तमिल फिल्म 'ऐनाबेल सेतुपति' को हिंदी में डब कर 'ऐनाबेल राठौर' नाम से रिलीज किया गया है। जिस तरह फिल्म का नाम अजीब है, वैसी यह फिल्म भी है। कहने को तो यह हॉरर-कॉमेडी मूवी है, लेकिन इसमें हॉरर नहीं के बराबर है। भूत हैं, लेकिन ये भूत कई बार इंसानों को देख डर जाते हैं। डराते कम और हंसाने की कोशिश ज्यादा करते हैं।
इस फिल्म में बदला, पुनर्जन्म, डर, हास्य, रोमांस जैसी कई चीजों को समेटने की कोशिश की गई है। दिक्कत की बात यह है कि लेखक और निर्देशक ने मोर्चे तो कई खोल लिए, लेकिन इतना मसाला उनके पास नहीं था। लिहाजा कुछ सीन अच्छे और कुछ कमजोर बने हैं।
ऐनाबेल एक अंग्रेज महिला थी और यकीन मानिए कि इस रोल में तापसी पन्नू को लिया गया है। एक भारतीय हीरोइन को अंग्रेज के रूप में आपको स्वीकारना होगा। यदि यह बात पचा ली तो फिल्म की कई बातें आप पचाने का दम रखते हैं। ऐनाबेल को एक भारतीय देवेंद्र सिंह राठौर से प्यार हो जाता है और वह शादी कर ऐनाबेल राठौर बन जाती है। ऐनाबेल का पति उसके लिए यादगार महल बनवाता है और यही बात उसकी मौत के लिए जिम्मेदार बन जाती है। कई लोग भूत बन कर महल में भटकते रहते हैं।
ऐनाबेल का रुद्रा के रूप में जन्म होता है। इस बार वह भारतीय है और साथ में चोरनी भी। लोगों की आंखों के सामने वह जेवर चुरा लेती है। रुद्रा फिर महल पहुंचती है जिससे भूतों को मुक्ति की राह दिखाई देने लगती है।
फिल्म का निर्देशन दीपक सुंदर राजन ने किया है। उन्होंने यह फिल्म केवल मनोरंजन के लिए बनाई है और कहीं भी वे खुद को भी गंभीरता से नहीं लेते। अपना भी मखौल बना दिया। एक किरदार कहता है कि आजकल नई कहानी कौन बनाता है। सभी पुरानी कहानियों को रिसाइकल कर बताते हैं।
तो, फिल्म का माहौल भी कुछ ऐसा ही है। लेकिन दिखाने के लिए ज्यादा न हो तो दोहराव होने लगता है। कॉमेडी वाले ट्रेक के साथ यही हुआ। बार-बार उसी तरह के सीन सामने आते हैं।
फिल्म की शुरुआत में दीपक कहानी के पत्ते दर्शकों के सामने नहीं खोलते। केवल जो हो रहा है उसे देखिए और तर्क मत ढूंढिए। धीरे-धीरे वे ये घटनाएं क्यों हो रही हैं इसका खुलासा करते हैं और सेकंड हाफ के बाद ही फिल्म में जान आती है।
फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहले न देखा गया हो, लेकिन मनोरंजक सीन फिल्म का बहाव बनाए रखते हैं। ऐनाबेल और देवेंद्र राठौर की प्रेम कहानी अच्छी लगती है। हालांकि इसे खूब तेजी और नाटकीय तरीके से फिल्माया गया है। फिल्म में किरदारों पर ज्यादा मेहनत की गई है और कुछ किरदार अच्छे बन पड़े हैं। उन्हें उनकी खास किस्म की हरकतों के कारण देखना अच्छा लगता है।
फिल्म को कुछ इस तरह बनाया गया है कि यह आज के दौर की फिल्म ही नहीं लगती। ऐसा लगता है मानो बरसों पुरानी फिल्म देख रहे हैं। स्पेशल इफेक्ट्स भी इसी तरह के नजर आते हैं।
तापसी पन्नू की छवि धीर-गंभीर अभिनेत्री की है। उन्हें इस फिल्म में देख कई लोग पूछ बैठेंगे कि आखिर क्यों उन्होंने यह फिल्म की। उनका अभिनय भी उनकी ख्याति के अनुरूप नहीं है। मेकअप बहुत ज्यादा खराब है। विजय सेतुपति को स्क्रीन टाइम बहुत कम दिया गया है। आधी फिल्म खत्म होने के बाद तो उनकी एंट्री होती है। योगी बाबू ने फिल्म का खासा भार उठाया है और उनके वन लाइनर मजेदार हैं।
बतौर निर्देशक दीपक सुंदर राजन ने बहुत ज्यादा लाउड फिल्म बनाई है। सारे किरदार जरूरत से ज्यादा बोलते हैं। चटख रंगों का इस्तेमाल किया गया है और दृश्यों को बहुत ज्यादा ड्रामेटिक रखा गया है। कलाकारों से भी ओवरएक्टिंग कराई गई है। फिल्म के अंत में दर्शाया है कि दूसरे भाग के लिए भी तैयार रहिए।
ऐनाबेल राठौर को यदि आप कॉमेडी फिल्म के बतौर देखें तो यह ठीक-ठाक लग सकती है। हॉरर के रूप में देखा तो निराश होना तय है।
निर्देशक : दीपक सुंदर राजन
कलाकार : तापसी पन्नू, विजय सेतुपति, योगी बाबू
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 14 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म : डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग : 2/5