सत्रह साल की उम्र में मां-बाप को सैलाब में खो देना और उस दर्द को समेटना निश्चित ही बेहद मुश्किल है। देवकी रानी शायद उन चंद लोगों में से एक हैं जिन्होंने यह दर्द झेला है। और अब बाकी जिन्दगी भी केदारनाथ में कयामत की वो रात उन्हें सताती रहेगी।
उन्होंने रात के अंधेरे में एकाएक शांत से उस तीर्थ स्थल में कोलाहल सुना। धर्मशाला से बाहर निकलीं तो देखा पूरे केदारनाथ के लोग मंदिर की ओर क्यों भाग रहे हैं भला।
माता-पिता साथ-साथ बाहर को दौड़े, देखा लोग भाग रहे हैं और चिल्ला रहे हैं, 'मंदिर के अन्दर भागो, नहीं तो बचोगे नहीं।'
सैलाब की खबर मिलते ही लोग मंदिर में शरण लेने भाग रहे थे। देवकी रानी भी अपनी पड़ोसी के साथ मंदिर की ओर भागीं। मंदिर पहुंचने के बाद जब उन्होंने पलटकर देखा तो उन्हें मां-बाप कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
बदहवास देवकी ने उन्हें खोजने की जो भी कोशिश की वो नाक़ामयाब रही। वे उस कई फुट ऊंचे सैलाब में बह चुके थे। देवकी का सहारा उस सैलाब की भेंट चढ़ गया। इसी दौरान पीछे से किसी की आवाज आई, 'हे भगवान, क्यों बुलाया था यहां।'
'नाता टूट गया' : राजस्थान के बाड़मेर के पास की देवकी रानी हिंदी नहीं बोल पाती हैं और गमों के पहाड़ से दबीं उनके पास कहने के लिए कुछ है भी नहीं।
देवकी की ये आपबीती उनके साथ बस में मौजूद एक और महिला यात्री ने मुझे बताई। मेरे सवालों का जवाब देवकी ने अपनी भाषा में उन्हीं सहयात्री को दिया। उन्होंने कहा, 'उस रात भगवान से मेरा नाता टूट गया। क्या सोच के गए थे और क्या हो गया।'
देवकी रानी के लिए दुनिया मानो खत्म हो चुकी है। वो कहती हैं, 'अब मेरे लिए दुनिया में कुछ भी नहीं बचा है।'
राजस्थान से बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा पर उनकी बस में कुल 42 लोग आए थे। जब केदारनाथ में ये हादसा हुआ तब उनकी बस गौरीकुंड के पास खड़ी थी। उसके बाद से ड्राइवर का भी कोई पता नहीं है।
'चमत्कार ने बचाया' : 32 यात्री ही अब तक ऋषिकेश में राजस्थान सरकार के सहायता कैम्प में पहुंच सके हैं। यहां पर उनकी प्रदेश सरकार ने बस के जरिए इन सभी बचे हुए यात्रियों को घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है।
इनमें से कई तो ऐसे हैं जो यात्रा को अपने लिए चमत्कार से कम नहीं मानते। जाहिर है वे एक ऐसे सैलाब से निकल कर आए हैं जहां से वापस पहुंचना बहुत मुश्किल था।
लेकिन देवकी रानी जैसे भी तमाम हैं जिन्हें अब जिन्दगी में अंधेरे के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा।