शुक्रवार, 15 नवंबर 2024
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Written By Author जितेंद्र जायसवाल

आईटी में राजभाषा हिंदी की सरपटिया प्रगति

आईटी में राजभाषा हिंदी की सरपटिया प्रगति - Hindi IT
सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी के लिए 2014 कई तरह की सफलताओं से भरा रहा। यदि यह कहा जाए कि इस वर्ष हिंदी ने आईटी में मील के कई पत्थर गाढ़े, तो गलत नहीं होगा। आज कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि हर क्षेत्र में हिंदी की मौजूदगी बढ़ती ही जा रही है जो कि एक सुखद प्रगति है। यह एक ऐसा पड़ाव है जिसने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि भारत में पैर जमाने हैं, तो राष्ट्रभाषा हिंदी के पैर पकड़े बिना यह संभव नहीं। यही कारण है कि दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियाँ अपने उत्पादों का भारतीयकरण कर ही हैं। इनमें वे कंपनियाँ भी शामिल हैं जिनके उत्पाद पहले से भारत में मौजूद हैं लेकिन उनकी मुख्य भाषा अंग्रेज़ी है। 
 
स्थानीयकरण से जुड़े होने के कारण दुनिया के कई भागों में मुझे स्थानीयकरण से जुड़ी बैठकों और कॉन्फ़्रेंस में जाने और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों से बातचीत करने का अवसर मिला। इन्हीं चर्चाओं में मैंने पाया कि गैर–हिंदी विदेशी समाज में भारत के प्रति एक सामान्य धारणा यह है कि भारतीयों को तो अच्छी अंग्रेज़ी आती है और वे लोग अंग्रेज़ी में उत्पादों का उपयोग आसानी से कर लेते हैं इसलिए उत्पादों के भारतीयकरण में धन निवेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ हद तक यह धारणा सही भी है। यह बात ठीक है कि हिंदुस्तानियों की औसत अंग्रेज़ी समझ कुछ अन्य देशों जैसे चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड जैसे कई देशों से अपेक्षाकृत बेतहर है। यही कारण है कि हम बीपीओ व्यवसाय में अत्यधिक सफल हैं तथा विदेशों में रोज़गार पाने वाले पेशेवरों में भी भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन यह पूरे चित्र का केवल एक छोटा सा भाग है।
 
भारत केवल उन कुछ शहरों तक ही सीमित नहीं है जिनके बारे में लोगों की यह धारणा है या जिन शहरों को बाहर के लोगों ने देखा है। हमारे देश का सबसे बड़ा वर्ग गाँवों में बसता है जहाँ अंग्रेज़ी अभी भी दूर है और जहाँ हमारी राष्ट्रभाषा अभी भी प्राणों की भाषा बनी हुई है। डॉ. ओम विकास ने अपने एक आलेख में सच ही कहा है कि हमारे देश में वोट माँगने की सबसे बड़ी भाषा हिंदी है।
 
धीर–धीरे अब यह धारणा टूट रही है कि अंग्रेज़ी भाषा के उत्पाद ही चल जाएँगे। कुछ कारणों में एक प्रमुख कारण यह भी है कि हमारे गाँव तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं। स्मार्टफ़ोन के जरिये इंटरनेट हर हाथ में पहुँच चुका है। तकनीक के प्रति भारतीयों के प्रेम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सवा अरब की आबादी वाले देश में 92 करोड़ मोबाइल फ़ोन उपभोक्ता हैं और यह संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ भी रही है। इस तेज़ी को देखते हुए लगता है कि अगले दो सालों में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या एक अरब के पार होगी। बहुराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय कंपनियों की व्यावसायिक रणनीतियाँ यह कह रही हैं कि यदि भारत में सफल होना है तो केवल अंग्रेज़ी नहीं चलेगी। भारतीय लोगों को वह उत्पाद देना होगा जो उनकी अपनी भाषा बोलता हो, समझता हो। इसी भाषा में वे सहजता महसूस करते हैं। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस युग में उपयोगकर्ता अंग्रेजी उत्पाद को उपयोग करने के चरण रटने के बजाय वह उत्पाद पसंद करता है जो उसकी अपनी भाषा में बात करे। पूरी शिक्षा चाहे हमने अंग्रेजी में पाई हो, फिल्में और टीवी सीरियल आज भी हम अपनी भाषा में ही देखना पसंद करते हैं। यही बात आईटी उत्पादों पर भी लागू होती है।
 
हिंदी ही क्यों? जवाब साफ है। भारत विविध संस्कृतियों और भाषाओं वाला देश है। कई भाषाएँ बोली जाती हैं यहाँ लेकिन अगल पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली कोई भाषा है तो वह है हिंदी जो हमारे भारत के अधिकांश भागों में बोली जाती है, और जहाँ बोली नहीं जाती वहाँ कम से कम समझी तो जाती ही है।
 
जैसा कि हमने ऊपर बात की यह वर्ष उन सभी तरह की सफलताओं से भरा रहा जो हम हिंदी भाषाई कंप्यूटिंग में चाह रहे थे। सबसे पहले यदि हम इंटरनेट की बात करें तो हिंदी ने अधिक आक्रामकता से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पहले जहाँ हिंदी में खोज के गिने चुने परिणाम देखने के मिलते थे वहाँ अब यह संख्या हज़ारों में है। अब बमुश्किल ही ऐसा होता है कि आप हिंदी में खोज करने जाएँ और खोज इंजन आपको कोई परिणाम ही न दे पाए, जैसा कि पहले अक्सर होता था।
 
