पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नया सियासी ड्रामा शुरू हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान 23 दिसंबर को विधानसभा भंग करने का ऐलान कर चुके हैं जबकि इमरान खान से असेंबली भंग करने का वादा कर चुके पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज इलाही की स्थिति अब स्पष्ट नहीं है।
इमरान खान ने घोषणा की है कि पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की असेंबली शुक्रवार यानी 23 दिसंबर को भंग कर दी जाएंगी। इसका मतलब ये होगा कि फिर यहां नए चुनाव कराने होंगे। अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद इमरान खान को दस अप्रैल 2022 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। तब से ही इमरान खान नए चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं और देशभर में रैलियां करके अपने लिए जनसमर्थन बढ़ा रहे हैं।
अब केंद्र सरकार पर चुनाव कराने के लिए दबाव बनाने के लिए इमरान खान ने नया दांव खेला है। उन्होंने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और पंजाब की विधानसभाओं को 23 दिसंबर को भंग करने का ऐलान कर दिया है।
अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए इमरान खान से केंद्रीय सत्ता हथिया चुके पीडीएम गठबंधन (पीपुल्स पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग और जमात-इस्लामी समेत एक दर्जन से अधिक पार्टियों का गठबंधन) ने पंजाब में विधानसभा को भंग होने से बचाने के लिए अपना नया दांव चल दिया है।
पीडीएम पंजाब में अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है ताकि असेंबली के भंग होने की प्रक्रिया को कुछ समय के लिए टाला जा सके और इस दौरान बीच का कोई रास्ता निकाला जा सके।
पाकिस्तान की 66 फ़ीसदी आबादी पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में रहती है। इमरान खान इन प्रांतों में चुनाव के ज़रिए ये भी बताना चाहते हैं कि देश में जनसमर्थन उनके साथ है। पाकिस्तान में चल रहे इस सियासी ड्रामें में घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहा है।
पाकिस्तान के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सैयद अतहर अब्बास कहते हैं, "ये एक लगातार बदल रहा सियासी ड्रामा है, कई राजनीतिक फ़िल्में एक साथ चल रही हैं और हालात बदल रहे हैं। इमरान खान चाहते हैं कि पंजाब विधानसभा भंग हो। इमरान खान को लगता है कि ऐसा होने से उन्हें राजनीतिक राहत मिल सकती है। जिस दिन से इमरान खान ने असेंबली भंग करने का ऐलान किया है, तब से केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन पंजाब विधानसभा को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहा है कि असेंबली को बचाया जाए।"
पंजाब पाकिस्तान की राजनीति के लिए सबसे अहम प्रांत है क्योंकि ये पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। ये कहा जाता है कि जो पंजाब की पर शासन करता है वही पाकिस्तान पर शासन करता है।
पंजाब ही वो प्रांत है जहां पर पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (नवाज़ शरीफ़ की पार्टी) और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (इमरान खान की पार्टी) में टकराव होता रहा है। ये दोनों इस समय पाकिस्तान के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल भी हैं।
इमरान खान ने पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की असेंबली भंग करने का ऐलान किया है। ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में इमरान की पार्टी के पास बहुमत है और उनके कहते ही ऐसा हो जाएगा। लेकिन पंजाब में राजनीतिक समीकरण अलग हैं।
पंजाब में इमरान खान की पार्टी गठबंधन की सरकार में हैं। पंजाब में पीटीआई पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क़ायद ए आज़म) के साथ मिलकर सरकार चला रही है और पीएमएल (क्यू) के नेता परवेज इलाही मुख़्यमंत्री हैं।
पीएमल (क्यू) के पास सिर्फ़ दस सीटें हैं लेकिन वो प्रांत में किंगमेकर हैं और मुख्यमंत्री हैं। उनकी सरकार पीटीआई के दम पर खड़ी है।
