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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 3 दिसंबर 2022 (07:54 IST)

अडानी क्या धारावी की झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की ज़िंदगी बदल देंगे?

अडानी क्या धारावी की झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की ज़िंदगी बदल देंगे? - Will adani change the life of dharavi
दीपाली जगताप, बीबीसी मराठी संवाददाता
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के केंद्र में स्थित धारावी को एशिया की 'सबसे बड़ी झुग्गी' के रूप में भी जाना जाता है। यहां एक-एक कमरे में परिवारों की दुनिया बसी है।
 
एक दीवार से दूसरे दीवार की दूरी ज़्यादा नहीं होती और ऐसे ही चार दीवारों से घिर कर लोगों का घर है। जिसे बाहर की दुनिया झोपड़ी कहती है और ऐसी ही हज़ारों झोपड़ियों से बना है धारावी।
 
40 साल की अर्चना पवार धारावी में दस बाई पंद्रह फीट के घर में रहती हैं। अर्चना पवार का जन्म धारावी में हुआ था और शादी के बाद भी धारावी में ही रह रही हैं।
 
अर्चना पवार बताती हैं, "जब मैं बच्ची थी, तब से सुन रही हूं कि धारावी में घर बनने जा रहे हैं। लेकिन अब तक चर्चा ही चल रही है, इस बीच मैं बड़ी हो गई, मेरी शादी हो गई और अब तो मेरी बेटी भी 16 साल की हो गई है।
 
लेकिन धारावी का री-डेवलपमेंट कहीं नजर नहीं आ रहा है। अब फिर कह रहे हैं कि मकान मिलेगा। लेकिन तब तक हमारे बच्चे हमारी उम्र के हो जाएंगे। हमारे सपने, सपने ही रह गए।"
 
अर्चना पवार के माता-पिता और सास-ससुर का पूरा परिवार कई सालों से धारावी में रह रहा है। उनकी शिक्षा भी धारावी में हुई। अब उनकी बेटी भी धारावी में पढ़ती है। धारावी में रहने वाले सभी लोग अभी भी सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं। अर्चना के मुताबिक़, अब तक उन्होंने छोटे-छोटे घर, गंदगी और सीवर ही देखा है।
 
उन्होंने बताया, "जब हम कहते हैं कि हम धारावी में रहते हैं तो लोग हमें अलग तरह से देखते हैं। हम सिर्फ़ उनका रवैया बदलना चाहते हैं। हमें अन्य लोगों की तरह एक अच्छी, स्वच्छ जगह में रहना चाहिए। हमारे बच्चों के लिए अच्छे स्कूल होने चाहिए। उनके पास खेलने के लिए खुला मैदान होना चाहिए। स्वास्थ्य सुविधाएं होनी चाहिए। हमलोग केवल यही चाहते हैं।"
 
अर्चना पवार और उनका परिवार ही नहीं बल्कि उनके जैसे दस लाख से ज़्यादा लोग पिछले 18 सालों से धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं। 18 साल में चार बार प्रक्रिया विफल होने के बाद इस साल धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना प्राधिकरण ने टेंडर खोले और अडानी समूह ने नीलामी जीत ली।
 
'धारावी री-डेवलपमेंट का रास्ता चुनौतियों से भरा'
अडानी समूह ने 5,690 करोड़ रुपये की बोली लगाकर इस परियोजना को हासिल किया है। इसलिए कहा जा सकता है कि धारावी री-डेवलपमेंट का रास्ता अब साफ़ हो गया है। लेकिन यह केवल शुरुआत है।
 
धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसवीआर श्रीनिवास ने बीबीसी मराठी को बताया कि 600 एकड़ में फैली इस विशाल और घनी झुग्गी का री-डेवलपमेंट "चुनौतियों से भरा" है।
 
आख़िर क्या है ये प्रोजेक्ट? धारावी के री-डेवलपमेंट की क्या योजना है? हज़ारों झोपड़ियों, सैकड़ों छोटे-मोटे काम धंधे और लाखों की आबादी वाले धारावी को कैसे बदला जाए और इसके लिए क्या चुनौतियां हैं?
 
धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना क्या है?
दरअसल झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाके के तौर पर मशहूर धारावी मुंबई के मध्य में क़रीब 600 एकड़ में फैला हुआ है। धारावी में 60 हज़ार से ज़्यादा झोपड़ियों में 10 लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं। इसके अलावा धारावी में 13 हज़ार से ज़्यादा लघु उद्योग भी चलते हैं।
 
धारावी में चमड़े का बड़ा बाज़ार है। हाथ से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार भी धारावी में बसे हैं। यहां कुम्हारों के क़रीब ढाई हज़ार घर हैं।
 
कपड़ा तैयार करने और सिलाई-कढ़ाई का काम भी यहां बड़े पैमाने पर होता है। धारावी में लाखों हाथ दिन-रात काम कर रहे हैं। इसमें ज़री के काम से लेकर सजावटी सामान तैयार करने, प्लास्टिक का सामान बनाने से लेकर कबाड़ का कारोबार जैसे सैकड़ों छोटे-बड़े काम-धंधे शामिल हैं।
 
धारावी मुंबई उपनगरीय रेलवे के मध्य, हार्बर और पश्चिमी लाइनों से जुड़ा हुआ है। यहां से पश्चिम में माहिम रेलवे स्टेशन, पूर्व में सायन क्षेत्र और उत्तर में मीठी नदी है।
 
धारावी के री-डेवलपमेंट की परियोजना अब शुरू हो रही है। अडानी समूह की ओर से री-डेवलपमेंट की बोली जीतने के बाद परियोजना की अगली प्रक्रिया राज्य सरकार के इज़ाजत के बाद शुरू होगी।
 
  • धारावी को एशिया की 'सबसे बड़ी झुग्गी' के रूप में जाना जाता है
  • धारावी के री-डेवलपमेंट के लिए एक बड़ी योजना पर काम शुरू करने की तैयारी
  • धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना में 80 फीसदी निजी और 20 फीसदी सरकारी भागीदारी होगी
  • धारावी मुंबई के मध्य में करीब 600 एकड़ में फैला हुआ है
  • धारावी में 80 प्रतिशत लोग सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं
 
धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीनिवास ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार का लक्ष्य अगले सात सालों धारावी का री-डेवलपमेंट करना है।
 
बीबीसी मराठी से बात करते हुए श्रीनिवास ने कहा, "सरकार अब हमें मंजूरी देगी। उसके बाद मास्टर प्लान तैयार होगा जिसमें कितने लोग जगह में फ़िट होंगे, कितने घर होंगे, इंफ्रास्ट्रक्चर क्या होगा, कितने कमर्शियल बिजनेस फ़िट होंगे, सब कुछ देखा जाएगा। हम निवेश के लिए भी प्रयास करेंगे। इस परियोजना को पूरा करने के लिए निवेश की आवश्यकता है।"
 
श्रीनिवास ने यह भी बताया कि इस परियोजना में 80 फ़ीसदी निजी और 20 फ़ीसदी सरकारी भागीदारी होगी।
 
धारावी री-डेवलपमेंट के लिए राज्य सरकार की ओर से पहला प्रस्ताव 2004 में आया था। इसके बाद इस विकास कार्य के लिए स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी के तहत धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना के लिए एक अलग कार्यालय स्थापित किया गया।
 
2004 में, इस परियोजना के लिए 5,600 करोड़ रुपये की प्रस्तावित लागत को मंजूरी दी गई थी। अब इस प्रोजेक्ट की लागत 28 हज़ार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।
 
री-डेवलपमेंट योजना कैसे लागू होगी?
धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना के लिए काम शुरू होने से पहले की सरकारी प्रक्रियाओं को अधिकारियों और झुग्गीवासियों की ओर से पूरा करना होगा।
 
