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Last Modified: सोमवार, 3 जुलाई 2023 (12:00 IST)

अजित पवार के शरद पवार से सीखने, सुप्रिया सुले से प्रतिस्पर्धा और महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में शामिल होने तक की पूरी कहानी

अजित पवार के शरद पवार से सीखने, सुप्रिया सुले से प्रतिस्पर्धा और महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में शामिल होने तक की पूरी कहानी - Full story of politics of Maharashtra Deputy Chief Minister Ajit Pawar
-नामदेव काटकर
Maharashtra Political News: नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार रविवार (02 जुलाई 2023) को अपने कई साथियों के साथ महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार ने प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। प्रदेश में फिलहाल बीजेपी और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के गठबंधन की सरकार है, जिसमें देवेंद्र फडणवीस पहले ही उपमुख्यमंत्री पद पर हैं।
 
शपथ लेने के बाद अजित पवार ने कहा कि उन्होंने 'एनसीपी पार्टी के तौर पर सरकार में शामिल होने का फ़ैसला लिया है और अगले चुनाव में वो पार्टी के चिन्ह और नाम के साथ ही मैदान में उतरेंगे। इधर उनके चाचा शरद पवार ने कहा है, एनसीपी किसकी है इसका फ़ैसला लोग करेंगे। एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता महेश भारत तपासे ने स्पष्ट किया है, 'ये बगावत है जिसे एनसीपी का कोई समर्थन नहीं है।'
 
बदलता घटनाक्रम : बीते कुछ महीनों से महाराष्ट्र के अख़बारों में 'अजित पवार नॉट रिचेबल' और 'अजित पवार बगावत करेंगे' जैसी सुर्खियां देखने को मिल रही थीं। कुछ सप्ताह पहले शरद पवार के पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने की बात मीडिया में छाई हुई थी। उस वक्त अटकलें लगाई जा रही थीं कि पार्टी की कमान अजित पवार को मिलेगी। लेकिन शरद पवार ने इस्तीफा वापस ले लिया जिसके बाद इस तरह के कयास लगना बंद हुए।
 
अजित पवार को जल्दबाज़ी से काम करने वाले और खुलेआम नाराज़गी जताकर पार्टी को एक्शन लेने पर मजबूर करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। उन्हें बेहद महत्वाकांक्षी नेता भी माना जाता है। वो पांच बार प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने लेकिन मुख्यमंत्री बनते-बनते चूक गए। लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में कई लोगों की पसंद अजित पवार नहीं है। लेकिन क्या इन बातों का मूल अजित पवार के राजनीतिक सफर में खोजा जा सकता है।
 
अनंतराव पवार से अजित पवार तक : सतारा से बारामती आकर बसे पवार परिवार के पास किसान मजदूर पार्टी की विरासत थी। शरद पवार की मां शारदाबाई पवार शेकाप से तीन बार लोकल बोर्ड की सदस्य रही थीं। उनके पिता गोविंदराव पवार स्थानीय किसान संघ का नेतृत्व करते थे। हालांकि शरद पवार ने 1958 में कांग्रेस का हाथ थाम लिया। 27 साल की उम्र में 1967 में वो बारामती से विधानसभा चुनाव में उतरे।
 
उस वक्त उनके बड़े भाई अनंतराव पवार ने उनकी जीत के लिए कड़ी मेहनत की। शरद पवार पहली बार चुनाव जीतकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे।
 
इसके बाद वो राज्य मंत्री बने, फिर कैबिनेट मंत्री और फिर 1978 में मुख्यमंत्री बने। 1969 में जब कांग्रेस दोफाड़ हुई तो शरद पवार और उनके राजनीतिक गुरु यशवंतराव चव्हाण इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस गुट में शामिल हुए।
 
1977 में जब कांग्रेस में एक बार फिर बंटने की कगार पर पहुंची तो शरद पवार और चव्हाण ने कांग्रेस यूनाईटेड का दामन थामा जबकि इंदिरा गांधी कांग्रेस (इंदिरा) का नेतृत्व कर रही थीं। साल भर बाद वो कांग्रेस यूनाईटेड का साथ छोड़ जनता पार्टी के साथ गठबंधन में आए और महज़ 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने।
 
शरद पवार की पीढ़ी से किसी और ने राजनीति में कदम नहीं रखा। अगर पवार के बाद इस परिवार से कोई राजनीति में आया, तो वो हैं अनंतराव के बेटे अजित पवार। हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि उनकी एंट्री के दशकों बाद शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की एंट्री के बाद पार्टी में हालात बदलने लगे।
 
1982 में राजनीति में रखा कदम : 1959 में देओलाली में जन्मे अजित पवार ने 1982 में राजनीति में कदम रखा। वो कोऑपरेटिव चीनी मिल के बोर्ड में चुने गए जिसके बाद वो पुणे जिला कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन रहे।
 
