Ground Report : Lockdown का सच, इंदौर में बढ़ी मुनाफाखोरी
इंदौर। बड़े उद्योगपतियों से लेकर सामाजिक संस्थाएं तक कोरोना वायरस (Corona Virus) से निपटने के लिए मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं, वहीं इसका स्याह पहलू भी देखने में आ रहा है। दूसरी ओर, कुछ व्यापारी मुसीबत के इस समय में भी अपना फायदा ढूंढने में पीछे नहीं हट रहे हैं।
दरअसल, नरेन्द्र मोदी के जनता कर्फ्यू के आह्वान से पहले स्थितियां सामान्य थीं, लेकिन जनता कर्फ्यू फिर 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद अचानक से दैनिक उपयोग की वस्तुओं की मांग बढ़ गई और उनके दाम बढ़ गए। पहली बात तो लोगों को दैनिक उपयोग की वस्तुएं आसानी से उपलब्ध नहीं हुईं, दूसरी मिलीं भी तो बढ़े हुए दामों पर। दालों की ही बात करें तो इनके दाम प्रतिकिलो 30 से 35 रुपए बढ़ गए।
इस स्थिति ने गरीब तबके की कमर और तोड़कर रख दी। एक तरफ उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही है, दूसरी ओर वे महंगे दामों पर सामान लेने को मजबूर हुए। इसके चलते उनकी जमा पूंजी भी खर्च हो गई। इतना ही नहीं दुकानदारों ने सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन नहीं किया।
साकेतसिंह कुशवाह नामक व्यक्ति ने बताया कि जो तुअर दाल उन्होंने 5 दिन पहले 90 रुपए किलो खरीदी थी, वही रविवार को 120 रुपए खरीदनी पड़ी। 95 रुपए की मूंग दाल के भाव 130 रुपए किलो हो गए। 90 रुपए लीटर वाले सोयाबीन तेल के पाउच 100 रुपए में भी आसानी से नहीं मिल रहे थे। जो 25 किलो आटा 625 रुपए में मिलता था, वही अब बढ़कर 675 रुपए का हो गया है।
इसी तरह राजेश शर्मा ने बताया कि क्लर्क कॉलोनी-आईटीआई मेनरोड स्थित जय ट्रेडर्स का शटर थोड़ा सा खुला हुआ था। लोग झुंड बनाकर खड़े थे, दुकानदार तक ने मास्क नहीं लगा रखा था। जब शर्मा ने दुकानदार से कहा कि यदि परमीशन है तो आपको पूरी दुकान खोलकर सामान बेचना चाहिए अन्यथा पूरी तरह बंद रखना चाहिए। इस पर दुकानदार ने कहा कि हम तो इसी तरह सामान बेचेंगे, जो बने सो कर लो।
ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। शहर में ऐसा कई स्थानों पर हुआ है, जहां लोगों को तय दाम से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी। दरअसल, इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि लोगों ने भी अफवाहों के चलते आवश्यकता से अधिक सामान का संग्रहण शुरू कर दिया था। इसी का फायदा दुकानदारों ने भी उठाया।
आमतौर पर दुकानों पर 1 से 10 तारीख तक ही भीड़ ज्यादा दिखाई देती है, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है जब 20 तारीख (त्योहारों को छोड़कर) के बाद भी किराना दुकानों पर खरीददारों की भीड़ लगी रहे। इस दौर में तो गली-मोहल्लों की छोटी दुकानें में भी भीड़ देखने को मिल रही थी।