करीब दो दशक पहले तक मनोरंजन का माध्यम माना जाने वाला सर्कस भारत में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। मुंबई के बांद्रा में आज तक 'रैम्बो सर्कस' चल रहा है। वहां जाकर मालूम हुआ कलाकार किन विकट परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।
बात जब सर्कस की होती है तो सबसे पहले बात सर्कस के 'जोकर' से ही शुरू होती है। 40 वर्षीय बीजू पिछले 25 सालों से 'रैंबो सर्कस' में 'जोकर' का किरदार निभा रहे हैं।
बीजू बताते हैं, 'मैंने अपने बच्चों को नहीं बताया था की मैं सर्कस का 'जोकर' हूं, डर लगता था कहीं उन्हें बात बुरी न लगे कि उनके पिता-पति एक 'जोकर' हैं जिस पर सब हंसते हैं।'
वे आगे कहते हैं, '25 वर्षों से काम करने के बाद अब जाकर मैं 25 से 30 हजार रुपए की आमदनी हर महीने कर पाता हूं, जिससे परिवार का पोषण होता है। लेकिन कुछ माह पहले मैंने परिवार को अपना सच्चाई बता दिया।"
'रैम्बो सर्कस' की स्थापना 1991 में महाराष्ट्र के पुणे शहर में पी.टी दिलीप ने की थी। अब इसकी जिम्मेदारी उनके बेटे के सर है।
सूदीप दिलीप कहते हैं, '15 साल पहले भारत में 350 से भी ज्यादा सर्कस थे लेकिन अब सिर्फ 11 या 12 ही बचे हैं।'
वे आगे कहते हैं, 'मनोरंजन के सभी माध्यमों ने तकनीक की मदद से तरक्की कर ली लेकिन सर्कस आर्थिक कमजोरी के कारण पीछे रह गया।'
सर्कस में 'क्लोन' की भुमिका निभा रहे राजीव कहते हैं, 'आज मैं जो कुछ भी हूं इस सर्कस की वजह से हूं, नहीं तो इस कद काठी के साथ मुझे कौन काम देता अगर यह सर्कस भी बंद हो गया तो न जाने मैं क्या काम कर पाऊंगा?'
जानवर भी सर्कस के मुख्य आकर्षणों में से एक होते हैं। सूदीप बताते हैं, 'हम इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं की जानवरों को किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ न हो, जानवरों की देख-रेख में हम हर दिन करीब 25 हजार रुपए खर्च करते हैं।'
वे कहते हैं कि सर्कस की ओर से हमने सरकार से भी आर्थिक मदद की गुजारिश की है लेकिन अभी तक किसी भी प्रकार की मदद हमें नहीं मिली है।