हर नर में होती नारी हर नारी में होता नर
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जब सृष्टि विस्तार के सभी प्रयत्नों में विफल रहे तो उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। तब शिव अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट होकर ब्रह्माजी से बोले- प्रजापिता, मुझे तुम्हारे मनोरथ के बारे में पता है। मैं तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण करूँगा। इसके बाद उन्होंने अपने शरीर से शिवा को पृथक कर दिया। तब ब्रह्मा ने शिवा से नारी कुल उत्पन्न करने का अनुरोध किया, क्योंकि तब तक नारी कुल की उत्पत्ति नहीं हुई थी और उसकी उत्पत्ति करना ब्रह्मा की शक्ति के बाहर था। इसी कारण बार-बार सृष्टि की रचना के बाद भी उसका विस्तार संभव नहीं हो पा रहा। ब्रह्मा के अनुरोध पर शिवा अपनी भौंहों के मध्य से अपने ही समान प्रभावशाली एक शक्ति प्रकट कर फिर से शिव के शरीर में प्रविष्ट हो गईं। तत्पश्चात अर्धनारीश्वर अंतर्धान हो गए। बाद में शिवा से प्राप्त शक्ति ब्रह्मा की कल्पना के आधार पर दो भागों में विभक्त हो गई। |
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जब सृष्टि विस्तार के सभी प्रयत्नों में विफल रहे तो उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्ना करने के लिए कठोर तप किया। तब शिव अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट होकर ब्रह्माजी से बोले- प्रजापिता, मुझे तुम्हारे मनोरथ के बारे में पता है। |
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आधे भाग से एक रूपवती स्त्री प्रकट हुई जिसका नाम उन्होंने शतरूपा रखा और आधे से एक पुरुष स्वायम्भुव मनु प्रकट हुआ। ब्रह्मा ने दोनों का विवाह कराया। समय के साथ उनकी कई संतानें हुईं। इस तरह सृष्टि का विस्तार शुरू हुआ जो आज तक जारी है।दोस्तो, सृष्टि का विस्तार करने वाली आदि शक्ति एक ही थी। वह न स्त्री थी, न पुरुष। कहते भी हैं- 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव।' यानी वह माँ भी है वही पिता भी। अब आप उसे शिवा मानकर पूजें या शिव मानकर। शक्ति तो एक ही है। दोनों एक-दूसरे में समाए हैं, अर्द्धनारीश्वर हैं। इसी तरह हर नर में एक नारी और हर नारी में एक नर रहता है। यह व्यवस्था प्राकृतिक रूप से है। और यदि आपको यकीन न हो तो अपने अंदर झाँककर देख लें। यदि आप एक पुरुष हैं तो आपके अंदर विवेक, पौरुष, साहस, निर्भयता, दबंगता, कर्तृत्व, ज्ञान के गुण स्वाभाविक रूप से होंगे, लेकिन इसके साथ ही यदि आपके अंदर प्रेम, स्नेह, दया, माया, ममता, लज्जा के गुण हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके अंदर स्त्री के गुण भी मौजूद हैं।
और इसमें कोई शर्म की बात भी नहीं। क्योंकि यदि आप संपूर्ण व्यक्तित्व के धनी होना चाहते हैं तो आपके अंदर दोनों तरह के गुण होना ही चाहिए। जिनमें ये दोनों गुण होते हैं वे ही सुपरमैन या सुपरवीमन होते हैं। यानी कम्पलीट मेन या वीमन। अब आप ही बताएँ कि यदि आप साहसी हैं, लेकिन दयालु नहीं तो कौन आपको पूछेगा, पूछता भी नहीं। बने रहो फन्नो खाँ, बने रहो अपने घर के। पूछ-परख तो उसी व्यक्ति की होती है जो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करे। इसके लिए व्यक्ति को कभी पुरुष की तरह तो कभी नारी की तरह व्यवहार करके परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाना पड़ता है। जो अपने अंदर के दोनों भावों का पूरा फायदा उठाते हैं, वे चुनौतियों का सामना आसानी से कर सफलता पाते हैं। इसलिए अपने अंदर के पुरुष और स्त्री दोनों को जाग्रत रखें, काम पर लगाए रखें।दूसरी ओर, हर व्यक्ति अंदर मौजूद विपरीत लिंग का भाव समय-समय पर जाग्रत होकर उसे अहसास कराता रहता है कि कुछ उसकी भी सोचें। तभी व्यक्ति अपने विपरीत लिंग वाले की तरह लुक-छिपकर व्यवहार करने की सोचता है, सामने नहीं आता, क्योंकि तब वह समाज में हास्य का पात्र बन सकता है। लेकिन ऐसा तब होता है जब विपरीत लिंग का भाव ज्यादा हावी हो जाए और व्यक्ति स्थायी रूप से वैसा ही रहन-सहन अपना ले। यानी पुरुष होकर नारी की तरह और नारी होकर पुरुष की तरह। यह ठीक नहीं। इसके बजाय समय के अनुसार उन भावों का उपयोग करते हुए व्यवहार करना श्रेष्ठ है। तब व्यक्ति हास्य का नहीं, प्रशंसा का पात्र बनता है। और अंत में आज विश्वविख्यात पेंटिंग 'मोनालिसा' के रचनाकार महान चित्रकार लियोनार्डो द विंची की जन्मतिथि है। मोनालिसा को लेकर कई तरह के विवाद हैं, जिनमें से एक यह भी है कि मोनालिसा विंची का खुद का पोर्ट्रेट है। निश्चित ही विंची भी अपने भीतर मौजूद नारी भाव के चलते पेंटिंग के माध्यम यह देखना चाहते होंगे कि वे स्त्री होते तो कैसे दिखते। अरे भई नाराज क्यों होती हो। मैं किसी और से नहीं, अंदर वाली से ही बात कर रहा हूँ।