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Written By ND

चोर से मरवाओगे मोर तो कैसे मिलेगा 'मोर'

चोर से मरवाओगे मोर तो कैसे मिलेगा 'मोर'
- मनीशर्म

ND
एक शिकारी के घर में एक दिन चोर घुसा। आहट से शिकारी की नींद खुल गई। उसने तुरंत बंदूक उठाई और चोर पर तान दी। चोर को काटो तो खून नहीं। वह शिकारी के पैरों में गिरकर माफी माँगने लगा।

बोला- मैं कोई आदतन चोर नहीं हूँ। मेरे पास कोई काम नहीं था, इसलिए सोचा चोरी कर लूँ। मुझ गरीब पर दया करो। उसकी बातों से शिकारी का दिल पसीज गया। वह बोला-चल आज से मैं तुझे नौकरी पर रख लेता हूँ। तू शिकार करने में मेरी सहायता करना और जो मिलेगा, हम मिल-बाँटकर खा लेंगे।

चोर की इच्छा तो न थी, लेकिन मरता क्या न करता। उसने हामी भर दी। इस तरह शिकार कर दोनों के दिन कटने लगे। एक दिन शिकारी की मोर का मांस खाने की इच्छा हुई लेकिन उसे आलस आ रहा था। वह चोर से बोला- ये दिल माँगे मोर। इसलिए ऐ चोर, तू जंगल से मेरे लिए मोर मारकर ला। चोर को तो ऐसे ही मौके की तलाश थी। वह शिकारी की बंदूक और अन्य साजो-सामान, यहाँ तक कि घर में रखी नकदी भी एक झोले में भरकर चल दिया। घर से निकलते वक्त उसके चेहरे पर मुस्कान थी, क्योंकि वह शिकारी का शिकार जो करके जा रहा था।
इस तरह शिकार कर दोनों के दिन कटने लगे। एक दिन शिकारी की मोर का मांस खाने की इच्छा हुई लेकिन उसे आलस आ रहा था। वह चोर से बोला- ये दिल माँगे मोर। इसलिए ऐ चोर, तू जंगल से मेरे लिए मोर मारकर ला।


दोस्तो, समझदारों ने कहा है कि चोर के हाथों मोर मरवाना ठीक नहीं। शिकारी यह बात नहीं जानता था, इसलिए गलती कर बैठा। लेकिन वह शिकारी ऐसा अकेला व्यक्ति नहीं, जिसने ऐसा किया हो। ऐसी गलती तो आए दिन किसी न किसी से होती ही रहती है और बाद में पछताते हैं।

हो सकता है आप भी ऐसी ही गलती कर चुके हों या करने जा रहे हों। कर चुके हों तो सबक मिल चुका होगा। और यदि करने जा रहे हैं तो गुरुमंत्र से सबक ले लें कि चोर के हाथों मोर मरवाना सही नहीं होता, यानी अपना काम खुद करने की बजाय दूसरों के भरोसे छोड़ना अच्छा नहीं होता। इसके परिणाम ठीक नहीं होते। कारण यह कि कोई व्यक्ति कितना ही भरोसेमंद क्यों न हो, आप अपने काम के प्रति जितने फिक्रमंद होंगे, वह उतना हो ही नहीं सकता क्योंकि उस काम के प्रति उसकी जवाबदेही जो नहीं होती। वह तो आपकी होती है।
ऐसे में किसी कार्य की गंभीरता को जितना आप समझते हैं, उतना दूसरा नहीं समझता। वह तो सिर्फ इसलिए काम करता है क्योंकि आपने उससे ऐसा करने को कहा है। यानी उसके काम में जिम्मेदारी का भाव नहीं, दिखावा होता है कि वह आपके कहे अनुसार काम कर रहा है। इस तरह वह आप पर अहसान थोपेगा। वैसे भी अपने काम की बारीकियाँ जितनी अच्छी तरह आप जानते हैं वो कोई दूसरा कैसे जान सकता है।

ऐसे में यदि वह मन लगाकर भी काम करेगा, तब भी उससे जाने-अनजाने में कोई न कोई ऐसी चूक हो ही जाएगी या रह जाएगी जिससे आपका बनता काम बिगड़ जाएगा। इस तरह वह काम उतनी सफाई से नहीं होगा जितनी सफाई से आप करते। इसलिए यदि आपका दिल माँगे 'मोर' तो आप उसे किसी चोर से मत करवाओ, खुद करो। तभी मिलेगा 'मोर।'

यानी यदि आप अपनी तरक्की चाहते हैं, जिस किसी भी मुकाम पर हैं, उससे आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन स्वयं करना होगा। वैसे भी जब आप अपने कैरियर में आज की स्थिति तक खुद के भरोसे, खुद काम करके ही पहुँचे होंगे तो आगे दूसरे के भरोसे कैसे पहुँच पाएँगे।

दूसरों से काम करवाने का एक नुकसान भी है। वह यह कि यदि आप अपनी जिम्मेदारियों का भार खुद न उठाकर उसे दूसरे पर डालेंगे तो फिर उसका फायदा भी तो आपको न मिलते हुए उसी को मिलेगा न। ऐसा करते समय आप यह नहीं सोचते कि जो मौका, जो अवसर आपके लिए था, उसे आपने अपने ही हाथों सामने वाले को तश्तरी में रखकर पेश कर दिया यानी उसकी प्रगति का द्वार खोल दिया।

इस तरह उसे फल मिलता है उम्मीद से दो गुना यानी एक अपने काम का और दूसरा आपके हिस्से के काम का। वह तो मिलना निश्चित भी है क्योंकि जब काम किया है तो फल मिलने से कौन रोक सकता है। गीता में भगवान ने कहा भी है। इसलिए 'डू-इट योरसेल्फ डे' पर फैसला करें कि आज से आप अपना काम खुद करेंगे, अपनी जिम्मेदारियों को खुद पूरा करेंगे। फिर देखें आपको 'मोर' कैसे नहीं मिलता।