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Last Modified: गुरुवार, 26 मार्च 2020 (12:00 IST)

निम्मी : अधखुले होंठों में बंद अरमान

निम्मी : अधखुले होंठों में बंद अरमान - Nimmi, Film Actress, Photo of Nimmi, raj Kapoor, Barsaat, Entertainment
कमनीय काया, ठिगना कद, गोल चेहरा, घुंघराले बाल, उनींदी-स्वप्निल आंखे, कमान की तरह तराशी गई भौंहें, पल-पल झपकती पलकें- ये सब सौंदर्य विशेषण गुजरे जमाने की अभिनेत्री निम्मी के लिए व्यक्त किए जा रहे हैं। इन विशेषताओं को देख कर हर दर्शक मासूम निम्मी को मुग्ध-भाव से देखता था। नाम भी निम्मी जो निमेष (पलकों) से ध्वनि-साम्य रखने वाला। उनका वास्तविक नाम तो नवाब बानो था, लेकिन युवा राजकपूर ने उन्हें अपनी फिल्म 'बरसात' (1949) में पेश करते हुए निम्मी बना दिया था। 
 
निम्मी का जन्म 18 फरवरी 1933 में आगरा के निकट फतेहाबाद गांव में एक रईस खानदान में हुआ था। उनके पिता अब्दुल हा‍किम रावलपिण्डी में सेना के ठेकेदार थे। निम्मी को बचपन में बहुत लाड़-प्यार मिला। उनकी मां वहीदनबाई गायिका थीं और बड़े शौक से फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किया करती थीं। चाची ज्योति भी फिल्मों में गायन और अभिनय करती थीं। सन् 47 के आसपास निम्मी चौदह साल की उम्र में अपनी चाची ज्योति के घर पहुंचीं। छुट्टियों के दिन थे। समय बिताने के लिए निम्मी मेहबूब स्टुडियो में जाकर शूटिंग देखा करती थीं। उन दिनों मेहबूब दिलीप कुमार, राज कपूर और नरगिस को लेकर अपनी प्रसिद्ध फिल्म 'अंदाज' बना रहे थे। यहीं राजकपूर ने, जो स्वयं भी 'बरसात' बनाने की तैयारियों में लगे थे, निम्मी को नजदीक से देखा।
 
 राजकपूर को 'बरसात' में ट्रैजिक रोल के लिए निम्मी जंच गईं, इसलिए निम्मी को बड़ी आसानी से फिल्मों में प्रवेश मिल गया। 'बरसात' में निम्मी पर शीर्षक-गीत 'बरसात में हमसे मिले तुम सजन' फिल्माया गया था, जो लता मंगेशकर के जादू का शुरुआती गाना था, इसलिए भी निम्मी अपनी पहली ही फिल्म से लाइम-लाइट में आ गईं। 'बरसात' के बाद निम्मी को पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। उनकी अभिनय-यात्रा निरापद रही। उस जमाने की भावनाप्रधान फिल्मों के लिए निम्मी एकदम उपयुक्त थीं, क्योंकि उनका सलोना मुखड़ा भावाभिव्यक्ति का खजाना था। कैमरे के सामने वे नैसर्गिक रूप से पात्र की काया में उतर जातीं और फयाफट काम पूरा कर देतीं। 
 
अपने करियर में निम्मी ने करीब 45 फिल्में कीं, जिनमें से आधी कामयाब रहीं। निम्मी ने अभिनय का कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन उर्दू पर उनकी अच्छी पकड़ होने से उसकी संवाद अदायगी साफ और लयात्मक थीं। उसमें सेक्स अपील भी थी, जबकि फिल्मी-आलोचना में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता था। 'आन' फिल्म के लंदन में प्रीमियर के अवसर पर पर वहां के अखबारों ने उसे 'अनकिस्ड-गर्ल ऑफ इंडियन स्क्रीन' लिखा था। निम्मी ने अपने दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया। वह 'सीन' को अपनी दिशा में मोड़ने में माहिर थीं, इसलिए कुछ कलाकार उनके साथ काम करने से घबराते भी थे। 
 
दिलीप कुमार के साथ उन्होंने 'दीदार' (1951), आन एवं दाग (1952), अमर (1954) और उड़न खटोला (1955) में काम किया। बुजदिल, सजा और आंधियां में वे देवआनंद की नायिका रहीं। आंधियां फिल्म कान फेस्टिवल में भी दिखाई गई थी। चेतन आनंद द्वारा बुद्ध के जीवन पर बनाई गई फिल्म 'अंजलि' में भी वे थीं। अशोक कुमार और किशोर कुमार के साथ भाई-भाई (1956) में आईं। उन्हें सोहराब मोदी, जयराज, भारत भूषण, राजकुमार, राजेंद्र कुमार, संजीव कुमार और धर्मेन्द्र के साथ फिल्म करने के अवसर भी हाथ लगे। बसंत बहार और चार दिल चार राहें भी उनकी उल्लेखनीय फिल्में हैं। मेरे मेहबूब (1963) के बाद उन्होंने फिल्मों से संन्यास की घोषणा कर दी। संवाद लेखक अली रजा से विवाह के बाद वे मां बनना चाहती थीं, लेकिन यह मुराद पूरी नहीं हुई।
 
सन् 1987 में के. आसिफ की फिल्म 'लव एंड गॉड' में दर्शकों ने उन्हें अंतिम बार परदे पर देखा। यह फिल्म आसिफ अधूरी छोड़ गए थे, जो उनके निधन के पश्चात प्रदर्शित की गई। 25 मार्च 2020 को निम्मी ने दुनिया को अलविदा कहा। 
 
(श्रीराम ताम्रकर द्वारा लिखित पुस्तक 'बीते कल के सितारे' (2012) से साभार) 
 
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