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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 29 नवंबर 2022 (17:05 IST)

चीन कोविड प्रदर्शन: डर और गुस्सा बना शी जिनपिंग की मुसीबत

चीन कोविड प्रदर्शन: डर और गुस्सा बना शी जिनपिंग की मुसीबत - jinping and china covid protest
कोविड का असर पूरी दुनिया पर हुआ और चीन को छोड़कर अब लगभग पूरी दुनिया ने मान लिया है कि इस वायरस के साथ ही जीना होगा। लेकिन चीन में बीते तीन साल में कई लॉकडाउन और कोविड टेस्टिंग अभियानों के साथ जी रहे लोग अब इससे शायद लाचार हो गए हैं और उनका धैर्य चूकता जा रहा है।
 
कई शहरों में कोविड बंदिशों के ख़िलाफ़ हज़ारों लोग सड़कों पर उतर पड़े हैं, लोग अब पूछ रहे हैं कि शी जिनपिंग की ज़ीरो कोविड पॉलिसी को कब तक सहना पड़ेगा।
 
राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ये सबसे बड़ा राजनीतिक टेस्ट है। देश जैसे-जैसे इस महामारी से निकलने की ज़रूरत को महसूस कर रहा है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) को बढ़ते गुस्से और कोविड के प्रति डर के बीच कोई रास्ता तलाशना होगा।
 
एक चिंगारी जिसने ग़ुस्सा भड़का दिया
उरुमची के पश्चिमी शहर में एक अपार्टमेंट में आग लग गई। पहली नज़र में ऐसा नहीं लगता कि राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के पीछे ये कारण हो सकता है।
 
लेकिन इस भयानक घटना, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी, ने उन दसियों लाख चीनी नागरिकों को सकते में डाल दिया जो गगनचुंबी अपार्टमेंट में रहते हैं: अपने फ्लैट में फंसे हुए और भयंकर आग के बावजूद निकलने में असमर्थ महसूस करते हैं क्योंकि बाहर कड़ा लॉकडाउन लगा हुआ है।
 
हालांकि प्रशासन ने इस तरह के हालात से इनकार किया है लेकिन इससे जनता में गुस्सा और बेचैनी फैलना रुका नहीं, ख़ासकर जब बचाने की गुहार लगाते और बाहर आने की विनती करते फ्लैट निवासियों के वीडियो सोशल मीडिया में तेज़ी से वायरल हो गए।
 
ये घटना कोविड बंदिशों से जुड़ी भयावह कहानियों की कड़ी में ताज़ा थी। इससे पहले, पूरे शहर में लॉकडाउन के दौरान ऐसी रिपोर्टें सामने आईं, जिनमें कहा गया कि समय पर इलाज़ न मिलने के कारण गर्भवती महिलाओं के बच्चे मर रहे हैं और बूढ़े और बीमार लोग मर रहे हैं।
 
राहत की नाउम्मीद से बढ़ी हताशा
हर लॉकडाउन की वही कहानी सामने आई। खाने और दवाओं की कमी। क्योंकि ये साफ़ हो गया है कि स्थानीय प्रशासन को ज़रूरी सामान मुहैया कराने में ख़ासी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है।
 
इसके बाद और अधिक डरावनी घटनाएं सामने आना शुरू हुईं। जैसे कि लोगों को क्वारंटीन सेंटर ले जा रही बस का दुर्घटनाग्रस्त होना, जिसमें दर्जनों मारे गए या क्वारंटीन सेंटरों में बच्चों का मरना।
 
अधिकांश लोग उम्मीद कर रहे थे कि सीसीपी कांग्रेस में कुछ राहत की घोषणा की जाएगी। इसी कांग्रेस में राष्ट्रपति शी ने सत्ता पर अपनी पकड़ को और मजबूत किया, लेकिन उन्होंने ज़ीरो कोविड नीति में कोई बदलाव न करने की बात कही, जिसने लोगों की हताशा को और बढ़ा दिया।
 
