Poverty In America: गरीबी की गर्त में जाता ‘सुपर पॉवर अमेरिका’
अमेरिका की कुल आबादी में गरीबों की हिस्सेदारी साढ़े 12 प्रतिशत
Covid-19 के बाद से ये संख्या 17 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है
अमेरिका में 12.9 फीसदी महिलाएं गरीबी रेखा से नीचे
अमेरिका की सिटी ऑफ गोल्ड सेन फ्रांसिस्कों में क्यों बंद हो रहीं दुकानें?
दुनिया की महाशक्तियों में अमेरिका का नाम पहले नंबर पर आता है। अमेरिका सुपर पॉवर है। दुनिया पर अमेरिका की तूती बोलती है। अमेरिका की जीडीपी ग्रोथ दुनिया में सबसे हाई है
Poverty In America: अक्सर इस तरह की हैडलाइंस आपने खबरों में कई बार पढ़ी और सुनी होगी। अमेरिका को एल डोराडो (El Dorado) भी कहा जाता रहा है, यानी एक ऐसा शहर या देश जो सोने की खान हो। इस स्पेनिश टर्म का इस्तेमाल एक मेटाफॅर के तौर पर बेहद संपन्न देशों के लिए किया जाता है। मसलन, अमेरिका (United states of America)।
लेकिन, इस वक्त यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका यानी सुपर पॉवर अमेरिका गरीबी की गर्त में जाता नजर आ रहा है। अपनी शान ओ शोकत लिए जाने जाने वाली अमेरिका की गोल्डन सिटी सैन फ्रांसिस्को की तबाही इस बात की खुद ही गवाही दे रही है।
बाइडेनॉमिक्स का सपना दिखा रहे बाइडेन
आलम यह है कि अब अमेरिका में परिश्रम करने वाले परिवार और बेरोजगारों को नौकरी का आश्वासन दिया जा रहा है। इसके लिए 11 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन के ट्विटर हैंडल से एक मैसेज दिया गया है। इस वीडियो मैसेज में लोगों को बाइडेनॉमिक्स का सपना दिखाया जा रहा है। बाइडेन ने इस मैसेज में कहा है कि हम अमेरिका में संघर्ष करते परिवारों के लिए रोजगार उलपब्ध कराने के साथ ही कीमतें कम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बाइडेनॉमिक्स है।
बाइडेनॉमिक्स की हकीकत
एक तरफ राष्ट्रपति जो बाइडेन बाइडेनॉमिक्स की बात कर रहे हैं तो वहीं, अमेरिकी सोशल मीडिया में आ रहे मीम्स सरकार के दावों की पोल खोल रहे हैं। ये मीम्स सरकार के दावों का मखौल उड़ा रहे हैं। वे अमेरिका के गर्त में जाने के कारण बता रहे हैं, जिनकी वजह से अमेरिका गरीब होता जा रहा है।
बाइडेनॉमिक्स की पोल खोल रहे मीम्स बाइडेनॉमिक्स की हकीकत
भारी सरकारी खर्च।
देश में रिकॉर्ड तोड़ महंगाई।
रिटायरमेंट फंड का बर्बाद होना।
बैंकों का पतन या फेल होना।
कर्ज पर उच्च ब्याज दरें।
ग्रोसरी और रसोई गैस का महंगा होना।
कई तरह के टैक्स में बढ़ोतरी।
बड़े शहरों में अपराधों में इजाफा।
सैन फ्रांसिस्को से शुरू हो रहा अर्बन डिक्लाइन
एक तरफ राष्ट्रपति बाइडेन बाइडेनॉमिक्स की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण शहर सैन फ्रांसिस्को सुपर पॉवर की मुफलिसी की खुद गवाही दे रहा है। यहां गरीबी और नशे ने इस कदर लोगों को अपना शिकार बनाया है कि यहां के फुटपाथ किसी बेहद बदहाल फुटपाथ की तरह नजर आ रहे हैं। लोग गरीबी और नशे की चपेट में हैं। सुपर फूड के कई आउटलेट्स शटडाउन हो रहे हैं या होने की कगार पर हैं। अमेरिकी मीडिया में भी अब सैन फ्रांसिस्को की सड़कों पर खुलेआम ड्रग एक्टिविटी, सड़कों पर बढ़ते क्राइम, बंद पड़े शॉपिंग सेंटर और खाली पड़े डरावने दफ्तरों की तस्वीरें आम अमेरिकियों को डरा रही हैं।
नॉर्डस्ट्रॉम (Nordstrom) बंद हुआ : जैफ बेजोस ने सैन फ्रांसिस्को में अपना महत्वपूर्ण स्टोर बंद कर दिया है। साल 2020 से अब तक अमेरिकी लक्जरी रिटेल चेन नॉर्डस्ट्रॉम समेत करीब 2500 व्यावसायिक उपक्रमों ने सैन फ्रांसिस्को को अलविदा कह दिया है।
कुल मिलाकर 21वीं सदी का एल डोराडो माना जाने वाला सैन फ्रांसिस्को अब अर्बन डिक्लाइन यानी शहरी पतन के तौर पर उभर रहा है। अमेरिका में गरीबी को लेकर कुछ इसी तरह की बात हाल ही में दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार एलन मस्क ने एक ट्वीट के जरिए कही है।
ट्रंप के नारे में गरीबी के संकेत : अमेरिका में गरीबी के संकेत मिलना कोई नई बात नहीं है। इस बात की आशंका पहले से जाहिर होने लगी थी। साल 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप जब अमेरिका के राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुए तो, उन्होंने Make America Great Again का नारा दिया था। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर अमेरिका को फिर से महान बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
