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नोटबुक : फिल्म समीक्षा

नोटबुक : फिल्म समीक्षा - Notebook Review in Hindi, Zaheer Iqbal, Pranutan Bahl, Samay Tamrakar, Bollywood
सलमान खान समय-समय पर नए चेहरों को अवसर देते रहते हैं। 'नोटबुक' के जरिये उन्होंने ज़हीर इकबाल और प्रनूतन बहल को अवसर दिया है। 2014 की फिल्म 'टीचर्स डायरी' का यह हिंदी रिमेक है जिसे भारत के अनुसार ढाला गया है।
 
कश्मीर इन दिनों फिल्मों में फिर नजर आने लगा है। पिछली कुछ फिल्मों में खूबसूरत कश्मीर के हालात की बदसूरती दिखाई गई थी, लेकिन 'नोटबुक' में दिखाया गया कश्मीर बेहद खूबसूरत और शांत नजर आता है और लंबे समय बाद इस क्षेत्र की सुंदरता देखने को मिली है। 
 
कश्मीर के बैकड्रॉप में 'नोटबुक' एक लव स्टोरी है, जो अनोखी इस मामले में हैं कि प्रेमी-प्रेमिका फिल्म के आखिरी मिनट में पहली बार आमने-सामने होते हैं। वे बिना एक-दूसरे को देखे और जाने ही प्रेम करने लगते हैं। एक नोटबुक उनके प्रेम का जरिया बनता है और इसी के सहारे कहानी को आगे बढ़ाया गया है। 
 
कबीर (ज़हीर इकबाल) को बचपन में ही कश्मीर से भगा दिया गया था। इस दर्द को लेकर वह सेना में भर्ती हो जाता है। एक घटना से वह अपराध बोध से ग्रस्त हो जाता है और नौकरी छोड़ कश्मीर स्थित एक स्कूल में वह टीचर बन जाता है।  
 
यहां उसके हाथ एक नोटबुक लगती है जो उसके पहले इस स्कूल में टीचर रही फिरदौस (प्रनूतन बहल) की है। इस नोटबुक को पढ़ते-पढ़ते न केवल वह फिरदौस को पसंद करने लगता है बल्कि उसकी सोच में भी परिवर्तन आता है। 
 
फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले में थोड़ा कच्चापन है और कहानी की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए ठीक से सिचुएशन नहीं बनाई गई है।
 
आबादी से दूर झील में स्थित एक स्कूल वाली बात में तुक नजर नहीं आता। शायद फिल्म खूबसूरत दिखे इसलिए यह किया गया हो। इतनी सुनसान स्कूल में एक लेडी टीचर कैसे रह सकती है? जब वहां बिजली ही नहीं है तो कबीर मोबाइल कैसे चला लेता है? 
 
फिरदौस और उसके मंगेतर के बीच ब्रेक-अप वाले प्रसंग के लिए खास परिस्थितियां निर्मित नहीं की गई। अचानक एक महिला को लाकर खड़ा कर दिया जो कहती है कि वह फिरदौस के मंगेतर के बच्चे की मां बनने वाली है। फिरदौस सुन लेती है और हो गया ब्रेकअप। 
 
इसी तरह कबीर का अपनी प्रेमिका का पीछा करना और उसके प्रेमी से सलमान खान स्टाइल में फाइट करने वाला प्रसंग बचकाना है। कबीर अचानक फिरदौस को पसंद करने लगता है जो दर्शकों के लिए झटके जैसा है। यहां पर कहानी को थोड़ा और पकाया जाना था।  
 
निर्देशक ‍नितिन कक्कड़ कहानी के इन खास मोड़ को ठीक से संभाल नहीं पाए, लेकिन बीच के खाली स्थानों को उन्होंने बहुत अच्छे से संभाला है। बच्चों की क्यूटनेस का नितिन ने इतना अच्छा इस्तेमाल किया है कि ये कई बार कहानी की खामियों पर भारी पड़ जाते हैं। 
 
कबीर का बच्चों का धीरे-धीरे दिल जीतना फिल्म का बहुत अच्छा हिस्सा है। साथ ही फिल्म अपनी सादगी से भी कई बार प्रभावित करती है। कश्मीर की समस्या का निर्देशक ने इशारा भर दिया है, लेकिन प्रेम कहानी पर हावी नहीं होने दिया है और इसके लिए उनकी तारीफ की जा सकती है। 
 
'यहां नेटवर्क तभी मिलता है जब मौसम और माहौल अच्छा हो' जैसे संवाद बहुत कुछ कह जाते हैं। फिल्म में कुछ दृश्य बहुत उम्दा हैं और उनमें इमोशन उभर कर सामने आते हैं। 
 
ज़हीर इकबाल और प्रनूतन लुक के मामले में औसत हैं, लेकिन दोनों इस कहानी में फिट बैठते हैं। दोनों में ही आत्मविश्वास नजर आता है और पहली फिल्म को देखते हुए उनका अभिनय ठीक कहा जा सकता है। प्रनूतन के मुकाबले ज़हीर का अभिनय थोड़ा बेहतर है। फिल्म में पांच-छ: बच्चे दिखाए गए हैं जो अपनी मासूमियत से दिल जीत लेते हैं। 
 
विशाल मिश्रा का संगीत फिल्म देखते समय अच्छा लगता है। बैकग्राउंड म्युजिक शानदार है। मनोज कुमार खतोई की सिनेमाटोग्राफी की जितनी तारीफ की जाए कम है। कश्मीर की सुंदरता के साथ उन्होंने पूरा न्याय किया है और कई बार उनका काम फिल्म पर भारी पड़ता है।  
 
अनोखा रोमांस, बच्चों का भोलापन और शानदार सिनेमाटोग्राफी फिल्म के प्लस पाइंट्स हैं। 
 
बैनर : सलमान खान फिल्म्स, अश्विन वर्दे प्रोडक्शन्स, सिने 1 स्टूडियोज़ प्रोडक्शन 
निर्माता : सलमा खान, अश्विनी वर्दे, मुराद खेतानी
निर्देशक : नितिन कक्कड़ 
संगीत : विशाल मिश्रा 
कलाकार : ज़हीर इकबाल, प्रनूतन बहल
सेंसर सर्टिफिकेट : यू 
रेटिंग : 2.5/5