शुक्रवार, 1 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. ICJ Dalabir Bhandari

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की कूटनीतिक विजय

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की कूटनीतिक विजय - ICJ Dalabir Bhandari
भारत के न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी का इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में न्यायाधीश के तौर पर दोबारा चुना जाना कोई सामान्य घटना नहीं है। भारत के लोगों की नजर इस चुनाव पर इसलिए भी टिकी थी कि उन्हें लगता था कि अगर हमारे देश का कोई न्यायाधीश होगा तो कुलभूषण जाधव के मामले में सहायता मिल सकती है। इस नाते हर भारतीय दलबीर भंडारी को उनकी जगह पर दोबारा देखना चाहता था।
 
जिस तरह से ब्रिटेन अपने उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के पक्ष में हरसंभव कूटनीतिक दांव चल रहा था और सुरक्षा परिषद के शेष 4 स्थायी सदस्य उसके साथ थे उसमें यह असंभव लग रहा था। इस नाते देखा जाए तो यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। यह भारत की सघन कूटनीतिक सक्रियता का ही परिणाम था कि ब्रिटेन को आखिरी क्षणों में अपने उम्मीदवार को चुनाव से हटाने को विवश होना पड़ा।
 
हालांकि ब्रिटेन ने बयान में कहा है कि भारत उसका मित्र देश है इसलिए उसके उम्मीदवार के दोबारा न्यायाधीश बनने पर उसे खुशी है, पर उसने अंत-अंत तक अपने उम्मीदवार को विजित कराने के लिए सारे दांव आजमाए। जब उसे यह अहसास हो गया कि भारत के पक्ष को कमजोर करना उसके वश में नहीं तो उसके पास पीछे हटने के लिए कोई चारा नहीं था। ऐसा नहीं होता तो संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे पर अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो जाती। महासभा बनाम सुरक्षा परिषद का यह टकराव भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता था इसलिए सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों ने भी संभव है कि ब्रिटेन को अंत में यह सुझाव दिया होगा कि वह अपने उम्मीदवार को हटा ले ताकि टकराव की स्थिति समाप्त हो जाए।
 
ध्यान रखिए, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 1946 में कार्य करना आरंभ किया था। तब से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ, जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में उसका कोई न्यायाधीश न रहा हो। इस तरह 1946 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ब्रिटेन की सीट नहीं होगी। यही नहीं, यह भी पहली बार है, जब सुरक्षा परिषद के किसी एक स्थायी सदस्य का कोई न्यायाधीश वहां नहीं होगा। इससे इस घटना का महत्व समझा जा सकता है।
 
भारत ने अपने उम्मीदवार के पक्ष में जोरदार प्रचार आरंभ किया था। इसी का परिणाम था कि पहले 11 दौर के चुनाव में भंडारी को महासभा के करीब दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन मिला था, लेकिन सुरक्षा परिषद में वे ग्रीनवुड के मुकाबले 4 मतों से पीछे थे। अंतिम परिणाम में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में हुए चुनाव में भंडारी को महासभा में 193 में से 183 वोट मिले जबकि सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों का मत मिला।
 
ऐसा यूं ही नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के स्थायी प्रतिनिधि मैथ्यू रिक्रोफ्ट ने 12वें चरण के मतदान से पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों सदनों के अध्यक्षों को संबोधित करते हुए एक समान पत्र लिखा। दोनों के अध्यक्षों के सामने पढ़े गए पत्र में रिक्रोफ्ट ने कहा कि उनके प्रत्याशी न्यायाधीश क्रिस्टोफर ग्रीनवुड ने अपना नाम वापस लेने का फैसला किया है।
 
आखिर जो व्यक्ति अंत-अंत तक उम्मीदवारी में डटा था उसने अचानक यह फैसला क्यों किया? इसलिए कि महासभा में वह भारत के समर्थन को कम करने में कामयाब नहीं हुआ और भारत किसी तरह दलबीर भंडारी का नाम वापस लेने को तैयार नहीं था। सच यह है कि ग्रीनवुड भी भंडारी के साथ 9 साल के कार्यकाल के लिए दोबारा चुने जाने की उम्मीद कर रहे थे।
 
रिक्रोफ्ट की ओर से लिखी गई चिट्ठी में कहा गया था कि ब्रिटेन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अगले दौरों के चुनाव के साथ सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा का कीमती समय बर्बाद करना सही नहीं है, यानी उसे आभास हो गया था कि भारत की कूटनीति के सामने वह कमजोर पड़ गया है। ब्रिटेन ने कहा है कि उसका निराश होना स्वाभाविक है, लेकिन यह 6 प्रत्याशियों के बीच का कड़ा मुकाबला था। इससे ब्रिटेन की मानसिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। जाहिर है, चुनाव के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव भी पैदा हुए।
 
ब्रिटेन को इसका अनुमान था इसलिए उसने अपने बयान में दलवीर भंडारी की जीत पर बधाई दी तथा कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों पर भारत के साथ अपना करीबी सहयोग जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन भारत के जज भंडारी सहित सभी सफल प्रत्याशियों को बधाई देता है।
 
