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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020 (09:57 IST)

Ground Report: अबकी बार बिहार में बस रोजगार के वादों की बहार बा

लाखों रोजगार देने के चुनावी वादों पर क्या सोचते हैं बिहार के युवा ?

Ground Report: अबकी बार बिहार में बस रोजगार के वादों की बहार बा - Unemployment and employment become main issue in Bihar assembly elections
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार रोजगार का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है। पहले मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में सरकार आने पर 10 लाख लोगों को रोजगार देने का एलान किया तो अब सत्ता में नीतीश के साथ भागीदार भाजपा ने उससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अपने संकल्प पत्र में 19 लाख नौकरियां देने का किया वादा कर दिया है। 
 
भाजपा का 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा काफी चौंकाने वाला है क्यों एनडीए के मुख्यमंत्री उम्मीदवार नीतीश कुमार ने एक दिन पहले ही तेजस्वी के 10 लाख युवाओं को रोजगार देने के वादे पर तंज कसते हुए कहा था कि इसके लिए पैसा कहां से लाएंगे,क्या जेल से लाएंगे। 
वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में 19 लाख रोजगार देने के वादे पर तंज कसते हुए तेजस्वी यादव ने अपनी चुनावी रैली में कहा कि कल तक भाजपा कहती थी कि पैसा कहां से लाएंगे,आज कहती हैं कि 19 लाख लोगों को रोजगार देगी। तेजस्वी ने कहा कि हम सरकारी नौकरी दे रहे हैं, रोज़गार और सरकारी नौकरी में फर्क है। भाजपा जो कह रही है वो तो पकौड़ा बेचना भी हुआ। कोशिश करेगी, प्रयास करेगी। हम लोगों ने पहले भी भाजपा का एक साल में 2 करोड़ रोज़गार का वादा देख चुके है।
 
अब तक जाति और समुदाय की राजनीति के लिए पहचाने जाने वाले बिहार में संभवत पहली बार रोजगार और बेरोजगारी का मुद्दा राजनीतिक दलों के मुख्य एजेंडे में आ गया है। आरजेडी और जेडीयू दोनों ही रोजगार के नाम पर युवाओं को वोट को अपनी झोली में डालने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
बिहार चुनाव में रोजगार के मुद्दे को लेकर आखिरी बिहार के युवा क्या सोचते हैं इसको समझने के लिए वेबदुनिया ने अलग-अलग फील्ड से आने वाले युवाओं से बात की। पटना में रहने वाले राहुल सिंह राजपूत जो एमआईटी पुणे से इंजीनियरिंग कर चुके हैं,सियासी दलों के रोजगार के वादे पर कहते हैं कि चुनाव आते ही सियासी दल हमेशा की तरह इस बार भी सरकारी नौकरियां देने की बात कर रहे हैं पर सरकार में आने के बाद युवाओं और रोजगार दोनों को भूल जाते है। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि आज बिहार का युवा रोजगार के लिए राज्य छोड़ने को मजबूर है। राज्य में एक भी आईटी सेक्टर और ऐसी सॉफ्टवेयर कम्पनियां नहीं जो युवाओं को रोजगार दे सके।
अर्थशास्त्र में एमए की पढ़ाई कर रही कोमल केशरी दो टूक कहती हैं कि उनको सियासी दलों से कोई उम्मीद नहीं है वहीं उनकी साथी अर्पणा कुमारी जिन्होंने एमबीए की पढ़ाई इसी साल पूरी की है वह कहती हैं कि सरकार में आने के लिए पार्टियां हर साल वादे करती है पर होता कुछ नहीं हैं। हर साल छात्र रोजगार के लिए पलायन को मजबूर होते है। नौकरियों से पहले नेताओं को बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। बिहार में अच्छे कॉलेज और यूनिवर्सिटी की बेहद कमी है, अच्छी नौकरियों के लिए हमे दूसरे शहर जाना पड़ता है।
  
वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी वाली जानवी आनंद कहती हैं कि एक बार में इतने बड़े पैमाने पर रोजगार देने की कोई गारंटी नही दे सकता। अगर परीक्षाएं भी होती है तो उन्हें पूरा होते- होते काफी वक्त लग जाता है और उनमें होने वाली धांधली से तो हम सभी वाकिफ ही है।
वहीं एसएससी सीजीएल की तैयारी कर रही ईशा सिंह इसे चुनावी जुमला बताते हुए कहती हैं कि चुनाव आते ही नौकरियों पर चर्चा तेज हो जाती है,ये सिर्फ छात्रों को लुभाने के लिए है जिससे कि छात्र किसी तरह वोट दे दें।
बिहार के पिछड़े जिलों में एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रहे सत्यजीत कुमार कहते हैं लॉकडाउन में अचानक से बड़ी संख्या में लोगों के घर लौटने से बेरोजगारी के आंकड़ों में अचानक से वृद्धि हो गई है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार में 30 लाख लोग कोरोनाकाल में वापस लौटे है ऐसे में उनके लिए रोजगार बड़ा मुद्दा बन गया है। वहीं इससे इतर सरकारी वैकेंसी न निकलने और रिक्त पदों की भर्ती में देरी को लेकर युवाओं में बहुत गुस्सा है।
 
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