बिन पेंदी का लोटा होता है मन का खोटा
अपनी कंपनी के बॉस से अजय की खूब पटती थी। वह हमेशा दूसरे कर्मचारियों के सामने बॉस की तारीफ करते नहीं थकता था। बॉस भी महत्वपूर्ण विषयों पर उससे रायशुमारी करके ही निर्णय लेता था और उसकी बात को मुश्किल से ही टालता था, क्योंकि वह जानता था कि दुनिया में कोई और उसका साथ दे न दे, अजय हमेशा उसका साथ देगा। बॉस से निकटता के चलते अजय अपने सहकर्मियों पर रौब झाड़ता रहता था। जब कर्मचारी बॉस से उसकी शिकायत करते तो उल्टे उन्हें ही डाँट पड़ जाती। इस कारण धीरे-धीरे उन्होंने अजय की शिकायत करना ही बंद कर दिया। इस बीच कंपनी में उस बॉस के ऊपर भी एक बॉस आकर बैठ गया। पीड़ित कर्मचारियों के मन में उम्मीद की एक नई किरण जागी कि अब उनकी सुनवाई होगी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर जल्द ही पानी फिर गया, क्योंकि नए बॉस के आते ही अजय ने तेजी से पलटा खाया और वह अपने पुराने बॉस की बजाय इस नए और बड़े बॉस के आगे-पीछे घूमने लगा, उसका गुणगान करने लगा, क्योंकि उसे पता था कि कंपनी में अब इस नए बॉस की ज्यादा चलने वाली है। |
अपनी कंपनी के बॉस से अजय की खूब पटती थी। वह हमेशा दूसरे कर्मचारियों के सामने बॉस की तारीफ करते नहीं थकता था। बॉस भी महत्वपूर्ण विषयों पर उससे रायशुमारी करके ही निर्णय लेता था और उसकी बात को मुश्किल से ही टालता था। |
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उसके इस बदले व्यवहार से उसका पुराना बॉस और सहकर्मी, सभी हैरान थे। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह इतनी जल्दी रंग बदल लेगा। दोस्तो, ऐसे ही लोगों को कहते हैं बिन पेंदी के लोटे। अब जिसकी पेंदी ही नहीं यानी सिद्धांत ही नहीं, उससे आप यह उम्मीदें कैसे कर सकते हैं कि आज वह आपकी तरफ है तो कल किसी दूसरे खेमे की तरफ लुढ़केगा नहीं।
ऐसे लुढ़कने लोटे पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह अपने स्वार्थ के अलावा किसी और का नहीं होता। उसे तो जिससे अपना उल्लू सीधा होता दिखेगा, वह उसी के साथ हो लेगा। ऐसे लोग इतनी तेजी से पलटा खाते हैं कि आप विश्वास ही नहीं कर सकते। बहुत से बॉस अपने कॅरियर की लुटिया ऐसे ही लुढ़कने लोटों की वजह से डुबा चुके हैं, डुबा रहे हैं, क्योंकि उनकी बातों में आकर कई बार वे गलत निर्णय कर बैठते हैं और उसके नतीजे उन पर ही उलटे पड़ते हैं। इसलिए अपने किसी मातहत पर भरोसा करने से पहले देख लें कि कहीं वह बिन पेंदी का लोटा तो नहीं, क्योंकि ऐसे लोगों का मन खोटा होता है। यदि आप ऐसे व्यक्ति से बचकर रहेंगे तो आपकी लुटिया कभी नहीं डूबेगी।दूसरी ओर, कुछ लोग हवा का रुख पहचानना जानते हैं। वे परिस्थिति पलटती देख खुद भी पलट जाते हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसा न किया जाए, तो उनकी हवा बिगड़ जाएगी यानी धाक कम हो जाएगी। इनके लिए निदा फाजली ने कहा भी है- अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं। रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं। कितने ही बॉस आएँ-जाएँ, इनकी हवा हमेशा बनी रहती है, क्योंकि ये हर नए बॉस को अपनी बातों में उलझाकर उसके प्रिय बन जाते हैं। वैसे इस गुण को पूरी तरह गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। आखिर सामने वाले की खूबी है कि वह बदलती परिस्थिति में भी अपनी हवा खराब नहीं होने देता। लेकिन कई बार हवा का रुख पहचानने वाले भी चक्रवात में गच्चा खा जाते हैं यानी जब सब कुछ उलट-पुलट हो जाता है तो ये समझ ही नहीं पाते कि अब कैसे सामंजस्य बैठाएँ। साथ ही बार-बार पलटा खाकर ये विश्वसनीयता तो पहले ही खो चुके होते हैं। इससे सभी इनसे दूरी बना लेते हैं। इस तरह ये अपने ही किए के हवाले चढ़ जाते हैं। यदि आप भी ऐसे ही हैं, तो खुद को बदल लें वर्ना नुकसान में रहेंगे। इसका मतलब यह भी नहीं कि परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको न बदलें। जरूर बदलें, लेकिन लुढ़कने लोटे की तरह नहीं। पुराने रिश्तों की कीमत पर नए संबंध न बनाएँ। तब हवा का रुख कैसा भी रहे, आप अप्रभावित रहेंगे। और अंत में, आज 'राइड द विंड डे' है। कुछ लोग गलत वक्त पर गलत बात करके मुँह की खाते हैं। इसलिए आपको हवा का रुख यानी माहौल को पहचानना आना चाहिए। जरूरी है आप हवा को अपने हिसाब से चलाना, दौड़ाना सीखें। यदि आप को हवा की सवारी आ गई तो कभी आपकी हवा नहीं बिगड़ेगी और आप हमेशा हवा से बातें करेंगे यानी कामयाबी की उड़ान भरेंगे। अरे भई, महफिल की हवा बदलना तो कोई तुमसे सीखे।