1991 में बारामती लोकसभा सीट से वो चुनाव जीते लेकिन फिर उन्होंने इसे शरद पवार के लिए खाली कर दिया। इसके बाद उन्होंने बारामती से विधानसभा चुनाव जीता। 1991 से लेकर 2019 तक वो लगतार सात बार इस सीट से जीतते रहे हैं। (1967 से 1990 तक शरद पवार यहां से विधायक रहे)
 
संसदीय चुनाव जीत कर अजित पवार ने नए फलक पर दस्तक दी लेकिन वो इससे सालों पहले यहां की स्थानीय राजनीति का अहम चेहरा बन चुके थे। 1978 में कांग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार 1987 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस में लौट आए।
 
1990 का दशक आते-आते देश की राजनीति में उथल-पुथल शुरू हो गई। वीपी सिंह और चन्द्रशेखर की सरकार एक के बाद एक गिर चुकी थी और राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। केंद्र में सत्ता का नेतृत्व पीवी नरसिम्हा राव के कंधों पर था। 1991 में उन्होंने शरद पवार को रक्षामंत्री का पद देकर केंद्र में आमंत्रित किया।
 
उस वक्त केंद्र में जाने के लिए शरद पवार का सांसद होना जरूरी था। शरद पवार के लिए सुरक्षित माने जाने वाले बारामती विधानसभा क्षेत्र से तीन-चार महीने पहले ही अजित पवार वहां से चुने गए थे। लेकिन अजित पवार ने अपने चाचा के लिए इस्तीफा दे दिया। इसी साल अजित पवार ने बारामती सीट से महाराष्ट्र विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ीं। वो 1991 से लेकर आज तक 32 साल से अधिक समय तक बारामती से विधायक हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार उद्धव भड़सालकर ने बारामती में अजित पवार के शुरुआती दौर को क़रीब से देखा है। वो कहते हैं कि उस समय कांग्रेस के पुराने नेता-कार्यकर्ता यहां थे। अजित पवार ने पार्टी को युवा बनाने की शुरुआत की। उन्होंने पिंपरी-चिंचवड़ और बारामती इलाकों में युवा नेताओं का रैंक बनाना शुरू किया। वो वह छोटे से छोटे कार्यक्रम में भी शामिल होते थे।
 
कब-कब बने उपमुख्यमंत्री
  • 2 जुलाई 2023 में शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और बीजेपी के साथ हाथ मिलाया।
  • दिसंबर 2019 से जून 2022 में शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के नेतृत्व वाली महाविकासअघाड़ी सरकार में शामिल रहे।
  • नवंबर 2019 में तीन दिन के लिए बीजेपी के देवेंन्द्र फडणवीस सरकार में शामिल रहे।
  • नवंबर 2012 से सितंबर 2012 तक और फिर अक्टूबर 2012 से सितंबर 2014 तक कांग्रेस की पृथ्वीराज चव्हाण सरकार में रहे।
 
शरद पवार का स्टाइल सीखा
  • शरद पवार के लिए सांसदी छोड़ने के बाद अजित पवार प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए।
  • 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाइक की सरकार में वो कृषि राज्य मंत्री रहे।
 
इसके बाद के दौर में एक तरफ उत्तर प्रदेश में बाबरी विध्वंस हुआ तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र में सांप्रदायिक दंगे और एक के बाद एक बम धमाकों ने मुंबई-महाराष्ट्र को हिलाकर रख दिया।
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तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अनुभवी शरद पवार को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा। उन्होंने शपथ लेते ही नई कैबिनेट की घोषणा की और इसमें अजित पवार को ऊर्जा राज्यमंत्री का प्रभार दिया।
 
1995 में महाराष्ट्र में कांग्रेस हार गई और शिवसेना-भाजपा गठबंधन सत्ता में आई। इसके बाद शरद पवार सांसद बने और वापस दिल्ली चले गए, लेकिन अजित पवार ने राज्य की राजनीति को चुना।
 
इंडिया टुडे में 'क्यों नाराज़ अजित पवार ने पाला बदला' लेख में वरिष्ठ पत्रकार किरण तारे कहते हैं कि शरद पवार के दिल्ली चले जाने के बाद अजित पवार ने न सिर्फ बारामती पर कब्ज़ा किया, बल्कि यहां कांग्रेस का प्रभाव भी बढ़ाया। उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाते हुए परोक्ष रूप से यह भी दिखा दिया कि वे ही शरद पवार के उत्तराधिकारी होंगे।
 
1999 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता विलासराव देशमुख के प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद अजित पवार को सिंचाई विभाग की ज़िम्मेदारी दी गई। इसे बाद में जल संसाधन मंत्रालय में मिला दिया गया। ये मंत्रालय 2010 तक उनके पास रहा।
 
2004 में कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। कांग्रेस को 69 और एनसीपी को 71 सीटें मिलीं। ऐसे में जब एनसीपी को मुख्यमंत्री पद मिलने की उम्मीद थी तो कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने।
 
