भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे महंगी फिल्म 2.0 में वो रजनीकांत देखने को मिलता है जो पिछली फिल्मों काला और कबाली में देखने को नहीं मिला था। रजनीकांत की फिल्मों से जिस तरह की अपेक्षा रहती है उस पर यह फिल्म पूरी तरह खरी उतरती है। पैसा वसूल तो छोड़िए, आपके चुकाए दामों से कुछ ज्यादा ही दे जाती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात, यह फिल्म थ्री-डी वर्जन में ही देखें। इस वर्जन में मजा दोगुना-तिगुना बढ़ जाएगा। आज तक भारत में इतनी उम्दा थ्री-डी फिल्म नहीं बनी है। निर्देशक शंकर ने 2.0 को थ्री-डी फॉर्मेट में वैसा ही फिल्माया है जैसा कि भारतीय दर्शक देखना चाहते हैं। भारतीय दर्शक चाहते हैं कि उड़ती हुईं चीजें उन तक आए और 2.0 में ऐसे दृश्यों की भरमार है।
543 करोड़ रुपये में यह फिल्म तैयार हुई है। सभी जानते हैं कि पैसा वीएफएक्स पर पानी की तरह बहाया गया है। इसलिए कहानी और रजनी से भी ज्यादा ध्यान इस बात पर रहता है कि वीएफएक्स का स्तर कैसा है? इसका एक शब्द में जवाब है- अद्भुत। वीएफएक्स का ऐसा प्रभाव है कि आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
निर्देशक शंकर ने वीएफएक्स से पूरी फिल्म को लबरेज कर दिया है ताकि मन और पेट दोनों भर जाएं। एक से बढ़कर एक सीन आते रहते हैं और आप इनका भरपूर मजा लेते रहते हैं।
थोड़ी कहानी की बात कर ली जाए। चेन्नई में अचानक लोगों के मोबाइल फोन उड़ कर गायब होने लगते हैं। मोबाइल टॉवर ध्वस्त होने लगते हैं। पुलिस और सेना नाकाम होती है। ऐसे में याद आती है वासीगरन (रजनीकांत) की।
वासीगरन समझ जाता है कि उसकी लड़ाई बेहद ताकतवर बर्डमैन (अक्षय कुमार) से है। तमाम विरोध के बावजूद वह चिट्टी (रजनीकांत) की मदद लेकर लड़ाई लड़ता है।
बर्डमैन कौन है? वह ऐसा क्यों कर रहा है? किस तरह से चिट्टी, वासीगरन और नीला (एमी जैक्सन) इस लड़ाई में बर्डमैन का सामना करते हैं यह फिल्म का सार है।
ज्यादार बड़े बजट की फिल्मों की कहानियां इसी तरह की होती है। अच्छाई बनाम बुराई की कहानी। विलेन को अलग दिखाने के लिए कुछ अलग तरह की शक्तियों से लैस दिखाया जाता है।
2.0 में भी विलेन को इसी तरह की शक्तियां हासिल हैं। यहां पर विलेन का दुनिया से लड़ने के पीछे एक उद्देश्य है। उद्देश्य अच्छा है, लेकिन रास्ता गलत है। वह आदतन बुरा नहीं है। जब सही राह पर चलते हुए उसकी कोई बात नहीं सुनी गई तो वह गुस्सा हो उठा।
यह स्क्रीनप्ले का कमाल है कि कई बार आपको फिल्म के खलनायक से सहानुभूति होने लगती है और फिल्म का नायक आपको बुरा लगने लगता है। नायक और खलनायक के बीच की लाइन धुंधली होने लगती है। आमतौर पर इस तरह की हॉलीवुड मूवी में इमोशन नहीं होते हैं, लेकिन 2.0 आपको इमोशनल भी करती है।
चूंकि कहानी में चमत्कृत करने वाले दृश्य और महानायक रजनीकांत का इतना दबदबा है कि कॉमेडी और रोमांस दब से जाते हैं। अक्षय कुमार के किरदार में थोड़ा अधूरापन भी लगता है। आखिर वह इतनी शक्तियां कैसे हासिल कर लेता है इस पर विस्तार से बताया जाना था। तकनीकी रूप से थोड़ा प्रकाश इस पर डाला गया है, लेकिन यह पूरी तरह संतुष्ट नहीं करता।
कहानी कहीं-कहीं कमजोर पड़ती है। चौंकाने वाला फैक्टर गायब है। आगे क्या होने वाला है इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। लेकिन इस तरह की बातें फिल्म देखते समय ज्यादा परेशान नहीं करती क्योंकि निर्देशक शंकर ने फिल्म की गति इतनी तेज रखी है कि आपको यह ज्यादा सोचने का समय नहीं देती।
अक्षय कुमार के फैंस को निराशा हाथ लग सकती है क्योंकि इंटरवल तक वे नजर नहीं आते और बाद में भी उनका रोल बहुत लंबा नहीं है।
निर्देशक के रूप में शंकर ने भारतीय दर्शकों की पसंद का पूरा ध्यान रखा है। जिस तरह से भारतीय, थाली में सब कुछ चाहते हैं वैसे ही मनोरंजन के मामले में भी हैं और शंकर ने उन्हें भरपूर मनोरंजन दिया है। इतने बड़े बजट की फिल्म हो तो निर्देशक को हर दर्शक वर्ग को खुश रखने के लिए कुछ समझौते भी करना पड़ते हैं और शंकर इसके अपवाद नहीं हैं।
कहानी को उन्होंने भारतीय दर्शकों की पसंद के अनुरूप पेश किया। वीएफएक्स और एक्शन दृश्य भी उन्होंने इसी सोच के साथ पेश किए हैं। शंकर और उनकी वीएफएक्स टीम बधाई की पात्र है। कुछ जगह जरूर कमी लगती है, लेकिन ऐसे दृश्य बहुत कम है। ज्यादातर दृश्य जबरदस्त हैं।
लार्जर देन लाइफ फिल्म की जो खासियत होती हैं वो सब शंकर की इस फिल्म में नजर आती है। उन्होंने जो सोचा उसे तकनीकी के सहारे बेहतरीन तरीके से वे दर्शाने में सफल रहे।
क्लाइमैक्स में तो फिल्म ऊंचाइयां छूने लगती है। फुटबॉल स्टेडियम में अक्षय कुमार और रजनीकांत की फाइट फिल्म के बेहतरीन दृश्यों में से एक है। फिल्म के शुरुआती टाइटल से लेकर तो अंत तक दर्शकों को बांधने में शंकर सफल रहे हैं।
सुपरस्टार रजनीकांत पूरी फिल्म में छाए रहे हैं। लगभग हर फ्रेम में उनका दबदबा नजर आता है। चिट्टी 2.0 में उनका काम और भी मजेदार है। फिल्म में उनका एक संवाद है कि नंबर वन और टू तो बच्चों का खेल है, मैं तो वन एंड ओनली हूं और यह फिल्म उनके इस स्टारडम को साबित करती है।
एमी जैक्सन का काम खूबसूरत लगना था और यह उन्होंने बखूबी किया। अक्षय कुमार का रोल छोटा है, लेकिन वे पूरी फिल्म में अपने किरदार की सोच की वजह से असर छोड़ते हैं। तकनीकी रूप से फिल्म बहुत मजबूत है। एआर रहमान का बैकग्राउंड म्युजिक जबरदस्त है।
प्रभावशाली थ्री-डी इफेक्ट, शानदार वीएएफक्स और सुपरस्टार रजनीकांत इस फिल्म को देखने के पर्याप्त कारण हैं।