स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (एसआरए) के मुताबिक़, मुंबई की क़रीब 48.3 फ़ीसदी आबादी स्लम में रहती है। एसआरए मुंबई में किसी भी स्लम क्षेत्र के विकास और पुनर्वास के लिए ज़िम्मेदार है। धारावी की री-डेवलपमेंट परियोजना भी एसआरए के नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार लागू की जाएगी।
 
धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना अब एसआरए के तहत काम कर रही है। आगे की प्रक्रिया के लिए दोनों प्राधिकरण और अडानी समूह मिलकर काम करेंगे। यानी इन तीनों के सहयोग से धारावी में निर्माण परियोजना के कार्यान्वयन, बुनियादी ढांचे के विस्तार और लोगों के पुनर्वास का काम होगा।
 
श्रीनिवास कहते हैं, "सरकार की मंजूरी के बाद स्पेशल पर्पस व्हीकल की स्थापना की जाएगी। री-डेवलपमेंट मास्टरप्लान भी वही बनाएगा। उसके बाद मास्टर प्लान के लिए भी सरकार की मंजूरी ज़रूरी है।
 
इस मंजूरी के बाद ही धारावी में आधिकारिक रूप से सर्वे शुरू हो पाएगा। इसमें हर छोटा मामला जैसे जनसंख्या, धारावी में निवास का आधिकारिक प्रमाण, झोपड़ी का स्थान, उसके दस्तावेज़ अधिकारियों द्वारा दर्ज किए जाएंगे।"
 
"इस सर्वे के बाद झुग्गीवासियों को नोटिस भेजा जाएगा। इसके बाद झोपड़ी मालिक की आपत्ति होने पर अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा। उसके बाद झोपड़ी के मालिकों की सहमति के बाद ही आगे का काम शुरू होगा।"
 
सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां
धारावी परियोजना में झुग्गियों का री-डेवलपमेंट एकमात्र प्रमुख मुद्दा नहीं है। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती छोटे उद्योगों, असंगठित, संगठित श्रमिकों और विभिन्न जातियों और धर्मों के समुदायों के सहयोग से इस परियोजना को लागू कराना है।
 
परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीनिवास कहते हैं, "धारावी में कोई एक चुनौती नहीं है। धारावी की आबादी, घनी आबादी वाले इलाके, एयरपोर्ट के नियमों के मुताबिक बिल्डिंग की ऊंचाई पर प्रतिबंध जैसी कई चुनौतियां हैं। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बहुसांस्कृतिक समूहों की है। विभिन्न समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है और यही बड़ी चुनौती है।"
 
देश भर के अलग-अलग राज्यों से आए विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग धारावी की तंग गलियों में एक साथ रहते हैं।
 
इस परियोजना का अध्ययन करने वाले वास्तुकार और सामाजिक कार्यकर्ता पीके दास कहते हैं, "धारावी का री-डेवलपमेंट बहुत जटिल है। धारावी मलिन बस्तियों तक ही सीमित नहीं है। इसलिए, धारावी का री-डेवलपमेंट केवल भवनों के निर्माण के बारे में नहीं है।"
 
"यहां बड़ी संख्या में श्रमिक हैं और असंगठित उद्योग-धंधे हैं, जिसमें कपड़े और चमड़े का कारोबार शामिल है। पुरानी बस्ती है तो काम भी पुराना है, इसलिए धारावी का री-डेवलपमेंट निश्चित रूप से आसान नहीं है।" उन्होंने यह भी बताया कि धारावी में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
 
उन्होंने कहा "लोगों के जीवन की गुणवत्ता बहुत ख़राब हो गई है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। कोई खुली जगह नहीं है, कोई साफ हवा नहीं है, रोशनी नहीं है, मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। मुझे लगता है कि री-डेवलपमेंट केवल दो कारणों से महत्वपूर्ण है। एक वहां जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है और दूसरा एक स्थायी और स्वच्छ वातावरण विकसित करना है।"
 
