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Written By ND

एजेंडे में अव्वल है नक्सल समस्या

एजेंडे में अव्वल है नक्सल समस्या -
- रवि भो
नई सरकार के लिए रास्ते कांटों भरे रहेंगे। घोषणाओं को पूरा करने से लेकर लक्ष्यों को हासिल करने तक पहाड़ जैसी चुनौतियां नजर आ रही हैं। वादों को निभाने के लिए पैसे की व्यवस्था तथा राज्य को विकास की राह पर दौड़ाने के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे। यह स्थिति कांग्रेस की सरकार आने पर भी रहेगी और भाजपा की सरकार रहने पर भी। दोनों ही पार्टियों ने सत्ता में आने के लिए किसानों, गरीब तबके के लोगों को जो सपने दिखाए हैं उन्हें पूरा करने में राजनीतिक चातुर्य और धन की आवश्यकता होगी। वहीं नक्सली समस्या सीना तान कर खड़ी है, जिससे नई सरकार को जूझना पड़ेगा। मरी हुई स्वास्थ्य सेवा में जान फूंकनी होगी और शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम कायम करने होंगे।

नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है नक्सली समस्या के उन्मूलन की। राज्य बनने के पिछले आठ साल में यह समस्या कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है। राज्य के एक चौथाई हिस्से में नक्सलियों का प्रभाव है। हजारों लोग अपने घर और जमीन छोड़कर राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। इन पर काफी सरकारी धन व्यय हो रहा है। सलवा जुड़ूम भी नई सरकार के लिए एक अहम सवाल होगा। इसी तरह रायगढ़, जशपुर, अंबिकापुर और कोरबा के कुछ इलाके की जनता हाथियों के झूंड से से पीड़ित है। वहां जंगली हाथी कहर बरपा रहे हैं। नई सरकार को इस पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

आठ सालों में छत्तीसगढ़ में सड़कों की स्थिति में सुधार हुआ है। नई सड़क बनाने और पुरानी सड़कों को सुधारने में बहुत पैसा खर्च किया गया। एशियाई विकास बैंक से हजारों करोड़ रुपए ऋण लिए गए, लेकिन घटिया निर्माण ने सब पर पानी फेर दिया। डामर घोटाला सामने आ चुका है। सिंचाई सुविधाओं का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। राज्य बनने के बाद न तो कोई बड़ा बांध बना है और न ही पुरानी कोई योजना अमल में आ सकी है। राज्य में अभी २६ प्रतिशत हिस्सा सिंचित होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन राज्य के बहुत सारे किसान केवल एक फसल ले पाते हैं। दूसरी ओर चकबंदी के अभाव में कृषि जमीन का समय पर और समुचित उपयोग किसान नहीं कर पा रहे हैं। तेजी से शहरीकरण के चलते कृषि भूमि सिमट रही है।

शिक्षा व स्वास्थ्य के मामले में अभी भी छत्तीसगढ़ दूसरे राज्यों पर निर्भर है। इन दोनों क्षेत्रों में पिछले आठ साल में कई प्रयोग हुए, लेकिन नतीजे जनहित में नहीं रहे। सबसे ज्यादा बदहाल स्वास्थ्य सेवा रही। जनता का भरोसा सरकारी अस्पतालों से उठ गया है। लोग निजी अस्पतालों की ओर भाग रहे हैं। यही हाल शिक्षा का है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने घोषणा-पत्रों में इन क्षेत्रों में बदलाव के लिए खास कुछ नहीं कहा है। भाजपा ने स्कूली बच्चों को मुफ्त में किताबें और कांग्रेस ने गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों को छात्रवृत्ति और इंजीनियरिंग, मेडिकल में लड़कियों को सरकारी खर्च पर पढ़ाने का वादा कर रखा है लेकिन, यह वादे चुनावी ज्यादा दिखते हैं।

राज्य में रोजगार के नए अवसर कैसे पैदा होंगे, यह बड़ी चुनौती होगी? निजी उद्योग तकनीकी प्रधान होते जा रहे हैं। स्वरोजगार का अवसर भी एक बड़ा मुद्दा होगा। वन और खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य में नए उद्योगों की स्थापना बड़ा सवाल। मंदी के इस दौर में सीमेंट, लोहा और बिजली के क्षेत्र में कितने उद्योग यहां लगते हैं, नई सरकार के लिए परीक्षा के समान होगा। अभी टाटा और एस्सार के संयंत्र पूरी गति से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। रुकावटें दूर करने का काम नई सरकार को ही करना होगा। इसी प्रकार बिजली के क्षेत्र में पिछले पांच साल में कई एमओयू हुए हैं, लेकिन एक-दो ही अस्तित्व में आ सके हैं। सभी में उत्पादन शुरू हो, इसके लिए प्रयास करना होगा।

छत्तीसगढ़ में मजदूरों का पलायन शुरू से गंभीर समस्या है। लेकिन, इस बार यह विकराल नजर आ रही है। राज्य के कई इलाके अकालग्रस्त हैं। धान की फसल चौपट हो गई है। गर्मी में फसल लेने की कोई सुविधा नहीं है। स्वाभाविक है, इन इलाकों से मजदूर और किसान पलायन करेंगे। खासतौर से गरीबी रेखा से ऊपर वाले किसान इस समस्या से ज्यादा जूझेंगे। नई सरकार के सामने इस बार कुशल प्रशासन की भी चुनौती होगी। राज्य की जनता ने पिछले आठ साल में दो तरह की सरकारें देखीं।

अजीत जोगी के कार्यकाल में राज्य में कठोर प्रशासन की छवि बनी, वहीं डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में अफसरशाही के बेलगाम होने की धारणा बनी। दोनों ही सरकारों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा रहा। रमन राज में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, सरकारी नौकरियों में भर्ती में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कांग्रेस जनता के सामने गई। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आती है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की राय मानी जाएगी और भाजपा दोबारा वापस आती है तो माना जाएगा कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है।

नई सरकार के लिए नई राजधानी का निर्माण भी एक बड़ा मुद्दा होगा। पिछले आठ साल से राजधानी निर्माण का कार्य कछुआ चाल में है। रायपुर शहर की जनता अब राजधानी को पीड़ादायक मानने लगी है। ट्रैफिक की समस्या सबसे ज्यादा गंभीर हो गई है। दोनों दलों ने जनता को चुनाव में लुभाने के लिए घोषणाओं का पिटारा खोला। पिटारे से निकली घोषणाएं फुंकारते सांप की तरह हैं जिसे नियंत्रित करना सबसे बड़ी चुनौती है।