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Written By नवीन रांगियाल
Last Updated : गुरुवार, 22 अप्रैल 2021 (13:59 IST)

क्‍या है ‘प्रोन पोज‍िशन’ क्‍या यह वाकई कोव‍िड मरीजों के लिए है कारगर?

क्‍या है ‘प्रोन पोज‍िशन’ क्‍या यह वाकई कोव‍िड मरीजों के लिए है कारगर? - corona pandemic, prone position,
कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया में कई तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं। देश ऑक्‍सीजन की कमी से जूझ रहा है, इससे कई मौतें हो रही हैं। ऐसे में प्रोनिंग तकनीक की भी खूच चर्चा हो रही है। कई जगह इसका इस्‍तेमाल भी हो रहा है।

इस तकनीक में मरीजों को पेट के बल लेटाया जाता है। आइए जानते हैं क्‍या है यह तकनीक और क्‍यों हो रहा है इसका इस्‍तेमाल।

दुनिया भर में कोविड-19 संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसके चलते अलग-अलग हिस्सों से अस्पतालों की तस्वीरें भी सामने आ रही हैं। इन तस्वीरों में इंटेंसिव केयर यूनिट में अत्याधुनिक वेंटिलेटरों पर लेटे हुए मरीज दिखाई देते हैं।

वेंटिलेटरों से उन्हें सांस लेने में मदद मिलती हैं लेकिन इन तस्वीरों की एक खास बात पर नजरें टिक रही हैं। बहुत सारे मरीज पेट के बल, आगे की ओर लेटे हुए हैं। दरअसल, यह एक बेहद पुरानी तकनीक है जिसे प्रोनिंग कहते हैं, इससे सांस लेने में समस्या होने वाले मरीजों को फायदा होते हुए देखा गया है। इस मुद्रा में लेटने से फेफेड़ों तक ज्यादा ऑक्सीजन पहुंचती है।

इंदौर के जाने माने आयुर्वेदि‍क विशेषज्ञ डॉक्‍टर सतीश अग्रवाल का कहना है कि दरअसल, फेफडे पीछे यानि पीठ की तरह होते हैं। ऐसे में अगर ऑक्‍सीजन की कमी की स्‍थि‍ति किसी मरीज को पीठ के बल के बजाए पेट के बल लिटाया जाता है तो उसे ऑक्‍सीजन मिलने में ज्‍यादा आसानी होती है। जबकि पीठ के बल लेटने पर फेफडों पर दबाव आता है, ऐसे में ऑक्‍सीजन की जरुरत वाले मरीज को असुविधा हो सकती है। इसलिए कई बार यह तकनीक कारगर साबि‍त होती है।

उन्‍होंने बताया कि मरीजों को प्रोन पोजिशन में कई घंटों तक लिटाया जाता है ताकि उनके फेफड़ों में जमा तरल पदार्थ आसानी से मूव कर सके। इससे मरीजों को सांस लेने में आसानी होती है।

इंटेंसिव केयर यूनिट में भी कोविड-19 के मरीजों के साथ इस तकनीक का इस्तेमाल इन दिनों काफी बढ़ा है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने भी 12 से 16 घंटे तक प्रोनिंग तकनीक के इस्‍तेमाल की बात कही थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह तकनीक बच्चों के लिए भी इस्तेमाल हो सकती है लेकिन इसे सही और सुरक्षित तरीके से करने के लिए विशेषज्ञों की जरुरत होती है।

क्‍या कहती है रिसर्च?
अमरीकी थोरासिस सोसायटी ने चीन के वुहान स्थित जियानतान हॉस्पिटल में फरवरी महीने में एआरडीएस वाले 12 कोविड मरीजों पर अध्ययन किया। इस अध्ययन के मुताबिक जो लोग प्रोन पॉजिशन लेट रहे थे उनके फेफड़ों की क्षमता ज्यादा थी।

मीड‍िया रिपोर्ट के मुताबिक 1970 के दशक में प्रोनिंग के फायदे को पहली बार इस्‍तेमाल किया गया था। विशेषज्ञों के मुताबिक 1986 के बाद दुनियाभर के अस्पतालों में इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ।

प्रोफेसर लुसियानो गातिनोनी इस तकनीक पर शुरुआती अध्ययन और अपने मरीजों पर सफलातपूर्वक इस्तेमाल करने वाले डॉक्टरों में एक रहे हैं। लुसियानो इन दिनों एनिस्थिसियोलॉजी (निश्चेत करने वाले विज्ञान) एवं पुनर्जीवन से जुड़े विज्ञान के एक्सपर्ट हैं। 
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