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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 6 जुलाई 2023 (07:57 IST)

शरद पवार को गुरु मानने वाले प्रफुल्ल पटेल ने साथ क्यों छोड़ा

शरद पवार को गुरु मानने वाले प्रफुल्ल पटेल ने साथ क्यों छोड़ा - Why praful patel left sharad pawar
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
बीते दो मई को शरद पवार ने अचानक एक कार्यक्रम में एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़े की घोषणा कर दी थी।
उनके इस्तीफ़े की घोषणा के बाद कई तरह के कयास लगाए जाने लगे। पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल से सवाल किया गया कि क्या शरद पवार ने ये फ़ैसला पार्टी में चल रही आतंरिक राजनीति के कारण लिया है? जवाब में प्रफुल्ल ने कहा था, ''पार्टी एकजुट है। हम सभी शरद पवार के नेतृत्व में साथ हैं।''
 
लेकिन अब न तो पार्टी एकजुट है और न ही शरद पवार का नेतृत्व बरकरार है। बदली परिस्थितियों में प्रफुल्ल पटेल ये भी कह चुके हैं कि शरद पवार के फ़ैसले अब पार्टी के फ़ैसले नहीं हैं।
 
महाराष्ट्र की राजनीति को क़रीब से देखने और समझने वालों के लिए प्रफुल्ल पटेल का यह बदला रुख़ किसी धक्के से कम नहीं है।
 
अजित पवार, जिनके नेतृत्व में प्रफुल्ल पटेल ने शरद पवार की छत्रछाया छोड़ने का निर्णय लिया, उनकी एक महत्वकांक्षी नेता की छवि ज़रूर रही है। पर प्रफुल्ल पटेल शरद पवार का दामन छोड़ेंगे, इसका अंदेशा किसी को नहीं था। शायद, शरद पवार को भी नहीं।
 
हालांकि प्रफुल्ल पटेल ने अब भी शरद पवार को अपना गुरु बताया है। उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा था, ''शरद पवार मेरे गुरु हैं। वो हमारे मार्गदर्शक हैं... हम हमेशा उनका और उनके पद का आदर और सम्मान करेंगे, वह हम सभी के लिए एक पिता तुल्य हैं।''
 
लेकिन इतनी क़रीबी होते हुए भी प्रफुल्ल ने शरद पवार से अपने रास्ते अलग क्यों कर लिए?
 
वफ़ादारी से बग़ावत तक
वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी इसके पीछे की वजह समझाते हैं। वह कहते हैं, ''प्रफुल्ल पर ईडी और दूसरी सरकारी एजेंसियों ने बीते दिनों कार्रवाई शुरू कर दी थी। पिछले दिनों ईडी ने वर्ली स्थित उनकी कुछ संपत्तियों को भी ज़ब्त किया था। आज की तारीख़ में प्रफुल्ल पटेल के पास मुंबई की सबसे रेंटेड जगह का मालिकाना हक़ है।''
 
''वर्ली में उनकी कई संपत्तियां हैं और मुंबई के ये सबसे महंगे इलाक़ों में एक है। ऐसे में लग रहा था कि शरद पवार अपने रसूखों के बूते प्रफुल्ल पटेल को इस तक़लीफ़ से निकाल लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था और प्रफुल्ल पटेल की दिक्क़तें बढ़ती जा रही थीं।''
 
''भोपाल में पिछले दिनों नरेंद्र मोदी ने जब अपने एक बयान में कहा कि वो एनसीपी के भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे, तब इनका डर और बढ़ गया और उन्होंने अजित पवार के साथ महाविकास अघाड़ी को छोड़ने का फै़सला कर लिया।''
 
बीबीसी के सीनियर एडिटर आशीष दीक्षित भी ईडी के बढ़ते शिकंजे को इसकी एक बड़ी वजह मानते हैं।
 
आशीष कहते हैं, ''भले ही शरद पवार ने कुछ दिनों पहले प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था, लेकिन जिन प्रदेशों की ज़िम्मेदारी उन्हें दी गई थी, जैसे- हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि... अगर उन पर आप गौर करें तो समझ आएगा कि उन राज्यों में तो पार्टी का कोई वजूद ही नहीं है। तो, प्रफुल्ल पटेल क्या करते? यहां इनको क्या मिलता?'' ''जवाब है- कुछ भी नहीं''।
 
ajit pawar with praful pater and chhagan bhujbal
अजित पवार के साथ जाने से क्या फ़ायदा ?
बग़ावत के बाद अजित पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं और प्रफुल्ल पटेल ने सुनील तटकरे को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।
 
लेकिन प्रफुल्ल पटेल को क्या मिला? उनकी क्या भूमिका होगी? इस सवाल के जवाब में बीबीसी के सीनियर एडिटर आशीष दीक्षित तीन संभावनाओं की ओर इशारा करते हैं।
 
संभव है कि प्रफुल्ल पटेल को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिल जाए। मोदी कैबिनेट में फेरबदल पहले से तय हैं, ऐसे में ये संभावना है कि उनकी इस कैबिनेट में एंट्री हो।
 
प्रफुल्ल पटेल पर ईडी के जो भी मामले चल रहे हैं, जो कार्रवाइयां हो रही हैं, वो रुक जाए और सरकारी एजेंसियों के शिकंजे से वो बच जाएं।
 
आशीष कहते हैं, ''हमने पहले भी देखा है कि कोई भी विपक्ष का नेता अगर बीजेपी में शामिल होता है तो उसे ऐसे मामलों में राहत मिल जाती है।''
 
''तीसरा फ़ायदा जो प्रफुल्ल पटेल को दिखा होगा, वो यह कि वह एक बिज़नेसमैन हैं। उन्हें अपना बिज़नेस चलाना है और व्यापार की रफ़्तार को बरकरार रखने के लिए ज़रूरी है कि वो सरकार में शामिल रहें। ताकि उनका कोई भी काम न रुके। एनसीपी के ज़्यादातर नेता बिज़नेस बैकग्राउंड से आते हैं, इसलिए टूट की एक वजह ये भी हो सकती है कि ये सभी सरकार का हिस्सा रहना चाहते हैं, विपक्ष का नहीं।''
 
शरद पवार को कितना नुकसान?
आशीष दीक्षित बताते हैं, ''प्रफुल्ल पटेल एनसीपी के राष्ट्रीय चेहरा थे, उनकी महाराष्ट्र की राजनीति में कोई ख़ास पकड़ नहीं है। इसे आप ऐसे समझें कि एनसीपी मराठाओं की पार्टी है और प्रफुल्ल पटेल तो महाराष्ट्र के हैं भी नहीं। साथ ही वो गोंदिया में रहते हैं, जो छत्तीसगढ़ से सटा इलाक़ा है। इस इलाक़े में एनसीपी की राजनीतिक ज़मीन कुछ ख़ास मज़बूत भी नहीं है। इसलिए प्रदेश की राजनीति में प्रफुल्ल पटेल की भूमिका सीमित ही रही है।''
 
यही कारण है कि उनके जाने का पार्टी के वोट बैंक या वोटरों पर कोई सीधा असर होता नहीं दिखता, लेकिन हां, अगर आप इसे शरद पवार के संदर्भ में देखें, तो असल नुक़सान उनका है।
 
''प्रफुल्ल पटेल को हमेशा शरद पवार का सबसे क़रीबी समझा गया। किसी भी पार्टी से, किसी भी मौक़े पर, एनसीपी की तरफ़ से जब भी बात करनी हो, प्रफुल्ल पटेल फ्रंट में होते थे। प्रफुल्ल पटेल जो कहते, उसे शरद पवार का कथन समझकर मान लिया जाता। वो पवार की परछाई की तरह थे।''
 
''ऐसे कई मौक़े आए जब नेताओं ने पार्टी छोड़ी, एनसीपी कमज़ोर हुई पर हर बार प्रफुल्ल पटेल खड़े रहे। भले ही वो एनसीपी के मास लीडर नहीं थे, पर वो पार्टी को मैनेज कर रहे थे।''
 
आशीष कहते हैं, ''अभी एक एनसीपी के नेता कह रहे थे कि जो विधायक एनसीपी छोड़कर गए हैं, उनके जैसे सैकड़ों विधायक शरद पवार पैदा कर सकते हैं। मैं उनकी इस बात से एक हद तक इत्तेफाक़ रखता हूं। शरद पवार एक रसूख वाले नेता हैं, वो बेशक ऐसे कई विधायक खड़े कर सकते हैं लेकिन एक दूसरा प्रफुल्ल पटेल खड़ा करना, जिसके दिल्ली में इतने कनेक्शन हों, सारी पार्टियों से अच्छे संबंध हों।।।बहुत मुश्किल है। उनके पास फ़िलहाल प्रफुल्ल पटेल का कोई विकल्प नहीं है।
 
तभी जब पार्टी में दो फाड़ हुई तो शरद पवार ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में यही कहा कि मेरी नाराज़गी केवल प्रफुल्ल पटेल और ताटकरे से है, और किसी से नहीं।
 
शरद पवार से क़रीबी की कहानी
प्रफुल्ल पटेल शरद पवार को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं और शरद पवार महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री रह चुके यशवंत राव चव्हाण को। यशवंत राव प्रफुल्ल पटेल के पिता मनोहर भाई के बेहद क़रीबी माने जाते थे।
 
