शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. Dybbuk Movie Review in Hindi
Last Updated : शनिवार, 30 अक्टूबर 2021 (14:17 IST)

डिबुक : फिल्म समीक्षा

डिबुक की कहानी में कोई पकड़ नहीं है। कुछ हॉरर दृश्यों के बदले 122 मिनट खराब करना बहुत ही महंगा सौदा है।

डिबुक : फिल्म समीक्षा | Dybbuk Movie Review in Hindi
डिबुक बनाने के पहले निर्देशक और लेखक जय के. ने इसी कहानी पर आधारित मलयालम फिल्म बनाई थी, अब हिंदी में फिल्म लेकर हाजिर हैं। यह एक हॉरर फिल्म है जिसमें 'डिबुक' का नया एंगल देकर रोमांच पैदा करने की कोशिश की है। ये डिबुक क्या है? इसके पीछे वर्षों पुरानी कहानी बताई गई है ताकि कहानी का आधार बनाया जा सके, लेकिन ये सब सतही तौर पर निपटा दिया गया है। आसान शब्दों में कहे तो डिबुक एक बॉक्स है जिसमें एक आत्मा कैद है। फिल्म की हीरोइन एक दुकान से इस बॉक्स को एंटिक पीस समझ कर खरीद लाती है और फिर उसके घर में अजीब और डरावनी घटनाएं शुरू हो जाती हैं। 
 
जब तक इस बॉक्स के रहस्य को कायम रखा जाता है तब तक फिल्म अच्छी लगती है। रूचि बनी रहती है। लेकिन जैसे ही राज से परदा हटाया जाता है फिल्म धड़ाम हो जाती है। तर्क देकर लेखक जय के. ने अपने आपको जस्टिफाई करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बन बाती है। 
 
बॉक्स में कैद आत्मा क्या चाहती है? क्यों इस तरह की घटनाएं घटती हैं? आत्मा का क्या अतीत था? जब इन सवालों के जवाब मिलते हैं तो बाल नोंचने की इच्छा होती है। कुछ भी जोड़-तोड़ कर दे मारा है। आत्मा के 'खतरनाक' मंसूबे जान कर तो आश्चर्य और हंसी आती है। 
 
हॉरर फिल्में जिन कमियों से जूझती हैं वो सब इस फिल्म में भी दिखाई देती हैं। बड़ी और शानदार हवेली है, जिसकी लाइट चली जाती है तो इन्वर्टर की व्यवस्था नहीं है। इतने बड़े घर के दरवाजे-खिड़की खुले ही रहते हैं। नौकरानी अजीब और डरावना मुंह लिए घूमती रहती है जिसकी ऐसी शक्ल देख सभी समझ जाते हैं कि इन हरकतों के पीछे ये तो नहीं है। 
 
जय के. लेखक के रूप में निराश करते हैं, निर्देशक के रूप में उनका काम थोड़ा बेहतर है। कुछ डरावने दृश्यों को उन्होंने अच्छे से पेश किया है। थोड़ा सस्पेंस क्रिएट करने में भी सफल रहे हैं, लेकिन जैसे ही लेखक हावी हुआ, बाजी उनके हाथ से निकल जाती है। 
 
इमरान हाशमी के अभिनय में कोई विविधता नजर नहीं आती है। बरसों से एक जैसा अभिनय कर रहे हैं। एक सीमा के बाद आगे नहीं जा पाते। निकिता दत्ता अपनी एक्टिंग स्किल्स से प्रभावित करती हैं। मानव कौल का न रोल ठीक से लिखा गया है और न ही वे एक्टिंग में उस स्तर तक पहुंच पाए हैं जितने की वे काबिल हैं। 
 
समय और पैसे की बरबादी का उदाहरण है डिबुक। 
 
 
  • निर्माता : कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक, भूषण कुमार, कृष्ण कुमार
  • निर्देशक : जय के 
  • कलाकार : इमरान हाशमी, निकिता दत्ता, मानव कौल
  • ओटीटी प्लेटफॉर्म : अमेजन प्राइम वीडियो
  • 1 घंटा 52 मिनट 32 सेकंड 
  • रेटिंग : 1/5 
ये भी पढ़ें
'अंतिम : द फाइनल ट्रूथ' के 'भाई का बर्थडे' का टीजर रिलीज, इस दिन होगा रिलीज गाना