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Last Updated : रविवार, 14 नवंबर 2021 (14:37 IST)

पांच पूर्व बाल मजदूरों का उच्च शिक्षा के लिए एसआरएम विश्वविद्यालय में हुआ चयन

पांच पूर्व बाल मजदूरों का उच्च शिक्षा के लिए एसआरएम विश्वविद्यालय में हुआ चयन - Child labor, kailash satyarthi, SRM, higher education, children day
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी और सुमेधा कैलाश द्वारा स्थापित ‘बाल आश्रम’ के 5 बच्‍चों को देश के प्रतिष्ठित और उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में से एक एसआरएम विश्‍वविद्यालय में दाखिला मिला है।

ये पांचों बच्चे कभी पूर्व बाल मजदूर रहे हैं और इनका बचपन कष्ट और यातना में गुजरा है। श्री सत्यार्थी के संगठन बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा इन्हें सीधी छापामार कार्रवाई के तहत छुड़ाया गया और शिक्षा के लिए प्रेरित किया।

बाल आश्रम में रह कर पढ़ाई करते हुए पांचों बच्चों ने 12वीं की परीक्षा अव्वल नंबरों से पास की है। इन पांचों बच्चों के नाम संजय कुमार, इम्तियाज अली, मनीष कुमार, चिराग आलम और मन्‍नू कुमार है।

बाल आश्रम मुक्‍त बाल मजदूरों का भारत का पहला दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है और यह राजस्‍थान के विराटनगर की अरावली पहाड़ि‍यों में स्थित है। अपनी स्थापना के बीस वर्षों में बाल आश्रम देशभर में बच्‍चों की भागीदारी तथा बाल नेतृत्‍व विकसित करने के केंद्र के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।

आश्रम में रहकर शिक्षा-दीक्षा प्राप्‍त करने वाले पूर्व बाल मजदूर बच्‍चों ने इंजीनियर, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, गायक आदि बनकर समाज के सामने एक मिसाल पेश की हैं। आश्रम से पढ़-लिखकर निकले 1431 मुक्त बाल मजदूर समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर अपने जीवन और भविष्‍य को संवार रहे हैं।

बाल आश्रम की सह संस्थापिका श्रीमती सुमेधा कैलाश ने शिक्षा के प्रति इन बच्चों की लगन और जज्बे की सराहना करते हुए कहा, ‘मैं इन बच्चों को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देती हूं। मुझे और कैलाश जी को इन बच्चों पर शुरु से ही भरोसा था, जब हम इन्हें बाल मजदूरी से छुड़वाकर बाल आश्रम लाए थे। बाल आश्रम के सभी बच्चे जीवन में खूब तरक्की करें और मनचाही मंजिल पाएं, इसकी मैं कामना करती हूं’

गौरतलब है कि बाल आश्रम के जिन बच्‍चों का एसआरएम विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न पाठ्यक्रमों में दाखिला हुआ है वे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए के तबके से आते हैं। इन बच्चों बीएससी (फिजिकल एजुकेशन), बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी, होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन नर्सिंग एवं बैचलर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के पाठ्यक्रमों में चयन हुआ है।

एसआरएम विश्‍वविद्यालय भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक है। जहां 52,000 से अधिक पूर्णकालिक छात्र और सभी परिसरों में 3,200 से अधिक फैकल्‍टी हैं। कट्टनकुलथुर, रामपुरम, वडापलानी, तिरुचिरापल्ली और दिल्ली एनसीआर स्थित कैंपसों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट कार्यक्रमों का संचालन होता है। इसमें इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट, मेडिकल और मेडिकल साइंस, विज्ञान और मानविकी, कानून और कृषि विज्ञान के पाठ्यक्रम शामिल हैं।

विश्वविद्यालय को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल यानी नैक द्वारा वर्ष 2018 में सर्वोच्‍च स्‍थान की मान्यता प्रदान की गई है। विश्‍वविद्यालय को 2020 में नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ़) द्वारा विश्वविद्यालयों की श्रेणी के तहत राष्ट्रीय स्तर पर 35वां स्थान दिया गया है।

बाल आश्रम के जिन बच्‍चों का एसआरएम विश्‍वविद्यालय में चयन हुआ है, उनकी पृष्ठभूमि गरीब और वंचित वर्ग की है। फिर भी अपने संघर्ष, जज्बे और लगन से सभी ने अपनी स्थिति को प्रशंसनीय बनाया।

19 वर्षीय संजय कुमार, जिनका इसी साल 12वीं में 86 प्रतिशत अंक आया हैं, उनका चयन होटल मैनेजमेंट और केटरिंग पाठ्यक्रम के लिए हुआ है। संजय का संकल्प और परिश्रम काबिले तारीफ है। राजस्थान के विराट नगर के रहने वाले संजय की दो बहनें हैं। मां और भाई बहनों को वित्तीय संकट के कारण एक ईंट भट्टे में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा संजय को वहां से मुक्‍त कराया गया और 2010 में उन्‍हें बाल आश्रम लाया गया। फिर संजय का हौसला परवान चढ़ता गया और उन्‍होंने इसी साल 12वीं अव्‍वल नंबरों से पास किया है।

इम्तियाज़ अली 21 साल के हैं। उनके सन 2020 में 12वीं में 67 प्रतिशत अंक आए थे। इनका चयन डिप्लोमा इन नर्सिंग में हुआ है। अत्यधिक गरीबी के कारण इम्तियाज़ ट्रैफिकरों के चंगुल में फंस गया। उसे दिल्ली लाया गया। इम्तियाज को एक ज़री (कढ़ाई) फैक्ट्री में 16-16 घंटे काम करने पड़ते। बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने उन्‍हें इस नारकीय जीवन से मुक्‍त कराकर बाल आश्रम में दाखिल करवाया।

मनीष कुमार 18 साल के हैं। उनका चयन बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी के लिए हुआ है। उनके 2020 में 12वीं में 66 प्रतिशत अंक आए थे। मनीष लापता बच्चे थे और बचपन में ही मां को खो दिया था। शराबी पिता उसे मारता-पीटता था। जब मनीष अपने पिता की क्रूरता को सहन नहीं कर सका, तो आखिरकार उसने एक दिन घर से भागने का फैसला किया। घर से भाग कर वह ट्रेन में भीख मांगने लगा। बाल आश्रम आने पर उसके जीवन में भी बदलाव आया। पढ़ने में होशियार इम्तियाज सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता है।

21 साल के चिराग आलम का चयन बीबीए पाठ्यक्रम के लिए हुआ है। उसने 2020 में 12वीं में 64.8 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। वह दिल्ली में चूड़ी बनाने की एक फैक्ट्री में बाल मजदूरी करता था। चिराग को भी बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा मुक्‍त कराया गया।

मन्नू कुमार उरांव 18 साल के हैं। मन्नू के 2020 में 12वीं में 57 प्रतिशत अंक आए थे। उनका चयन बीएससी (फिजिकल एजुकेशन) में हुआ है। मन्नू बिहार के पूर्णिया जिले के लालगंज के रहने वाला है। मन्नू के पिता की मृत्यु के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। महज आठ साल की उम्र में उसने तबेले में काम करना शुरू कर दिया था। बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने उन्‍हें मुक्‍त किया और पुनर्वास के लिए बाल आश्रम भेज दिया।