राजनीतिक बैठकों में ये सभी एक साथ उठते-बैठते थे। ऐसे में शरद तक प्रफुल्ल की पहुंच आसान हो गई। पिता की मौत के बाद प्रफुल्ल ने न केवल पारिवारिक बिज़नेस संभाला, उन्होंने राजनीति में भी क़दम रखा और शरद उनके पॉलिटिकल गुरु बन गए।
 
वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी बताते हैं कि शरद पवार का हमेशा से रुझान बिज़नेस बैकग्राउंड से आने वाले नेताओं के प्रति रहा है। एनसीपी में कई ऐसे नेता आपको मिल जाएंगे जिनके बड़े स्थापित बिज़नेस हैं, जैसे - छग्गन भुजबल। शरद पवार के इन शुभचिंतकों ने उन्हें आगे बढ़ने में ख़ूब मदद की।
 
प्रफुल्ल पटेल की परिवारिक पृष्ठभूमि ख़ुद व्यावसायिक रही है, इसलिए व्यावसायिक दृष्टिकोण के कारण प्रफुल्ल और शरद नज़दीक आए।
 
अजित पवार से रिश्ते
प्रफुल्ल हमेशा से शरद पवार के नज़दीकी रहे हैं। अजित पवार से उनके न तो ख़राब और न ही बेहद अच्छे रिश्ते रहे। बदले घटनाक्रम में अब ये देखना होगा कि शरद के वफ़ादार अजित के कितने क़रीब बने रहते हैं।
 
राजनीतिक करियर
दिलचस्प है कि महाराष्ट्र और देश की राजनीति में एक सफल पारी खेलने वाले प्रफुल्ल पटेल का जन्म कोलकाता में हुआ, लेकिन उनका परिवार मूलत: गुजरात से है। उन्होंने मुंबई के कैंपियन स्कूल से पढ़ाई की और फिर सिडेनहैम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएट हुए।
 
आगे की पढ़ाई के लिए प्रफुल्ल हार्वर्ड जाना चाहते थे लेकिन मात्र 13 साल की उम्र में पिता के निधन के बाद और इकलौती संतान होने के कारण, उन्हें अपना पारिवारिक बिज़नेस संभालना पड़ा। उनका बीड़ी और तंबाकू का बड़ा बिज़नेस है।
 
प्रफुल्ल पटेल के पिता मनोहरभाई पटेल एक बिज़नेसमैन होने के साथ ही साथ समाज सेवक और महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे।
 
महाराष्ट्र का गोंदिया भंडारा ज़िला उनकी राजनीति का केंद्र रहा। पिता के दिखाए रास्ते पर ही चलते हुए प्रफुल्ल ने भी राजनीति में क़दम रखा और साल 1985 में महाराष्ट्र के गोंदिया म्यूनिसिपल काउंसिल के प्रेसिडेंट बने।
 
फिर साल 1991, मात्र 33 साल की उम्र में कांग्रेस की टिकट पर गोंदिया-भंडारा सीट से लोकसभा के सांसद चुने गए। साल 1991-1996 तक देश के केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री रहे। साल 1996 और साल 1998 में भी कांग्रेस की टिकट पर भंडारा से लोकसभा सांसद चुनकर आए। एनसीपी के गठन के बाद साल 2000 में प्रफुल्ल पटेल राज्यसभा सांसद चुने गए।
 
साल 2004 में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय का स्वतंत्र कार्यभार संभाला और साल 2006 में पार्टी ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा। 2009 में एनसीपी के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़े, जीते और फिर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री का पद संभाला। 2011 में उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री बने।
 
साल 2014 में बीजेपी के नाना पटोले ने लोकसभा चुनाव में उन्हें कड़ी शिकस्त दी। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। प्रफुल्‍ल पटेल 2022 में भी राज्‍यसभा के लिए चुने गए।
 
इसके इतर साल 2009 में वो ऑल इंडिया पुटबॉल फेडरेशन (AIFF) के अध्यक्ष भी चुने गए और साल 2022 में जब तक सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पद से हटा नहीं दिया तब तक वे अध्यक्ष बने रहे।
 
किन मामलों में जांच का सामना कर रहे हैं प्रफुल्ल?
पटेल अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के क़रीबी गैंगस्टर इक़बाल मिर्ची से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी की जांच के दायरे में है। उन पर कार्रवाई भी हुई है। ईडी ने उनके सैकड़ों करोड़ रुपये से ज़्यादा की संपत्ति को ज़ब्त भी किया है। वहीं उनके ख़िलाफ एविएशन स्कैम मामले में भी जांच चल रही है।
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