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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 5 अक्टूबर 2024 (11:03 IST)

5 अक्टूबर : रानी दुर्गावती की जयंती, जानें 5 अनसुनी बातें

5 अक्टूबर : रानी दुर्गावती की जयंती, जानें 5 अनसुनी बातें - Rani Durgavati Jyanati 2024
Highlights 
  • भारत की महान वीरागंना रानी दुर्गावती।
  • रानी दुर्गावती की जयंती कब मनाई जाती है।
  • इतिहास में क्यों अमर हो गया रानी दुर्गावती का नाम।
Rani durgavati history: आज, 5 अक्टूबर को भारत की महान वीरागंना रानी दुर्गावती की जयंती मनाई जा रही है। उनके वीरतापूर्ण चरित्र के लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा तथा उनका ऋणी भी रहेगा। आइए जानते हैं उनके बारे में...
 
• रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को बांदा जिले के कालिंजर किले में दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था। अत: उनका नाम दुर्गावती रखा गया। वे कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं। अपने नाम के अनुरूप ही दुर्गावती तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। 
 
• गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था। दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।
 
•दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी। दुर्गावती बड़ी वीर थी। उसे कभी पता चल जाता था कि अमुक स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वह शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। 
 
• महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। जिन्होंने अपनी मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। वीरतापूर्ण चरित्र वाली इस रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।
 
• रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित भी किया, लेकिन जब उन्हें यह एहसास हुआ कि वे बहुत दूर नहीं जा पाएंगी और जल्द ही दुश्मन के हाथों पकड़ी जा सकती हैं, तब उन्होंने अपना ही खंजर निकाला और अपने सीने में घोंप लिया।

और इस तरह 24 जून 1564 में शत्रुओं से युद्ध करते हुए अपना बलिदान दे दिया। बता दें कि वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर-मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास वह स्थान जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थीं, अब उसी स्थान नारिया नाला के पास रानी दुर्गावती का स्मारक बनाया गया है तथा वहां प्रतिवर्ष 24 जून को एक समारोह आयोजित किया जाता है, जिसे उनके सम्मानस्वरूप 'बलिदान दिवस' कहा जाता है। बहादुर रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस 24 जून 1988 को भारत शासन द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। आज भी इस वीरांगना के पराक्रम की कहानी हर हिन्दुस्तानी के दिल में जीवित हैं।

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