शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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  4. What was important for the media, Rahul Gandhi or Mafia Atiq Ahmed?

मीडिया के लिए क्‍या जरूरी था राहुल गांधी या माफिया अतीक अहमद?

rahul atiq
उम्‍मीद कीजिए कि मंगलवार को माफिया अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा मिलने के बाद मीडिया चैन की नींद सोएगा।
राहुल गांधी को सूरत कोर्ट ने मानहानि के मामले के दो साल की सजा सुनाई है। उनकी लोकसभा सदस्‍यता खत्‍म कर दी गई है। अप्रैल में राहुल गांधी को अपना सरकारी बंगला खाली करने के लिए कह दिया गया है। वे सरकार से अडानी मामले में लगातार मुखर होकर सवाल-जवाब कर रहे हैं। राहुल गांधी जिन मुद्दों को लेकर सरकार पर हमलावर हैं, उन मुद्दों को सिरे से खारिज नहीं कर सकते। विपक्ष का काम भी यही कि वो सरकार की गतिविधियों को संशय भरी नजरों से देखें और उन पर सवाल उठाएं।

इसके अलावा देश में महंगाई से लेकर बेरोजगारी और क्‍लाइमेट चैंज जैसे कई जरूरी मुद्दे हैं, जिनके बारे में सरकार से लेकर विपक्ष और शेष राजनीतिक दलों को विमर्श करना चाहिए। लेकिन लूट- डकैती, अपहरण और हत्‍याएं करने वाले उत्‍तर प्रदेश के माफिया अतीक अहमद पर देश का नेशनल मीडिया लहालोट है। मीडिया खासतौर से टीवी पत्रकारिता ने कई बार अपने पतन के उदाहरण दिए हैं। चाहे वो आफताब द्वारा श्रद्धा वॉलकर की हत्‍या का मामला हो, फिर चाहे दिल्‍ली में कार से घसीटे जाने वाली लड़की का केस हो। या एक्‍टर सुशांतसिंह की संदिग्‍ध मौत का मामला हो। ऐसे कई मामले हैं जिनमे मीडिया ने अपने स्‍तर पर इतनी छानबीन की है कि जनता को आज तक समझ नहीं आया है कि आखिर बाद में इन प्रकरणों का हुआ क्‍या है।

यूपी के माफिया अतीक अहमद के साबरमती से प्रयागराज कोर्ट में पेशी पर लाने की कवरेज ने तो मीडिया ने जो हरकतें कीं हैं, वे शर्मनाक हैं। कई टीवी चैनलों की टीमों ने तो साबरमती से लेकर प्रयागराज तक अतीक को ले जाने वाले पुलिस के काफिले के साथ सफर किया और करीब 1 हजार किलोमीटर की अतीक के सफर का पूरा सिलसिलेवार ब्‍यौरा दिया। यहां तक कि रास्‍ते में अतीक के रुककर शौचालय जाने के भी दृश्‍य दिखाए गए। यह सब बताया गया कि कब-कब अतीक को डर लगा, कब उसे लगा कि पुलिस उसका एनकाउंटर कर सकती है। ऐसा कोई एंगल नहीं था, जिसे टीवी चैनल ने न दिखाया हो। पुलिस के काफिले का दिन-रात पीछा किया गया। स्‍क्रीन पर लगातार और नॉनस्‍टॉप माफिया अतीक के फुटेज दिखाए जा रहे हैं। 24 घंटे किसी भी समाचार चैनल को लगा लीजिए वहां अब अतीक की कोर्ट में पेशी और उससे जुड़ी हर डिटेल, दृश्‍य और कवरेज मिल जाएंगे।

सवाल यह है क्‍या देश की जनता वाकई अतीक अहमद को ही देखना चाहती है, जिसे मीडिया ने इतना ग्‍लोरिफाई कर दिया। अतीक अहमद एक अपराधी है, यह भी सच है कि उत्‍तर प्रदेश में अपराध की दुनिया का वो सबसे बड़ा चेहरा है, लेकिन क्‍या उसकी पेशी के सामने देश के दूसरे तमाम मुद्दें गौण हो गए हैं।

इस बीच विपक्ष के नेता के रूप राहुल गांधी का चेहरा अब टीवी से गायब है। न वो मुद्दे हैं और न ही सवाल। मीडिया के पास न किसानों की फसलों की बर्बादी के आंकड़ें हैं और न ही आने वाले अनाज के संकट को लेकर कोई विमर्श। महंगाई, बेराजगारी और पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले जलवायु परिवर्तन को लेकर मीडिया में कहीं कोई सरगर्मी नहीं है। अगर मीडिया यही करता रहा तो आने वाले समय में मीडिया देश की क्‍या और कौनसी तस्‍वीर दिखाएगा, इसका अंदाजा लगाकर अपने आप को इस बात के लिए कोसा जा सकता है हमारे पास देखने के लिए टीवी स्‍क्रीन पर कुछ नहीं है।
उम्‍मीद कीजिए कि मंगलवार को माफिया अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा मिलने के बाद मीडिया चैन की नींद सोएगा।
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