पीडीएम इस समय पाकिस्तान का सत्ताधारी गठबंधन है जिसकी केंद्र में सरकार है। इसमें पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और जमात-ए-इस्लामी (एफ़) समते एक दर्जन से अधिक दल इसमें हैं।
पीडीएम गठबंधन पंजाब की असेंबली को भंग होने से रोकना चाहता है।
यही वजह है कि पंजाब की राजधानी लाहौर राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनी हुई है। पीडीएम गठबंधन पंजाब असेंबली को भंग होने से बचाने के अपने विकल्पों पर काम शुरू कर चुका है।
इस्लामाबाद में बीबीसी संवाददाता शुमायला जाफ़री के मुताबिक, "पीडीएम ने परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के लिए विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव जमा कर दिया है। अविश्वास प्रस्ताव आने से अब असेंबली भंग होने का मामला कम से कम एक सप्ताह खिंच जाएगा। यानी पंजाब की असेंबली 23 दिसंबर को भंग नहीं हो पाएगी। पीडीएम यही चाहता है। एमडीएम ने एक पत्ता और खेला है कि गवर्नर के ज़रिए मुख्यमंत्री विश्वासमत हासिल करें। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि पीडीएम को इससे कोई बड़ा फ़ायदा नहीं होगा। इस क़दम से पीडीएम विधानसभा के भंग होने में थोड़ा देरी तो कर सकते हैं लेकिन इमरान खान इस स्थिति में है कि असेंबली को भंग करा सकते हैं।"
पंजाब इस समय सियासी अखाड़ा बना हुआ है और परवेज इलाही को प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं। इलाही पहले ही इमरान खान से वादा कर चुके हैं कि जब भी वो कहेंगे, असेंबली को भंग कर दिया जाएगा।
यहां प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और पूर्व प्रीमियर चौधरी सुजात हुसैन ने राजनीतिक गतिरोध का हल निकालने के लिए अलग-अलग मुलाक़ाते की हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने पीएमएल (क्यू) के नेता सुजात हुसैन से मुलाक़ात की और उनसे परवेज इलाही को अपनी तरफ़ खींचने के प्रयास फिर से शुरू करने के लिए कहा। आसिफ़ ज़रदारी ने भी सुजात हुसैन से मुलाक़ात की है।
पीडीएम गठबंधन चाहता है कि परवेज इलाही इमरान खान की पार्टी का साथ छोड़कर इस गठबंधन में आ जाएं और मुख्यमंत्री बनें रहें।
शुमायला जाफ़री कहती हैं, "पीडीएम कोशिश कर रही है कि परवेज इलाही के साथ कोई सौदा हो जाए और वो इमरान खान के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठा ले। हालांकि ऐसा होना आसान नहीं है क्योंकि परवेज इलाही को भी लग रहा होगा कि ऐसा करना कहीं राजनीतिक आत्महत्या ना हो क्योंकि इस समय जनसमर्थन इमरान खान के साथ है। लेकिन पाकिस्तान की सियासत में किसी भी स्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। बैठकें होती रहेंगी, अफ़वाहें उड़ती रहेंगी, लेकिन देखना यही होगा कि आगे क्या होता है।"
सैयद अतहर अब्बास की राय भी यही है कि परवेज इलाही के लिए इमरान खान को छोड़कर जाना आसान नहीं होगा। वो कहते हैं, "परवेज इलाही भी नहीं चाहते हैं कि असेंबली भंग हो। बीती रात परवेज इलाही के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। रात में ही असेंबली खोलकर इसे स्वीकार किया गया। परवेज इलाही भी चाहते हैं कि किसी तरह से असेंबली बच जाए। लेकिन वो जानते हैं कि इमरान खान की लोकप्रियता इतनी ज़्यादा है कि इस मौक़े पर अगर मैं दूसरी तरफ़ गया तो मेरी सियासत ही ख़तरे में पड़ जाएगी।"
अगर असेंबली भंग हो गईं तो पाकिस्तान में बड़ा राजनीतिक संकट पैदा हो जाएगा, क्योंकि 66 प्रतिशत सीटें फिर खाली हो जाएंगी। फिर संघीय सरकार अनिश्चितकाल तक चुनाव नहीं टाल सकती है। पंजाब के गवर्नर ने अब 21 दिसंबर यानी बुधवार को असेंबली का सत्र बुलाया है। हालांकि पंजाब असेंबली के स्पीकर ने गवर्नर के इस आदेश को ग़ैर क़ानूनी क़रार दे दिया है।
सैयद अतहर अब्बास कहते हैं, "अगर असेंबली टूटेगी तो चुनाव होंगे और केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि चुनाव हों। पाकिस्तान में चुनाव भारत से अलग होते हैं, यहां केंद्र और राज्यों के लिए चुनाव एक साथ होते हैं। अब अगर असेंबलू टूटने के बाद चुनाव हो गए तो केंद्रीय सत्ता चला रहे गठबंधन को दिक्कत हो सकती है।
क्या इलाही और इमरान के बीच सबकुछ ठीक है?