फ़ॉन्ट पर निर्भरता का युग अब बीतने को है। नई वेबसाइटें अब यूनिकोड के साथ आ रही हैं तथा पुरानी वेबसाइटें ट्रूटाइप फ़ॉन्ट से यूनिकोड में परिवर्तन कर रही हैं। यदि साहित्यिक और कुछ भाषा केंद्रित वेबसाइटों को छोड़ दिया जाए तो एक और काबिले गौर बात यह है कि अब ज्यादा से ज्यादा वेबसाइटें अंग्रेजी के साथ–साथ भारतीय भाषाओं में भी लॉन्च हो रही हैं जिनमें हिंदी प्रमुख है। पहले वेबसाइटों की भाषा केवल अंग्रेज़ी ही हुआ करती थी।
 
सोशल नेटवर्किंग साइटें इस पहल में सबसे आगे हैं। फ़ेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस आदि साइटें अब हिंदी में उपलब्ध हैं और हिंदी में इनका उपयोग भी खूब हो रहा है। फ़ेसबुक पर गालिब के लिप्यंतरित शेर वो मज़ा नहीं देते जो हिंदी में लिखे गए देते हैं। लोग हिंदी में पोस्ट लिख रहे हैं, ट्विट कर रहे हैं, हिंदी में पढ़ रहे हैं और हिंदी में टिप्पणियाँ कर रहे हैं। हिंदी ब्लॉगर के जरिये तो ब्लॉगरों ने धूम मचा रखी है। हिंदी माध्यम से भारत में जितनी ब्लॉगिंग हो रही है, उतनी संभवत: अंग्रेज़ी सहित किसी अन्य भाषा में नहीं हो रही।
 
स्मार्टफ़ोन बाज़ार में भी सैमसंग से हुई भारतीय भाषाओं में समर्थन की शुरुआत अब भारतीय बाज़ार में उतरने की एक मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है। लगभग सभी मोबाइल फ़ोन निर्माता हिंदी इंटरफ़ेस और लेखन को अनिवार्य सुविधा के रूप में पेश कर रहे हैं। ओप्पो जैसी नई–नई कंपनियाँ भी पहले अपने फ़ोन में हिंदी इंटरफ़ेस ला रही हैं फिर भारतीय बाज़ार में प्रवेश कर रही हैं। एक साल पहले तक स्मार्टफ़ोन को केवल अभिजात्य वर्ग का फ़ोन माना जाता था जो अंग्रेज़ी बोलता–समझता है। एंड्रॉइड वन जैसे सस्ते स्मार्टफ़ोन से यह धारणा भी टूटी है और अब स्मार्टफ़ोन हर आय वर्ग की पहुँच में आने लगा है। जाहिर है कि अब हिंदी भाषा का इंटरफ़ेस देना अनिवार्य है जो आसानी से उपलब्ध भी होने लगा है। विंडोज़ फ़ोन, एंड्रॉइड, आदि सभी फ़ोन हिंदी बोलने–लिखने में सक्षम हैं। खबर यह भी है कि एप्पल का आईफ़ोन भी जल्द ही हिंदी इंटरफ़ेस के साथ बाज़ार में होगा।
 
हिंदी में काम करने के उपकरणों में भी काफी परिवर्तन आया। हिंदी की वर्णमाला को हिंदी लिखने में सबसे बड़ी दिक्कत माना गया था। वर्णों की अधिकता के कारण कंप्यूटर और फ़ोन पर इसे लिखना आसान नहीं है। इस बाधा को गूगल ने समझा और लिप्यंतरण कीबोर्ड से इसका समाधान पेश किया। यह कीबोर्ड अब और बेहतर हुआ है और हर प्रकार का उपयोगकर्ता अब आसानी से हिंदी में लिख सकता है। गूगल अनुवाद भी बेहतर हुआ है जिससे हिंदीभाषियों को अंग्रेज़ी की सामग्री समझने में मदद मिल रही है। इतना ही नहीं, वॉइस टाइपिंग का विकल्प भी उपलब्ध है जिसका अर्थ यह है कि आप बस बोलते जाइए और आपका मोबाइल या कंप्यूटर हिंदी में खुद ब खुद टाइप करता चला जाएगा। मोबाइल और कंप्यूटर के लिए अब तमाम प्रमुख एप्लिकेशन में हिंदी में उपलब्ध हैं।
 
कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर के हिंदीकरण का माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा 2000 में किया गया प्रयोग अत्यंत सफल रहा। माइक्रोसॉफ़्ट ने सबसे पहले ऑफ़िस 2003 और विंडोज़ एक्सपी का हिंदी स्थानीयकरण किया जिसे अत्यधिक पसंद किया गया। माइक्रोसॉफ़्ट के पथ पर अन्य आईटी दिग्गज भी चले और आज लगभग सभी प्रमुख सॉफ़्टवेयर भी हिंदी में उपलब्ध हैं। गूगल के तो लगभग सभी उत्पाद हिंदी में उपलब्ध हैं और अत्यंत लोकप्रिय भी हैं। इनके अलावा नॉर्टन, मैकफ़े, याहू, एप्पल आदि बड़ी कंपनियों ने हिंदी में अपने उत्पाद भारत में प्रसतुत किए हैं।
 
हिंदी की यह सरपट प्रगति यह सिद्ध कर रही है कि आने वाले समय में हिंदी के बिना आईटी का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ सकता। हिंदी के लिए इससे सुखद अनुभूति कोई और नहीं कि आईटी में मनचाही जानकारी और उत्पाद सभी कुछ हिंदी में आसानी से उपलब्ध होता जा रहा है।