निश्चय ही यह भारत के लिए खुशी का क्षण है तभी तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर खुशी जताते हुए लिखा, 'वंदे मातरम्- भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चुनाव जीत लिया। जय हिन्द।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीट कर कहा, 'न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी का दोबारा चुना जाना हमारे लिए गर्व का क्षण है।' उन्होंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनकी पूरी टीम को भी इस जीत के लिए बधाई दी। वास्तव में यदि विदेश मंत्रालय पूरी तन्मयता से इस कार्य में लगा नहीं होता तो भारत को सफलता मिलनी मुश्किल थी।
 
नीदरलैंड्स के द हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं। हर 3 साल बाद आईसीजे में 5 न्यायाधीशों का 9 वर्ष के कार्यकाल के लिए चुनाव होता है। आरंभ के 4 चक्रों के मतदान के बाद फ्रांस के रूनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ, ब्राजील के एंटोनियो अगुस्टो कैंकाडो, लेबनान के नवाफ सलाम का आसानी से चुनाव हो गया।
 
इन चारों को संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में आसानी से बहुमत मिल गया था। इसके बाद आखिरी बची सीट पर भारत और ब्रिटेन के बीच कड़ा मुकाबला था। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड को सुरक्षा परिषद में बहुमत मिलता दिख रहा था जबकि 193 देशों की आम महासभा में भंडारी को समर्थन था।
 
यह चुनाव कितना बड़ा मुद्दा बन गया था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी मीडिया में भारत को महासभा में मिल रहे समर्थन को न केवल ब्रिटेन बल्कि सुरक्षा परिषद में शामिल विश्व की महाशक्तियों के लिए 'खतरे की घंटी' तक कह दिया गया। कहा गया कि इससे कोई ऐसी परिपाटी विकसित न हो जाए, जो भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो।
 
वास्तव में भारत जिस तरह से ब्रिटेन को आमसभा में पीछे धकेलने में कामयाब हो रहा था, वह अनेक पर्यवेक्षकों के लिए अप्रत्याशित था। एक समय ब्रिटेन ने संयुक्त सम्मेलन व्यवस्था का सहारा लेने पर भी विचार किया। इसमें महासभा एवं सुरक्षा परिषद की बैठक एकसाथ बुलाई जाती है तथा सदस्यों से खुलकर समर्थन और विरोध करने को कहा जाता है। इसमें समस्या हो सकती थी। संभव था कई देश जो भारत को चुपचाप समर्थन कर रहे थे, वे खुलकर ऐसा न कर पाते।
 
माना जा रहा था कि चारों स्थायी सदस्यों से मशविरा करने के बाद ही ब्रिटेन ने संयुक्त अधिवेशन के विकल्प पर विचार किया था। रूस, अमेरिका, चीन व फ्रांस को भी यह चिंता थी कि आज ब्रिटेन जहां फंस रहा है कल वहां वे खुद भी हो सकते हैं इसलिए वे ब्रिटेन के साथ खड़े थे। सच यही है कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में भारत के मजबूत आधार को देख ब्रिटेन परेशान था। उसे साफ हो गया था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के दबदबे को तोड़ पाना उसके बूते की बात नहीं है। 
 
भारत ने अपने उम्मीदवार दलवीर भंडारी के सम्मान में जो भोज दिया उसमें दुनिया के 160 देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी ने उसे चौंका दिया। इसके बाद उसने औपचारिक चुनाव प्रक्रिया रोकने तक की कोशिश की। इसके लिए उसने सुरक्षा परिषद के सदस्यों से अनौपचारिक बातचीत शुरू की।
 
ब्रिटेन ने प्रस्ताव दिया कि सुरक्षा परिषद में मतदान के बाद चुनाव प्रक्रिया रोक दी जाए। इसके बाद संयुक्त अधिवेशन आरंभ हो। इसके तहत महासभा व सुरक्षा परिषद से 3-3 सदस्य नामित हों। फिर 6 देशों के ये प्रतिनिधि ही न्यायाधीश की अंतिम सीट के लिए निर्णायक फैसला सुनाएं। किंतु इसके खिलाफ विद्रोह होने की आशंका थी इसलिए सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्य देशों ने भी ब्रिटेन के इस प्रस्ताव का साथ नहीं दिया।
 
ब्रिटेन को चुनाव प्रक्रिया रुकवाने के लिए सुरक्षा परिषद में 9 सदस्यों का समर्थन चाहिए था। इतना समर्थन उसे पहले से मिल रहा था। लेकिन ऐसा लगता है कि इस प्रस्ताव पर उसे समर्थन नहीं मिला। इसके बाद उसके पास विकल्प क्या था? भारत की कूटनीति इसके समानांतर जारी थी। भारत भी सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों के संपर्क में था।
 
इस तरह देखें तो यह हर दृष्टि से भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कूटनीतिक जीत दिखाई देगी। पहली बार सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में टूट हुई एवं उन्हें मन के विपरीत मतदान करना पड़ा।