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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 14 मई 2020 (11:20 IST)

खास खबर : कोरोना के बाद की चुनौतियों से भारत कैसे निपटेगा ?

संकट से निपटने के लिए आम सहमति और सर्वदलीय मंच : रामदत्त त्रिपाठी

खास खबर : कोरोना के बाद की चुनौतियों से भारत कैसे निपटेगा ? - How India face big Challenge after COVID-19
कोरोना महामारी से जूझ रहे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही 20 लाख करोड़ के भारी भरकम पैकेज का एलान कर दिया हो लेकिन अब भी सवाल बना हुआ है कि देश कोरोना के उस पार खड़ी चुनौतियों से कैसे निपटेगा?  सवाल लाखों में संख्या में लगातार पलायन कर रहे उन प्रवासी मजदूरों का भी है जिनके भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है? सवाल कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अचानक से किए लॉकडाउन और तालाबंदी पर भी खड़ा हो रहा है? 
 
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि कोरोना संकट में सबसे हैरानी वाली बात मुझे यह लगती है कि हमारे सिस्टम में देश के आम आदमी के रहन- सहन, उसकी समस्याओं और ज़रूरतों  की न तो समझ  है और न ही  समझने की इच्छा है। इच्छा के लिए दिल में संवेदना  चाहिए, जिसका अभाव स्पष्ट दिखता है।

दूसरा  राजनीतिक दलों, सरकार, प्रशासन और न्यायपालिका में जवाबदेही का कोई सिस्टम कारगर नहीं रह गया है। ऐसे में भारत की असली चुनौतियों कोरोना के उस पार की है जिससे निपटने के लिए सरकार को कुछ खास उपायों पर फोकस करना होगा।  
 
विकेंद्रीकरण मॉडल को अपनाने की जरुरत – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान को अगर जमीन पर उतारना है तो इसके लिए एक विकेंद्रीकरण मॉडल की जरुरत है, ये कहना हैं वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का। अब हमें उत्पादन,वितरण और शासन तीनों का विकेंद्रीकरण करके रोजमर्रा की जरुरतों के लिए शहर और गांव को स्थानीय स्तर पर आत्मनिर्भर बनाना होगा। 
 
बड़े शहों के बाजय छोटे कस्बों को रोजगार, उद्योग व्यापार का का केंद्र बनाना होगा, जिससे आसापस के गांवों को जोड़ा जा सके। वह कहते हैं कि आज शहरों से पलायन करके जो लोग वापस आ रहे है उनमें से बहुत से शायद की वापस जाए ऐसे में इनके रोजगार की व्यवस्था करने के लिए सरकार को एक रोडमैप के साथ आगे आना चाहिए।
राष्ट्रीय सहमति और साझा मंच की ज़रूरत – वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि आज लंबे समय तक रहने वाले कोरोना से मुकाबले के लिए आज देश में एक विस्तृत कार्यक्रम की जरूरत है, लेकिन सवाल ये है कि यह कार्यक्रम कौन बनाएगा, बनाने वालों को क्या ज़मीनी हक़ीक़त पता है? 
 
सारे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल हाईकमान या व्यक्ति केंद्रित हो गए हैं. सबका रहन – सहन जीवन शैली पाँच सितारा हो गयी है और ज़मीन से कटे हैं.  बाक़ी पार्टी पदाधिकारी केवल खाना पूरी  के लिए हैं. उनसे भी ज़मीनी हालात कोई नहीं पूछता. विधायकों को तो छोड़िए महत्वपूर्ण नीतियों, कार्यक्रमों और निर्णयों में मंत्रियों की भी राय नहीं ली जाती।
 
नौकरशाही प्रायः ठकुरसुहाती या जी हुज़ूरी में लगी रहती है। जो असहमति दर्ज करेंगे या अपना दिमाग़ लगाएँगे, उनके लिए दाएँ बाएँ बहुत से पद पहले से सृजित किए गए हैं। इस समय डर कुछ ज़्यादा है.  खुलकर राय देने में जोखिम है.वैसे जानकर लोगों का कहना है कि  राय ली भी नहीं  जाती. बस निर्णय सुनाया जाता है। 
 
देश में केरल से लेकर पंजाब  और तमिलनाडु से लेकर राजस्थान तक आज एक दो नहीं कई सत्ताधारी दल हैं। सब अपने – अपने को छोटे मोटे राजा या महारानी समझते हैं और वैसा ही व्यवहार करते हैं। ज़रूरत है कि आने वाले दिनों के लिए राष्ट्रीय आम सहमति से कार्यक्रम बनें।

जब आज़ादी आयी और पंडित नेहरू  और सरदार पटेल ने अपनी कैबिनेट के लिए कांग्रेस के ग्यारह नेताओं की सूची बनायी तो महात्मा गांधी ने उसे अस्वीकार कर दिया. कहा आज़ादी कांग्रेस को नहीं भारत को मिली है, इसलिए आधे मंत्री ग़ैर कांग्रेसी हैं। तब गांधी – नेहरू के  धुर विरोधी डॉ. अम्बेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे लोग रखे गए जो न केवल विशेषज्ञ बल्कि तपे तपाए लोग थे जो खुलकर बहस काटने के बाद निर्णय लेते थे।
 
राजनीतिक दलों में भी राजनीतिक आर्थिक प्रस्तावों पर खुलकर बहस होती थी. नीचे से ऊपर तक पदाधिकारियों का चुनाव होता था। उनका अपना व्यक्तित्व होता था और वे खुलकर बोल सकते थे, मनोनीत पदाधिकारी और मंत्री तो येस सर ही  कहेंगे। .
 
संविधान रक्षा की शपथ लेने वाली नौकरशाही को भी फ़ाइल पर अपनी राय प्रकट करने की आज़ादी थी. अभी पचीस तीस साल पहले तक भी यह चल रहा था, क्षत्रपों के उभरने से पहले जो खुद को सर्वज्ञ मानते हैं. अब पहले से बता दिया जाता है की अमुक प्रस्ताव लाओ या यह टिप्पणी लिखो. यहाँ तक क़ि शासन के न्याय और विधि विभाग भी यही करने लगे हैं।
 
आज देश में कांग्रेस सिस्टम ख़त्म हो चुका है। अनेक सत्ताधारी दल हैं,अनेक विपक्षी दल हैं,एक पार्टी और एक विचारधारा से संकट की इस घड़ी में देश का नव निर्माण नहीं हो सकता। महत्वपूर्ण निर्णयों में सभी पार्टियों , मुख्यमंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं की भागीदारी होनी ही चाहिए।
 
 
 
 
 
 
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