मुंबई नगर निगम के अभिलेखों में धारावी में रहने और काम करने वाले लोगों की जाति और धर्म की जानकारी मिलती है।
 
तमिलनाडु के आदि द्रविड़, नडार और थेवर, महाराष्ट्र के चर्मकार और खानाबदोश जनजाति, उत्तर प्रदेश की बरेलवी और देवबंदी मुस्लिम उप-जातियां, बिहार-पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के मुसलमान, कर्नाटक के गुलबर्गा के गांधारी समुदाय, राजस्थान से मारवाड़ी, केरल से ईसाई, हरियाणा के वाल्मीकि समुदाय के लोग बीते 136 सालों से धारावी में बसते आए हैं।
 
धारावी में स्वास्थ्य संकट
धारावी के लोग जिस जोख़िम में रह रहे हैं, उसकी गंभीरता कोरोना संकट के दौरान स्पष्ट हो गई थी।
 
मुंबई के धारावी में कोरोना वायरस के संक्रमण का प्रकोप था। लेकिन जब पूरे देश में लॉकडाउन था और लोग अपने घरों में सुरक्षित रह रहे थे तब धारावी के निवासियों के पास यह विकल्प नहीं था क्योंकि धारावी में साफ़-सफ़ाई बनाए रखने के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं थीं। साथ ही झुग्गी वालों के पास आइसोलेशन के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी।
 
धारावी में 80 प्रतिशत लोग सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं, इन लोगों ने स्थानीय प्रशासन ने 24 घंटे पानी, साबुन और सैनिटाइजर की व्यवस्था करने की मांग की थी।
 
धारावी में संक्रामक बीमारियां तेजी से फ़ैलती हैं, साथ ही डॉक्टरों का कहना है कि महिलाओं और बच्चों को उनके भोजन से पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है, इसलिए उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। धारावी में टीबी की बीमारी से संक्रमित लोग भी बड़ी संख्या में हैं।
 
धारावी की राजनीति
राजनीतिक तौर पर देखें तो धारावी दोनों राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का कहना है कि धारावी की आबादी लाखों में है और बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी रहते हैं। इसलिए यह राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा 'वोट बैंक' है।
 
धारावी मुंबई-दक्षिण मध्य लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इस सीट पर कांग्रेस और शिवसेना का दबदबा रहा है। 2009 से लगातार कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री वर्षा गायकवाड़ इस निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार निर्वाचित हुई हैं। इससे पहले उनके पिता दिवंगत एकनाथ गायकवाड़ इसी निर्वाचन क्षेत्र के जनप्रतिनिधि थे।
 
इस सीट से शिवसेना के राहुल शेवाले सांसद हैं। धारावी में, शिवसेना के चार नगरसेवक हैं जबकि कांग्रेस के दो नगरसेवक हैं और राकांपा के पास एक नगरसेवक है। इस क्षेत्र में वंचित बहुजन अघाड़ी, बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं।
 
अगर बीजेपी धारावी री-डेवलपमेंट परियोजना को पटरी पर ले जाती है या मतदाताओं को समय पर पूरा करने का वादा करती है, तो आने वाले चुनावों में बीजेपी को कितना फ़ायदा होगा?
 
इस बारे में बात करते हुए मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार सचिन धानजी ने बताया, "धारावी में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। अगर हम मान भी लें कि यहां रहने वाले मराठी, मारवाड़ी और गुजराती मतदाता बीजेपी में जा सकते हैं, तो भी बीजेपी के लिए मुस्लिम, दलित और दक्षिण भारतीय लोगों का मत हासिल करना बहुत मुश्किल है। इस लिहाज से बीजेपी को बहुत फ़ायदा नहीं है, वह ज़्यादा से ज़्यादा वॉर्ड में जीत का खाता खोल सकती है।"
 
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि धारावी की री-डेवलपमेंट परियोजना कैसे पूरी होगी और इससे यहां के लोगों लोगों का जीवन कैसे और कितना बदलेगा।
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