोबल वॉर्मिंग पृथ्वी के लिए सिर्फ नुकसानदायक है और इसे कम करने के प्रयासों पर और अधिक काम करने की जरूरत है।