गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. दिवस विशेष
  3. जयंती
  4. Maharaj Agrasen Jayanti 2024
Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 (10:06 IST)

03 अक्टूबर : महाराजा अग्रसेन जयंती के बारे में सब कुछ

Maharaja Agrasen: महाराजा अग्रसेन की जयंती पर जानें उनके बारे में सब कुछ - Maharaj Agrasen Jayanti 2024
Story of Maharaja Agrasen ji : भारत के महान लोकनायक एवं महाराजा अग्रसेन की जयंती आज यानि 3 अक्टूबर, दिन गुरुवार को मनाई जा रही है। हिन्दू पंचांग के अनुसार उनका जन्म आश्विन मास के शुक्ल की प्रतिपदा हुआ था। आइए जानते हैं यहां राजा अग्रसेन के जीवन के बारे में सब कुछ...

Highlights 
  • समाजवाद के अग्रदूत थे महाराजा अग्रसेन।
  • अग्रोहा नगरी किसने बसाई थी।
  • महाराजा अग्रसेन के 3 आदर्श क्या हैं।
• महाराजा अग्रसेन का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ सेन के यहां हुआ था जो प्रतापनगर के राजा थे। मान्यता के अनुसार इनका जन्म मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की 34वीं पीढ़ी में द्वापर के अंतिमकाल और कलियुग के प्रारंभ में आज से 5000 वर्ष पूर्व हुआ था। यह भी कहा जाता है कि उनका जन्म विक्रम संवत प्रारंभ होने के करीब 3130 साल पहले हुआ था।
 
• राजा वल्लभ के अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र थे। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनकी माता का नाम भगवती था। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ॠषि ने महाराज वल्लभ सेन से कहा था कि तुम्हारा ये पुत्र राजा बनेगा। इसके राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हज़ारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा।
 
• कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के समय महाराज अग्रसेन 15 वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए थे। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके पश्चात अग्रसेनजी ने ही शासन की बागडोर संभाली।
 
• वर्तमान के राजस्थान व हरियाणा राज्य के मध्य सरस्वती नदी के किनारे प्रतापनगर स्थित था। अग्रसेन वहीं के राजा थे। बाद में इन्होंने अग्रोहा नामक नगरी बसाई थी, जो आज एक प्रसिद्ध स्थान हैं। वे बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे। उनका नाम आज भी परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। वे एक वैश्य राजा थे। उन्हें उत्तर भारत में व्यापारियों के नाम पर अग्रोहा का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अहिंसा का संदेश देकर पशु हिंसा पर प्रतिबंध लगा दिया था। कहते हैं कि हरियाणा क्षेत्र के हिसार के पास प्राचीन कुरु-चला में एक शहर, जिसे अग्रसेन ने स्थापित किया था।
 
• महाराज अग्रसेन ने नागलोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वयंवर में भाग लिया था। यहां पर इंद्रलोक के राजा इंद्र भी राजकुमारी माधवी से विवाह करने की इच्छा से उपस्थित हुए थे। परन्तु माधवी द्वारा श्री अग्रसेन का वरण करने से इंद्र कुपित होकर स्वंयवर स्थल से चले गए थे। इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ था।
 
• इंद्र ने बाद में प्रताप नगर में वर्षा करने का आदेश दिया जिसके चलते भयंकर अकाल पड़ गया। तब महाराज अग्रसेन और शूरसेन ने अपने दिव्य शस्त्रों का संधान कर इन्द्र से युद्ध कर प्रतापनगर को इस विपत्ति से बचाया था। बाद में महाराज ने महालक्ष्मी का तप किया। अग्रसेन की अविचल तपस्या से महालक्ष्मी प्रकट हुई एवं वरदान दिया कि तुम्हारे सभी मनोरथ सिद्ध होंगे और मंगल ही मंगल होगा। बाद में अग्रसेनजी ने माता को इंद्र की समस्या से अवगत भी कराया तो माता ने सलाह दी कि तुम्हें कूटनीति अपनाकर अपनी शक्ति बढ़ाना होगी। इसके लिए तुम कोलापुर के राजा की पुत्री राजकुमारी सुन्दरावती का वरण कर लो। इससे कोलापुर नरेश महीरथ की शक्तियां तुम्हें प्राप्त हो जाएंगी, तब इंद्र को तुम्हारे सामने युद्ध करने से सोचना पड़ेगा। फिर तुम निडर होकर अपने नए राज्य की स्थापना करो।
 
• महाराज अग्रसेन ने एक ओर हिन्दू धर्मग्रंथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से 3 आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक नए राज्य स्थापना के लिए राजा अग्रसेन ने अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का शासन सौंप दिया और वे खुद एक नए राज्य की जगह चुनने के लिए अपनी रानी के साथ पूरे भारत में भ्रमण करने लगे। अपनी यात्रा के दौरान एक समय में, उन्हें कुछ बाघ शावक और भेड़िया शावकों को एक साथ देखा। उन्होंने इसे शुभ संकेत माना और उसी स्थान पर अपना राज्य बनाने का निर्णय लिया।
 
• महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे। राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले हर आगंतुक को, राज्य का हर नागरिक उसे मकान बनाने के लिए ईंट, व्यापार करने के लिए एक मुद्रा दिए जाने की राजाज्ञा महाराजा अग्रसेन ने दी थी। उस युग में न लोग बुरे थे, न विचार बुरे थे और न कर्म बुरे थे। राजा और प्रजा के बीच विश्वास जुड़ा था। वे एक प्रकाश-स्तंभ थे, अपने समय के सूर्य थे। सभी ने मिल जुलाकर महान अग्रोहा समाज की स्थापना भी की। 
 
• महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे 1 रुपया व 1 ईंट देगा जिससे आसानी से उसके लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए। महाराजा अग्रसेन ने एक नई व्यवस्था को जन्म दिया। उन्होंने पुन: वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया।
 
• महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उनके 18 पुत्र हुए जिनसे 18 गोत्र चले। गोत्रों के नाम गुरुओं के गोत्रों पर रखे गए। महाराजा अग्रसेन ने 18 यज्ञ किए। उनकी दंडनीति और न्यायनीति आज प्रेरणा है। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ये भी पढ़ें
Maharaja Agrasen : महाराजा अग्रसेन पर हिन्दी में रोचक निबंध