छठ पूजा पर छठी मैया की कथा:
ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित छठ पूजा के संबंध में यह उल्लेख मिलता है कि इस पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है। इस व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी।
खीर के प्रभाव से एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ। प्रियव्रत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और उसने कहा कि- सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। अत: राजन तुम मेरा पूजन करो तथा अन्य लोगों को भी प्रेरित करो।
तब राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संपन्न हुई थी। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से छठ पूजन का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके अलावा भी छठ व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
छठ पूजा को 'लोक आस्था का महापर्व' कहा जाता है। यह चार दिवसीय पर्व सूर्य देव (सूर्य षष्ठी) और छठी मैया (षष्ठी देवी) की आराधना को समर्पित है। इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं, जिनमें से मुख्य कथाएँ इस प्रकार हैं:
1. राजा प्रियंवद और षष्ठी देवी (छठी मैया) की कथा:
राजा प्रियंवद: पुराणों में छठ पूजा का संबंध राजा प्रियंवद से जोड़ा गया है। छठ के दिन इसी एकमात्र कथा को सुना जाता है।
संतानहीनता का दुख: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी को विवाह के लंबे समय बाद भी कोई संतान नहीं थी। इस बात से वे बहुत दुखी रहते थे।
पुत्रेष्टि यज्ञ: संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ संपन्न होने पर महर्षि ने रानी मालिनी को प्रसाद स्वरूप खीर खाने को दी।
मृत पुत्र: खीर के सेवन से रानी गर्भवती हुईं और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, किंतु दुर्भाग्यवश पुत्र मृत पैदा हुआ।
देवी षष्ठी का आगमन: पुत्र वियोग में राजा प्रियंवद अपने प्राण त्यागने के लिए श्मशान घाट पहुँचे। उसी क्षण, भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी (छठी मैया) वहाँ प्रकट हुईं।
देवी का आदेश: देवी ने राजा से कहा कि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए उनका नाम 'षष्ठी' है। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करने को कहा।
संतान प्राप्ति: राजा प्रियंवद ने देवी षष्ठी के आदेशानुसार विधि-विधान से यह व्रत किया, जिसके फल से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
परंपरा: तभी से संतान सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए छठी मैया की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
2. महाभारत काल और सूर्यपुत्र कर्ण की कथा
सूर्य की उपासना: छठ पर्व को सूर्यपुत्र कर्ण से भी जोड़ा जाता है। माना जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे।
अर्घ्य की परंपरा: कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। सूर्य देव की कृपा से ही वह एक महान योद्धा बने। छठ पूजा में आज भी सूर्य को अर्घ्य देने की यह पद्धति प्रचलित है।
3. द्रौपदी और पांडवों की कथा
राजपाट की हानि: महाभारत काल में जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे और वनवास के दौरान कठिन समय का सामना कर रहे थे, तब द्रौपदी ने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए महर्षि धौम्य के कहने पर छठ का व्रत रखा था।
समृद्धि की वापसी: द्रौपदी के व्रत और सूर्योपासना के फल से ही पांडवों को उनका राजपाट और खोया हुआ वैभव वापस मिला था।
4. भगवान राम और माता सीता की कथा
रामराज्य की स्थापना: एक मान्यता के अनुसार, रावण पर विजय प्राप्त कर जब भगवान राम और माता सीता अयोध्या लौटे, तब रामराज्य की स्थापना से पूर्व उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की थी और यह छठ पर्व मनाया था।
व्रत का पालन: कहा जाता है कि माता सीता ने अपने पुत्रों (लव-कुश) की मंगलकामना के लिए यह व्रत किया था, जिससे अयोध्यावासियों ने भी इस पर्व को अपना लिया।
इन सभी कथाओं का सार यही है कि छठ पूजा सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति और छठी मैया के मातृत्व स्वरूप के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है, जिसे अत्यंत अनुशासन और पवित्रता के साथ मनाया जाता है।