अगर एनसीपी को उस समय मुख्यमंत्री पद मिला होता तो अजित पवार सीएम बन सकते थे। लेकिन कहा जाता है कि शरद पवार के कुछ राजनीतिक समझौतों और रणनीति के कारण, एनसीपी को मुख्यमंत्री का पद नहीं मिला। अजित पवार ने इन कथित 'हथकंडों' पर परोक्ष रूप से अपनी नाराज़गी जाहिर की है।
 
लोकमत के विदर्भ संस्करण के कार्यकारी संपादक श्रीमंत माने कहते हैं, "अजित पवार 2004 में मुख्यमंत्री बन सकते थे। कांग्रेस और राष्ट्रवादी पार्टी के बीच के फॉर्मूले के मुताबिक़ मुख्यमंत्री का पद एनसीपी को जाना तय था। लेकिन उस समय के समीकरणों के कारण ऐसा नहीं हुआ।"
 
वरिष्ठ पत्रकार अभय देशपांडे कहते हैं कि एनसीपी के मुख्यमंत्री पद न लेने का एक कारण यह था कि पार्टी में दावेदार अधिक थे। अगर वह पद लेते तो पार्टी को नुक़सान होता। जब एक पद के लिए चार दावेदार हों तो पार्टी में मतभेद सामने नहीं आने चाहिए।
 
2004 में एनसीपी के पास कई युवा नेता थे जो लगभग एक ही उम्र के थे, इनमें आरआर पाटिल, सुनील तटकरे, जयंत पाटिल, दिलीप वलसेपाटिल, अजित पवार और राजेश टोपे शामिल हैं। लोकमत अख़बार को दिए एक इंटरव्यू में अजित पवार ने इस पर टिप्पणी की थी।
 
उन्होंने कहा था कि अभी ये बात कहने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन 2004 में एनसीपी को मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ना चाहिए था। कई लोग मुख्यमंत्री बन सकते थे। आरआर पाटिल, भुजबल साहेब या कोई और सीएम बन सकता था।
 
सुप्रिया सुले की एंट्री : 2006 में पवार परिवार की एक और शख्सियत सुप्रिया सुले ने राजनीति में कदम रखा। राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद सुप्रिया सुले ने राजनीति में प्रवेश किया।
 
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे कहते हैं कि 2004 में अजित पवार और सुप्रिया सुले के बीच ज्यादा कंपीटिशन नहीं था। हालांकि, बाद में सुप्रिया सुले ने युवा राष्ट्रवादी के तौर पर काम शुरू किया और उनका नेतृत्व और अधिक दिखाई देने लगा। वहीं, अजित पवार का पार्टी में वर्चस्व भी बढ़ा। इसलिए अब दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
 
सुप्रिया सुले को 2009 में बारामती से लोकसभा टिकट मिला, इसी क्षेत्र से अजित पवार ने काम करना शुरू किया था। लेकिन इसके बाद मीडिया में इस तरह के सवालों का विश्लेषण शुरू हो गया कि क्या अजित पवार और सुप्रिया सुले के बीच प्रतिस्पर्धा है।
 
खुद अजित पवार और सुप्रिया सुले समय-समय पर ऐसी किसी प्रतिद्वंद्विता से इनकार करते रहे हैं। लेकिन शरद पवार का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन, इस सवाल के जवाब की तलाश राजनीतिक विश्लेषक इन दोनों में से किसी एक के नाम पर रुक जाते हैं।
 
इसलिए सुप्रिया सुले की राजनीति में एंट्री जितना एनसीपी के लिए नहीं, उससे कहीं अधिक अजित पवार के राजनीतिक सफर में एक अहम घटना मानी जाती है।
 
दो घोटाले जिनमें अजित पवार का नाम आया : सिंचाई घोटाला : 1999 और 2009 के बीच बांधों और सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण में कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। इस दौरान अजित पवार जल संसाधन मंत्री थे, ज़ाहिर है कि विपक्षी दलों ने इसके लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सिंचाई परियोजनाओं के ठेकों के आवंटन और उन्हें पूरा करने में अनियमितताएं देखी गई हैं।
 
2012 में गठबंधन सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया और अजित पवार को क्लीन चीट दे दी। लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इसकी जांच का आदेश दिया।
 
राज्य सहकारी बैंक घोटाला : राज्य सहकारी बैंक ने 2005 से 2010 के बीच बड़ी मात्रा में सहकारी चीनी मिलों, सहकारी धागा मिलों, कारखानों और अन्य कंपनियों को लोन दिए थे। ये सभी लोन डिफॉल्ट हो गए थे। 2011 में रिजर्व बैंक ने राज्य सहकारी बैंक के निदेशक मंडल को बर्खास्त कर दिया था। साथ ही सितंबर 2019 में पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार समेत 70 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
 
इस मामले की जांच के दौरान पता चला कि बिना कोलैटरल या को-ऑपरेटिव गारंटी लिए 14 फैक्ट्रियों को लोन देने, दस्तावेजों की जांच न करने, रिश्तेदारों को लोन देने से बैंक को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ।
 
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