गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025
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Written By WD Feature Desk

Chhath puja 2025: छठ पूजा की संपूर्ण सामग्री और विधि

Chhath Puja 2025 date
Chhath Puja Samagri List 2025: छठ पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य देवता और उनकी बहन छठी माई की पूजा से जुड़ा हुआ है। यह पूजा न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और पारिवारिक सौहार्द को बढ़ावा देने का एक माध्यम है।ALSO READ: Chhath puja 2025 date: वर्ष 2025 में कब है छठ पूजा, जानिए संपूर्ण दिनों की जानकारी

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता से स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना है। इस पूजा में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह पूजा खासतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों द्वारा की जाती है, लेकिन अब यह पूजा देशभर में मनाई जाती है। पूजा के दौरान जल और सूर्य देवता की उपासना से पर्यावरण की शुद्धता का भी महत्व है। इस बार छठ पूजा का महापर्व 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर 2025 तक मनाया जाएगा।
 
छठ पूजा 2025 की तिथियां:
पहला दिन: 25 अक्टूबर 2025 (शनिवार): नहाय-खाय (Nahay-Khay)
दूसरा दिन: 26 अक्टूबर 2025 (रविवार): खरना (Kharna)
तीसरा दिन: 27 अक्टूबर 2025 (सोमवार): संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को)
चौथा दिन: 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार): उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को) और पारण
 
छठ पूजा की संपूर्ण सामग्री सूची: छठ पूजा की सामग्री को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है: पूजन सामग्री और प्रसाद सामग्री।
 
1. पूजन सामग्री: 
* बांस की टोकरी (सूप या दौरा): प्रसाद रखने और अर्घ्य देने के लिए सबसे आवश्यक। पवित्रता और सरलता का प्रतीक।
 
* तांबे/कांसे का लोटा: सूर्य देव को जल और दूध का अर्घ्य देने के लिए।
 
* नारियल (पानी वाला): शुभता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक।
 
* गन्ना (पत्ते लगे हुए): समृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक। पूरा गन्ना घाट पर रखा जाता है।
 
* पीला/लाल सिंदूर: सुहाग की वस्तु।
 
* दीपक, घी और बाती: प्रकाश और ज्ञान के लिए मिट्टी के दीये शुभ माने जाते हैं।
 
* हल्दी, कुमकुम, चंदन: तिलक और पूजा के लिए।
 
* अगरबत्ती/धूप: सुगंध के लिए।
 
* साड़ी/वस्त्र: व्रती के लिए (पीले या लाल रंग के नए वस्त्र)।
 
* अन्य सामान: पान, साबुत सुपारी, शहद, चावल (अक्षत), कलावा, फूल माला।
 
2. प्रसाद और फल सामग्री: 
 
- ठेकुआ: गेहूं के आटे, गुड़/चीनी और घी से बना पारंपरिक और मुख्य प्रसाद।
 
- कसार: कुछ क्षेत्रों में बनता है कसार और चावल के आटे का लड्डू।
 
- चावल, गुड़ की खीर: खरना के दिन बनने वाला प्रसाद।
 
- मौसमी फल: सबसे अनिवार्य, शुभता का प्रतीक केला, डाभ नींबू (बड़ा, मीठा नींबू), नारंगी, सेब, अमरूद आदि।
 
- जड़ वाली सब्जियां: शकरकंदी (शकरकंद), सुथनी, मूली, सिंघाड़ा (जल फल)।
 
- अन्य भोग: पूड़ी, मालपुआ, खजूर, मिठाई।
 
छठ पूजा की संपूर्ण विधि: 4 दिन का व्रत... छठ पूजा में अत्यंत कठोर नियमों का पालन किया जाता है।
 
1. पहले दिन की विधि: नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
- व्रती स्नान के बाद नए/साफ कपड़े पहनती हैं।
- व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। भोजन में मुख्य रूप से लौकी भात (लौकी की सब्जी और चावल) और चने की दाल शामिल होती है।
- यह भोजन पूरी पवित्रता के साथ बनाया जाता है। इस दिन व्रती के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी सात्विक भोजन करते हैं।
 
2. दूसरे दिन की विधि: खरना (26 अक्टूबर)
- इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास (बिना जल और भोजन) रखती हैं।
- शाम को, सूर्य अस्त होने के बाद, गुड़-चावल की खीर और रोटी बनाई जाती है।
- व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं। खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।ALSO READ: Chhath puja 2025: छठ पूजा की 15 हार्दिक शुभकामनाएं और संदेश
 
3. तीसरे दिन की विधि: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
- यह षष्ठी तिथि का दिन है और छठ पूजा का मुख्य दिन माना जाता है।
- व्रती और परिवार के सदस्य बांस की टोकरी/दउरा में सभी फल, ठेकुआ और अन्य प्रसाद सामग्री सजाते हैं।
- शाम को, सभी लोग मिलकर किसी पवित्र नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं।
- व्रती जल में खड़ी होकर अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं।
- अर्घ्य देने का तरीका: टोकरी में रखे प्रसाद, गन्ने और जल से भरा तांबे का लोटा लेकर जल में खड़े होते हैं। सूर्य को दूध और जल अर्पित किया जाता है।
- पूजा के दौरान छठी मैया के गीत गाए जाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
 
4. चौथे दिन की विधि: उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर)
- उषा अर्घ्य और पारण छठ पर्व का अंतिम दिन है।
- व्रती और परिवार के लोग भोर में ही घाट पर पहुंच जाते हैं और उगते हुए सूर्य का इंतजार करते हैं।
- व्रती जल में खड़ी होकर, फिर से टोकरी में रखे प्रसाद और दूध-जल से उगते हुए सूर्य देव को उषा अर्घ्य देती हैं।
- अर्घ्य देने के बाद व्रती छठी मैया और सूर्य देव से अपने संतान, परिवार की सुख-शांति और दीर्घायु का आशीर्वाद मांगती हैं।
- इसके बाद व्रती घाट पर प्रसाद ग्रहण करके, पानी पीकर 36 घंटे का निर्जला व्रत तोड़ती हैं, जिसे पारण कहा जाता है। परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
 
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