फिल्म ज़ीरो तीन किरदारों की कहानी है। मेरठ में रहने वाली बऊआ (शाहरुख खान), वैज्ञानिक आफिया (अनुष्का शर्मा) और सुपरस्टार बबीता (कैटरीना कैफ) कुछ कारणों से जिंदगी में अधूरे हैं। बऊआ और आफिया के साथ ऊपर वाले ने न्याय नहीं किया। बऊआ बौना रह गया और आफिया को ऐसी बीमारी है कि वह व्हील चेयर पर रहने को मजबूर है। बबीता भली-चंगी है, लेकिन उसे सच्चा प्यार नहीं मिलता। तीनों कहीं न कहीं अधूरे हैं। जहां बऊआ और आफिया कमी के बावजूद मस्ती से जिंदगी जीते हैं, वहीं बबीता ने बेवजह दु:ख ओढ़ रखे हैं। बऊआ की आफिया और बबीता से मुलाकात किस तरह जिंदगी में परिवर्तन लाती है यह 'ज़ीरो' में दर्शाया गया है।
ज़ीरो की शुरुआत बेहद बेहतरीन है। शुरुआती 45 मिनटों में फिल्म भरपूर मनोरंजन करती है। बऊआ और उसके पिता की नोकझोंक, बऊआ और उसके दोस्त की चुहलबाजी जहां हंसाती है वहीं बऊआ और आफिया का रोमांस दिल को छूता है। 'मेरे नाम तू' जैसा गाना इस रोमांस को ऊंचाइयां देता है। इन रोमांटिक दृश्यों को निर्देशक आनंद एल राय ने शानदार तरीके से फिल्माया है।
यहां तक कहानी के नाम पर रोमांटिक सीन हैं और रोमांस के बादशाह शाहरुख खान फिल्म का भार बखूबी उठाते हैं। उनका अभिनय इन रोमांटिक दृश्यों में निखर कर सामने आता है और सीधा दर्शकों को कनेक्ट करता है। सरपट तरीके से दौड़ रही फिल्म में रूकावटें तब आने लगती हैं जब कहानी को आगे बढ़ाया जाता है। अचानक फिल्म बिखरने लगती है।
आफिया के प्यार में खोया बऊआ शादी के मंडप से सिर्फ इसलिए भाग जाता है क्योंकि उसे एक डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। जिसमें जीतने पर उसे बबीता से मिलने का मौका मिलेगा जिसका वह दीवाना है। उसे लगता है कि आफिया से शादी करेगा तो बबीता को वह खो देगा। कहानी का यह पहलू बेहद कमजोर है। दर्शक समझ ही नहीं पाते कि बऊआ को अचानक क्या हो गया? आफिया को पाने के लिए वह क्या-क्या नहीं करता और जब वह राजी होती है तो वह पीछे क्यों हट जाता है?
बऊआ का डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लेना और बबीता के नजदीक पहुंचने वाला हिस्सा बेहद सतही तरीके से दिखाया गया है। दरअसल बबीता का किरदार ही सही नहीं लिखा गया है। यह गैर जरूरी लगता है क्योंकि यह किरदार कहानी पर खास असर नहीं छोड़ता। बबीता के साथ रहते हुए बऊआ को लगता है कि उसे तो इश्क बबीता से नहीं बल्कि आफिया से है। इस तरह के कन्फ्यूजन इम्तियाज अली की फिल्मों के किरदारों में अक्सर नजर आते हैं।
जिस बऊआ को दर्शक फिल्म के शुरुआत के हिस्से में पसंद करने लगते हैं उसी बऊआ को दर्शक फिल्म के दूसरे हिस्से में गलत मानते हैं क्योंकि आफिया से शादी न करने की कोई ठोस वजह बऊआ के पास नजर नहीं आती। यहां पर फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा से बड़ी चूक हुई है। वे बऊआ की मानसिकता और सोच को ठीक से दर्शा ही नहीं पाए।
दूसरे हाफ में तो फिल्म अपनी दिशा ही खो देती है। बऊआ का अमेरिका जाना, मंगल पर जाने की तैयारी करना, बेटी का होना और न जाने क्या-क्या होता रहता है और समझ ही नहीं आता कि यह क्या और क्यों दिखाया जा रहा है?
निर्देशक के रूप में आनंद एल. राय की सबसे बड़ी गलती यह है कि वे इस अधपकी स्क्रिप्ट पर फिल्म बनाने को तैयार हो गए। जहां-जहां वे फिल्म संभाल सकते थे वहां उन्होंने संभाल ली, लेकिन बाद में वे भी कुछ नहीं कर पाए। बऊआ की तरह वे भी कन्फ्यूज दिखाई दिए। इसका असर फिल्म के संपादन पर भी पड़ा। समझ में ही नहीं आया कि क्या रखें और क्या हटाएं, लिहाजा फिल्म की लंबाई बहुत ज्यादा हो गई।
शाहरुख खान फॉर्म में नजर आएं और उन्होंने बऊआ के किरदार को निभाने में अपना सौ प्रतिशत दिया है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि उनकी मेहनत पर स्क्रिप्ट ने पानी फेर दिया। अनुष्का शर्मा ने सेरिब्रल पाल्सी से ग्रस्त लड़की का रोल अदा किया। उनकी एक्टिंग औसत रही। कैटरीना कैफ के रोल की लंबाई ज्यादा नहीं थी, लेकिन उनका अभिनय बेहतर था। मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब और तिग्मांशु धूलिया ने दर्शकों को हंसाया। आर माधवन की हेअर स्टाइल बहुत खराब थी। श्रीदेवी, सलमान खान, दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, काजोल, रानी मुखर्जी, करिश्मा कपूर और जूही चावला की झलक भी फिल्म में दिखाई दी।
फिल्म की टेक्नीकल टीम बधाई की पात्र है। शाहरुख खान को बौना उन्होंने खूब दिखाया जो एकदम रियल लगता है। फिल्म के संवाद बेहतरीन है। अजय-अतुल की धुन और इरशाद कामिल के उम्दा बोलों के कारण फिल्म के गाने सुनने लायक हैं।
ज़ीरो की टीम ने एक अनोखा बौना कैरेक्टर तो ढूंढ लिया, लेकिन फिर समझ नहीं आया कि उसके साथ क्या करना है और यही पर फिल्म बौनी रह गई।