इमरान खान और उनके गठबंधन सहयोगी पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज इलाही के बीच दूरी आने के संकेत भी मिल रहे हैं। इमरान खान ने जब असेंबली भंग करने की घोषणा की थी तब इलाही उनके बगल में बैठे थे।
इमरान खान की 23 दिसंबर को असेंबली भंग करने की घोषणा की बैठक के बाद जब परवेज इलाही बाहर जा रहे थे तब पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा था, "हम सभी बातों से सहमत हैं और आज भी पीटीआई के गठबंधन सहयोगी हैं।"
इलाही ने पत्रकारों के एक सवाल पर कहा था कि अगले चुनाव में सीटों के बंटवारे के लोकर भी उनकी पीटीआई से बात शुरू हो चुकी है।
लेकिन अब इलाही के मीडिया में आ रहे बयानों से संकेत मिल रहा है कि उनके और इमरान खान के बीच कुछ ना कुछ कड़वाहट है।
लेकिन अब एक टीवी इंटरव्यू में परवेज इलाही ने पूर्व सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा पर निशाना साधने को लेकर इमरान खान और पीटीआई की आलोचना की है।
इंटरव्यू में इलाही ने कहा है, "उस वक़्त बहुत पुरा लगा जब इमरान खान ने नाइंसाफ़ी की कि हमें साथ बिठाकर और मेरे सामने क़मर बाजवा साहब की आलोचना की।"
इलाही ने कहा कि क़मर जावेद बाजवा के उन पर, इमरान खान पर और पीटीआई पर बहुत अहसान हैं। उन्होंने कहा, "बाजवा साहन ने पीटीआई को उस वक़्त उठाया जब ये कुछ भी नहीं थी और बाद में उनकी सरकार की भी मदद की।"
वहीं लाहौर में विदेशी पत्रकारों से बात करते हुए इमरान खान ने परवाज़ इलाही की इस टिप्पणी को उनकी निजी राय बताया।
इमरान खान ने भी कहा कि "परवेज इलाही ने पूर्व सेना प्रमुख से कोई फ़ायदा उठाया होगा जो उनकी सोच में ज़ाहिर हो रहा है।"
इमरान खान ने ये भी कहा कि परवेज इलाही और उनकी पार्टी की अपनी विचारधारा है उनसे अलग भी हो सकीत है।
वहीं पंजबा असेंबली को भंग करने के बारे में इमरान खान का कहना था कि चौधरी परवेज इलाही लिखकर दे चुके हैं कि उनके कहने पर वो असेंबली तोड़ने की समरी भिजवा देंगे।
इस सियासी ड्रामे के इमरान खान के लिए क्या मायने हैं?
इमरान खान का इस समय एक ही सबसे बड़ा मक़सद है- देश में चुनाव कराना।
इसकी वजह समझाते हुए सैयद अतहरअब्बास कहते हैं, "इमरान खान राज्यों में चुनाव कराकर केंद्र सरकार पर चुनाव कराने का दबाव बना सकते हैं। इमरान खान के लिए ये व्यक्तिगत तौर पर भी इसलिए बहुत मायने रखता है कि उनके ख़िलाफ़ कई मुक़दमे चल रहे हैं। इसमें आतंकवाद, मानहानि और अलग-अलग तरह के मामले हैं। इमरान खान ये जानते हैं कि उन्हें राजनीतिक रूप से अयोग्य करार देने की पूरी तैयारी कर ली गई है। ऐसा होने से पहले अगर वो असेंबली को तोड़ने और चुनाव कराने में कामयाब हो जाते हैं तो उन्हें राहत मिलेगी।"
लेकिन अगर पंजाब असेंबली भंग नहीं हुई तो क्या होगा? राजनीतिक विश्लेषक सैयद अतहर अब्बास कहते हैं कि ऐसी स्थिति में इमरान खान गठबंधन सहयोगियों से अलग हो जाएंगे और फिर अकेले ही चुनावी मैदान में जाएंगे।
वो कहते हैं, "अगर पंजाब असेंबली नहीं भी टूटती है तब भी इमरान खान के लिए कुछ राहत ये हो सकती है कि फिर उन्हें चुनाव में अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ नहीं जाना पड़ेगा। असेंबली टूटने की स्थिति में उन्हें गठबंधन सहयोगी के साथ सीटों को लेकर समझौता करना होगा।"