इसमें कोई शक नहीं कि इस नीति ने कई लोगों की जान बचाई और पूरी दुनिया के मुकाबले यहां कोविड से मौतों का प्रतिशत काफ़ी नीचे रहा। लेकिन इसने अपने लोगों की ऊर्जा को भी सोख लिया।
 
कोविड बंदिशों में फंसे रहना एक सामान्य अनुभव बन गया, जिसकी वजह से चीन के बड़े शहरों से लेकर, शिनजियांग और तिब्बत जैसे दूर दराज़ के इलाकों तक गुस्सा बढ़ता गया।
 
इसने समाज के हर हिस्से को उद्वेलित किया चाहे वो यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट हों, फ़ैक्ट्री वर्कर हों, मध्य वर्गीय परिवार हों या संपन्न तबका ही क्यों न हो।
 
एक आदमी ने बीजिंग ब्रिज पर प्रदर्शन किया। उसके, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की खुलेआम आलोचना करने से पूरा देश चौंक गया और इस घटना ने चीन के बाहर और अंदर सीधे और तीखे विरोध का एक पैमाना तय कर दिया, जिससे दूसरों को भी साहस मिला।
 
देश के केंद्रीय शहर झेंगझाऊ में सैकड़ों फ़ैक्ट्री वर्करों ने अपने अधिकारों की मांग को लेकर प्रदर्शन किया और पुलिस के साथ उनकी भिड़ंत हो गई, क्योंकि उन्होंने निगरानी कैमरे और खिड़कियों को तोड़ दिया।
 
दक्षिण पश्चिम में स्थित शहर शोंगकिंग में बिना मास्क लगाए एक व्यक्ति का वीडियो सामने आया जिसमें वो कहता है- 'मुझे आज़ादी दो या मौत।' यह ऐसी लाइन थी जिसे प्रदर्शनकारियों ने तुरंत अपना लिया।
 
जब उरुमची आगजनी की घटना घटी तो देशव्यापी प्रदर्शनों की भूमिका बन चुकी थी। उस शहर में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर पड़े। इसके बाद शांघाई, बीजिंग, वुहान, नानजिंग और चेंगदू में भी ऐसा ही हुआ। यहां तक कि प्रदर्शनकारी, शी जिनपिंग और सीसीपी से सत्ता से हट जाने की मांग करने लगे।
 
पहले ऐसी घटनाओं के बारे में सोचना मुश्किल था, एक ऐसे देश में जहां पार्टी और इसके नेताओं की आलोचना करने वालों को भारी सज़ा दी जाती है और सेंसर किया जाता है।
 
जानकारों का कहना है कि ये प्रदर्शन कोविड के प्रति असंतोष का बस छोटा सा नज़ारा है और इसने हालात को और पेंचीदा बना दिया है, जो पहले ही सरकार के लिए मुश्किल भरा बन चुका था।
 
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में सामाजशास्त्री हो-फंग हुंग के अनुसार, ये 'बेहद ख़तरनाक़ हालात' बयां करते हैं और शी जिनपिंग शासन के लिए गंभीर चुनौती पेश करते हैं।
 
वो कहते हैं, "बीते दो सालों में शी जिनपिंग ने ज़ीरो कोविड नीति अपनाकर खुद को मुश्किल में डाल लिया है। उनके लिए इन हालात से निपटने के लिए सबसे बेहतर रास्ता ये होगा कि अगर प्रदर्शन लागातार बढ़ता है तो इसे ख़त्म करने का स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाएं लेकिन खुद इससे दूरी बनाए रखें।"
 
डर और कोविड से आशंका
तो क्या सरकार प्रदर्शनकारियों की सुनेगी और ज़ीरो कोविड नीति में ढील देगी? मौतों और संक्रमण को न्यूनतम रखते हुए, अभी ऐसा करना मुश्किल होगा, क्योंकि देश में बुज़ुर्ग लोगों में वैक्सिनेशन की दर बहुत कम है, कोई बहुत प्रभावी घरेलू वैक्सीन नहीं है और सरकार विदेशी वैक्सीन की अनुमति से लगातार इनकार कर रही है।
 