अमेरिका में सालाना 22 लाख रुपए से कम कमाने वाला परिवार गरीब
भारत में साल में 61 हजार 728 रुपए से कम वाला गरीब
अमेरिका की कुल आबादी में गरीबों की हिस्सेदारी साढ़े 12 प्रतिशत
Covid-19 के बाद से ये संख्या 17 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है
अमेरिका में 12.9 फीसदी महिलाएं गरीबी रेखा से नीचे
क्या हालात हैं अमेरिका में : रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की कुल आबादी में गरीबों की हिस्सेदारी साढ़े 12 प्रतिशत (करीब 3.79 करोड़ अमेरिकी) हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक Covid 19 के बाद से ये संख्या 17 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जबकि आबादी के मामले में अमेरिका से 4 गुना बड़ा देश होने के बावजूद इस समय भारत में करीब 21 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं।
अमेरिका में कितने गरीब : अमेरिका में 37 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। हालांकि ये आंकड़ा साल 2020 का है। साल 2020 में यह आंकड़ा पहले से बढ़ा है। 2020 में इसमें 3.3 मिलियन का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि अगर इसमें कम कमाई वाले लोगों को जोड़ दिया जाए, जो गरीबी रेखा से नीचे तो नहीं हैं, लेकिन उनकी कमाई काफी कम है, तो ये आंकड़ा 140 मिलियन तक पहुंच जाएगा। वैसे करीब 11.6 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि 1970 में भी यहां गरीबी का आंकड़ा करीब 12 फीसदी ही था। यह अमेरिकन ड्रीम की अवधारणा को धता बता रही है।
अमेरिका : करीब 5 लाख लोग सड़कों पर : अमेरिका में किसी भी रात में कम से कम 5 से साढ़े 5 लाख लोग सड़कों पर सोने के लिए मजबूर हैं। ये वो लोग हैं जिनके पास अपना घर तक नहीं है। अमेरिका में लोगों की आमदनी लगातार गिर रही है। मूल अमेरिकी वहां बसे भारतीय और चीनी लोगों के मुकाबले भी कम पैसे कमा पाते हैं। वहां बसा एक भारतीय परिवार साल भर में औसतन 1 लाख 23 हजार डॉलर्स यानी करीब 93 लाख रुपए कमाता है, जबकि इसके मुकाबले अमेरिकी मूल औसतन 48 लाख रुपए ही कमा पाते हैं।
गरीब महिलाओं का प्रतिशत : रिपोर्ट्स के मुताबिक गरीबी रेखा में महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा है। जैसे साल 2018 में 10.6 फीसदी पुरुष और 12.9 फीसदी महिलाएं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। इसके अलावा सिर्फ 4.7 फीसदी शादीशुदा जोड़े ही गरीबी रेखा से नीचे हैं। वहीं, सिंगल पैरेंट परिवारों में 12.7 परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं।
अमेरिका में गरीबी का मानक
एक सदस्य पर 12 हजार 880 डॉलर आय होनी चाहिए।
दो सदस्य हैं तो 17 हजार 420 डॉलर आय हो।
तीन सदस्यों पर 21 हजार 960 डॉलर आय हो।
चार सदस्य हैं तो 26 हजार 500 डॉलर होनी चाहिए।
(इससे कम आय होने पर अमेरिका में व्यक्ति गरीब माना जाता है।)
भारत और अमेरिका में गरीबी का मानक : अमेरिका और भारत में गरीबी का मानक अलग- अलग है। अमेरिका की बात करें तो यहां अगर घर में एक सदस्य है तो कम से कम 12 हजार 880 डॉलर, 2 सदस्य हैं तो 17 हजार 420 डॉलर, तीन सदस्य हैं तो 21 हजार 960 डॉलर और चार सदस्य हैं तो 26 हजार 500 डॉलर एक परिवार की आय होनी चाहिए। अमेरिका में साल में करीब 22 लाख रुपए से कम कमाने वाले परिवार को गरीब माना जाता है, जबकि भारत में साल में 61 हजार 728 रुपए से कम कमाने वालों को गरीब माना जाता है।
40 साल में दूर होगी अमेरिका में गरीबी : रिपोर्ट के मुताबिक अगर अमेरिका की 33 करोड़ जनसंख्या में 17 प्रतिशत यानी 5 करोड़ 60 लाख लोगों को भी गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है तो इनकी स्थिति में सुधार में करीब 40 साल का समय लगेगा। दरअसल, विकसित देशों की संस्था OECD की रिपोर्ट गरीबी के मामले में अमेरिका की आंखें खोलने वाली है। अमेरिका को अपने देश की गरीबी दूर करने में अभी कम से कम 40 साल लगेंगे। कुल मिलाकर जिस देश को दुनिया सबसे शक्तिशाली और सपन्न समझती है, उसकी हालत खस्ता होती नजर आ रही है।