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Written By BBC Hindi

'एक महीने के लिए मुसलमान'

इस्तांबुल
BBC
लोग आमतौर पर धर्म को जीवनभर की आस्था का विषय मानते हैं, लेकिन क्या आप किसी धर्म को एक महीने के लिए अपनाने के बारे में सोच सकते हैं?

इस्तांबुल की अयूप मस्जिद से जैसे ही अज़ान का स्वर गूंजता है, स्थानीय मुसलमान मस्जिद के प्रांगण में नमाज अदा करने के लिए जमा होने शुरू हो जाते हैं।

शुक्रवार की नमाज के लिए महिलाएं एक तरफ और पुरुष दूसरी तरफ बिछी चटाइयों पर अपनी जगह लेते हैं। इन्हीं लोगों के बीच इस हफ्ते कुछ ऐसे चेहरे बैठे थे जो आगे होने वाले कार्यक्रमों को लेकर बेहद जिज्ञासु नजर आ रहे थे।

हवाई से आई बारबरा टेलर और ग्रेटर मैनचेस्टर से आए टेरी गोल्डस्मिथ ऐसे ही दो लोग हैं। ये मुसलमान नहीं हैं बल्कि यहां पहुंचे नौ दिन के मेहमान हैं।

इस्लाम की शिक्षा : ये लोग सामाजिक संगठन ब्लड फाउंडेशन के 'मुस्लिम फॉर ए मंथ' यानि 'एक महीने के लिए मुसलमान बनें' कार्यक्रम के तहत इस्तांबुल आए हैं जहां हिस्सा लेनेवालों को धर्म की मौलिक बातें बताई जाती हैं।

बारबरा टेलर कहती हैं, 'जब मैं इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने आ रही थी तो मेरे कुछ दोस्तों ने कहा कि तुम बावली हो गई हो? तुम दुश्मनों की तरफ तो नहीं झुक रहीं?'

टेलर आगे कहती हैं, 'मेरे दोस्तों को लगता है कि अगर कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म से दूर से भी जुड़ता है तो वो चरमपंथी हो जाता है। लेकिन मेरे अंदर इस कार्यक्रम को लेकर दिलचस्पी पैदा हुई, मुझे तुर्की में रुचि है और मुझे ये भी लगा कि शायद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े धर्म को लेकर लोगों में कुछ गलत धारणाएं भी हो सकती हैं।'

लेकिन गोस्डस्मिथ के लिए इस कार्यक्रम में शामिल होने की वजह थी उनके घर के आसपास का बदलता माहौल।

वो बताते हैं, 'जहां मैं रहता हूं उस इलाके में बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं। मैं उन लोगों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानता इसलिए इस्लाम धर्म और संस्कृति के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाना चाहता हूं।'

नमाज में शामिल होना, उपवास रखना, मुस्लिम विद्वानों का व्याख्यान सुनना और स्थानीय तुर्की परिवारों के साथ समय बिताना- कार्यक्रम में शामिल लोगों की सामान्य दिनचर्या होती है।

सूफी संस्कृति का ज्ञान : ज्यादातर लोग यहां इस्लाम धर्म का परिचय हासिल करने आते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो तुर्की की सूफी संस्कृति को गहराई से समझने के लिए यहां आते हैं।

एच मसूद ताज कनाडा में रहते हैं, पेशे से वास्तुकार हैं और भारत में पले-बढ़े मुसलमान हैं। उनके जहन में कई सवाल कौंध रहे थे कि एक महीने के लिए मुसलमान बनने की क्या जरूरत है?।

वो कहते हैं, 'मेरी पहली प्रतिक्रिया तो हैरानी वाली ही थी। मैं ये सोच रहा था कि जिसे हम धर्म जैसी पवित्र चीज समझते हैं वो शॉपिंग मॉल की तरह कैसे बन सकती है- एक महीने के लिए इस्तेमाल करके देखें। ये वाकई उत्तर-आधुनिक जैसी बात लगती है, लेकिन जैसे ही आप यहां पहुंचते हैं अपने वैश्विक नजरिए की वजह से ये कार्यक्रम आपको अपने घेरे में ले लेता है।'

बारबरा टेलर की तरह ही ताज भी मानते हैं कि इस तरह के कार्यक्रम के लिए तुर्की से अच्छी जगह नहीं हो सकती थी। किसी अन्य मुस्लिम देश में ये कार्यक्रम उतना सफल नहीं हो सकता था।

असहज बातें : कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे लोगों को कुछ बातें असहज लग रही थीं। जैसे कि कुछ महिलाओं को ग्रुप के पुरुषों से अलग रखना नागवार गुजर रहा था। हालांकि आयोजकों का कहना था कि ये यहां होने वाले अनुभव का ही एक हिस्सा था।

ब्लड फाउंडेशन के बेन बाउलर कहते हैं, 'मेरा मतलब है कि ऐसी बातों को अगर सही तरीके से न समझाया जाए तो बात जरूरत से ज्यादा बढ़ जाने की संभावना भी बनी रहती है।'

बारबरा टेलर कहती हैं कि वो एक नया अनुभव लेकर घर लौट रही हैं हालांकि वो अमेरिका में अपने दोस्तों पर इसमें शामिल होने के लिए दबाव नहीं डालेंगी क्योंकि ये विषय अभी भी बेहद संवेदनशील है।

वह कहती हैं, 'मैंने इस यात्रा में बहुत कुछ सीखा है। हम पूरी तरह डूब-से गए थे। मस्जिद में नमाज पढ़ते थे, महिलाएं हमें सिखाती थीं कि क्या करना है। वाकई मेरे लिए ये आंखें खोलने वाला बेहद सकारात्मक अनुभव था।'

लेकिन आयोजकों का कहना है कि ये सब कर पाना आसान नहीं था। कार्यक्रम के शीर्षक 'एक महीने के लिए मुसलमान' ने ही कई लोगों को हतोत्साहित कर दिया। कुछ ट्रैवल कंपनियों ने इस्लाम को लेकर कुछ देशों में असहजता को देखते हुए इसे प्रमोट करने से इनकार कर दिया।

आयोजकों ने बताया कि 'सूफी फॉर ए मंथ' यानि 'एक महीने के लिए सूफी' नाम की योजना जल्दी ही शुरू होने वाली है और 'सिख फॉर ए वीक' यानि 'एक हफ़्ते के लिए सिख' नामक योजना पर काम चल रहा है।