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में माडर्न चाइना हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर राना मित्तर ने बीबीसी से कहा, "सरकार के लिए एक बहुत बड़ा असमंजस है, कि क्या वह विदेशी वैक्सीन को अनुमति देगी जोकि राष्ट्रवादी नज़रिये से शर्मिंदगी का विषय लग सकता है या वो पहले की तरह अपनी सीमाओं को बंद रखेगी बिना अंतिम तारीख़ बताए?"
 
हाल ही में चीन ने आजमाने के लिए बंदिशों में कुछ ढील दी थी। उन्होंने क्वारंटाइन के समय को कम किया और द्वितीय संपर्क को ट्रेस करना बंद कर दिया था।
 
लेकिन, जैसे सिंगापुर और आस्ट्रेलिया में ज़ीरो कोविड से कोरोना के साथ रहने की नीति अपनाकर सामान्य हालात बनाने की कोशिश की गई, वैसा किया गया तो बंदिशों में ढील देने से संक्रमण और मौतों में उछाल होना तय है।
 
यही वो आशंका है जिसे चीनी प्रशासन अभी भी स्वीकार करता नहीं दिखता।
 
दो राहे में फंसी शी जिनपिंग और सीसीपी
संक्रमण की ताज़ा लहर से निपटने के लिए बीजिंग और गुआनझाउ समेत अधिकांश शहरों में एक बार फिर कड़ी बंदिशें लगा दी गई हैं।
 
हालांकि विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि वायरस के तेज़ी से बदलने की क्षमता और सरकार के सीमित संसाधन को देखते हुए ज़ीरो कोविड नीति को जारी रख पाना मुश्किल है।
 
काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस में ग्लोबल हेल्थ पर काम करने वाले वरिष्ठ फ़ेलो यानझांग हुआंग ने कहा, "अगर सरकार अब अपनी नीति में बदलाव करना चाहे तब भी उसे देश भर में बढ़ते कोविड के मामलों से निपटना होगा। समस्या ये है कि संक्रमण को रोकने के लिए इसके पास पर्याप्त सरकारी क्षमता या जनता का समर्थन नहीं है।"
 
एक समस्या ये भी है कि अधिकारियों में इस बात का डर है कि कोविड से होने वाली मौतें बढ़ जाएंगी इससे सामाजिक आशांति फैल जाएगी।
 
लेकिन, सरकार द्वारा तीन साल तक वायरस को एक डरावना दुश्मन बताए जाने से पैदा हुए डर और प्रभावी वैक्सीन के लगातार कमी के कारण चीन के लोगों में कोविड को लेकर डर और बढ़ता जा रहा है।
 
हाल के सप्ताहों में, शिजियाझुआंग और झेंगझाउ में स्थित फॉक्सकॉन फ़ैक्ट्री कॉमप्लेक्स में अफवाह फैली कि वहां के निवासियों को 'गिनी पिग' की तरह इस्तेमाल किया जाएगा ये देखने के लिए कि अगर कोविड को बिना रोके फैलने दिया जाता है तो क्या होगा।
 
इस अफवाह से इन दोनों जगहों पर तहलका मच गया और यही नहीं इसकी वजह से झेंगझाउ में वर्कर सड़क पर उतर गए।
 
कुछ के लिए यह डर अब गुस्से में तब्दील हो चुका है। हालिया प्रदर्शनों में, भारी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए, भारी भीड़ ने मास्क उतार फेंके और आज़ादी और बंदिशों के ख़ात्मे की मांग की। ठीक ठीक ये कब और कैसे हुआ ये अभी भी स्पष्ट नहीं है।
 
शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक कोविड को लेकर एक ऐसी समस्या खड़ी कर ली है जिससे पार पाना अभी तो बहुत मुश्किल है।
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