शुमाएला जाफ़री, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि शुक्रवार 23 दिसंबर को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांतों की असेंबलियों को भंग कर दिया जाएगा। इस घोषणा से पहले इमरान ख़ान ने अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों और नेताओं, गठबंधन के साथियों से कई दौर की बातचीत की थी।
तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान ख़ान ने ये भी कहा है कि पार्टी नेशनल असेंबली से 112 सांसदों के इस्तीफ़े को मंज़ूर करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है ताकि नए सिरे से चुनाव कराने का रस्ता साफ़ हो सके। 11 सांसदों के इस्तीफ़े पहले ही मंज़ूर किए जा चुके हैं।
इस साल अप्रैल में अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर होना पड़ा था, जिसके बाद वो लगातार फिर चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं।
वीडियो लिंक के ज़रिए लाहौर में हो रही एक रैली को संबोधित करते हुए इमरान ख़ान ने दावा किया कि मौजूदा सरकार के पास देश को मुश्किलों से बाहर निकालने का कोई रोडमैप नहीं है।
इस मौक़े पर उनके साथ पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के मुख्यमंत्री भी थे, जहाँ पीटीआई के नेतृत्व में गठबंधन सरकारें हैं।
उन्होंने कहा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार काफ़ी कम हो गया है और पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) के पास न तो एक्सपोर्ट के ज़रिए, न तो विदेशी निवेश के ज़रिए और न ही टैक्स जमा कर इसे बढ़ाने का कोई रास्ता है।
उन्होंने कहा, "हम लोग रावलपिंडी में धरना प्रदर्शन कर सकते थे या फिर इस्लामाबाद तक मार्च निकाल सकते थे लेकिन हमले वो रास्ता अपनाया है जो क़ानून का और संविधान का है और हमने दो प्रांतों में असेंलियां भंग करने का और नेशनल असेंबली में पार्टी के 123 सांसदों के इस्तीफ़े लेने का फ़ैसला किया।"
इमरान ख़ान ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार भ्रष्ट है और वो चुनाव करवाने से डर रही है क्योंकि उन्हें पता है कि जनता उन्हें ख़ारिज कर देगी।
इमरान ख़ान ने मौजूदा सरकार को 'लुटेरी और भ्रष्ट' कहा और चेतावनी दी कि दो प्रांतीय असेंबलियों को भंग करने के बाद संविधान के अनुसार 90 दिनों के भीतर ही चुनाव कराए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा- लेकिन सरकार चुनावों में देरी करने की पूरी कशिश करेगी, मैं अपने विरोधियों को ऐसा करने नहीं दूंगा।
इमरान ख़ान के विरोधियों का क्या है कहना?
इमरान ख़ान के दो प्रांतीय सरकारों के भंग करने की घोषणा के बाद देश की सूचना मंत्री मरियम औरंगज़ेब ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
उन्होंने इमरान ख़ान पर बिना कारण हंगामा खड़ा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया और कहा कि अगर उन्हें प्रांतीय असेंबलियां भंग ही करनी है तो वो 23 दिसंबर का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रांतीय असेंबलियाँ भंग करने के लिए इमरान ख़ान को तारीख़ नहीं हिम्मत चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि वो प्रांतीय असेंबलियां भंग नहीं कर सकते क्योंकि इनके ज़रिए अपने भ्रष्टाचार को छिपाने में उन्हें मदद मिल रही है।
वहीं गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने भी इमरान ख़ान के सप्ताह भर का इंतज़ार करने के फ़ैसले पर सवाल उठाए और कहा कि इमरान ख़ान की पार्टी के मुख्यमंत्रियों को पहले ही इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था।
ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "पार्टी के यू-टर्न के इतिहास को देखें तो पीटीआई ने आने वाले सप्ताह में प्रांतीय असेंबलियों को भंग करने की जो बात की है, वो उससे पीछे हट जाएगी।"
उन्होंने ये भी दावा किया कि पीटीआई, गठबंधन की उसकी सहयोगी पार्टियां और पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही के बीच इस मामले में सहमति नहीं है।
उन्होंने कहा कि परवेज़ इलाही प्रांतीय असेंबली भंग करने के विचार से सहमत नहीं है इसलिए इन्हें भंग करने की बात करने में इमरान ख़ान को देरी हुई।
सरकार में मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता क़मर ज़मां कायरा ने भी इस घोषणा में देरी को लेकर सवाल किया और कहा कि इमरान ख़ान अभी भी किसी तरह के बीच के रास्ते की उम्मीद में हैं और बदनामी से बचना चाहते हैं।
जानकारों की राय, जल्द चुनाव चाहते हैं इमरान ख़ान
मीडिया से बात कर रहे कई जानकार कहते हैं कि एक सप्ताह का समय देकर इमरान ख़ान ने असल में गेंद सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान के पाले में डाल दी है और उन्हें उम्मीद है कि चीज़ें अलग रुख़ लेंगी और प्रांतीय असेंबलियों को भंग नहीं करना पड़ेगा।
इमरान ख़ान जल्द चुनावों की मांग कर रहे हैं। वहीं सरकार का कहना है कि वो अपना कार्यकाल पूरा करेगी और चुनाव तय समय के मुताबिक़ अगले साल अक्तूबर में होंगे।
जियो न्यूज़ के एंकर शाहज़ेब ख़ानज़ादा का मानना है कि एक सप्ताह में असेंबली भंग करने की धमकी देकर इमरान ख़ान सरकार से कह रहे हैं कि वो उन्हें ऐसा करने से रोक ले।
वहीं राजनीतिक विश्लेषक सुहैल वारीच कहते हैं- इमरान ख़ान समझते हैं कि उन्हें चारों तरफ से घेरा जा रहा है। उनके ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज कराए गए हैं और उन्हें डर है कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करने की साज़िश रची जा रही है। ऐसे में उनके अनुसार ये आक्रामक रवैया बचाव का तरीक़ा है।
सुहैल कहते हैं- देश आज मुश्किल परिस्थिति से गुज़र रहा है और अर्थव्यवस्था के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं और लोग सरकार से नाराज़ हैं। ऐसे में अगर इमरान ख़ान दो प्रांतीय असेंबलियां भंग करवा कर और नेशनल असेंबली से अपने सांसदों का इस्तीफ़ा करा कर देश की राजनीतिक व्यवस्था से खुद को दूर कर लेते हैं तो सरकार के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।
राजनीतिक समीक्षक इस बात पर सहमत हैं कि फ़िलहाल सरकार चक्की के दो पाटों में फँसी दिखती है। मौजूदा स्थिति में उनके लिए सत्ता में लौटने का रास्ता आसान नहीं होगा इसलिए वो जितना हो सके सरकार इस मामले को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रही है।
सरकार के पास क्या विकल्प हैं?
संविधान मामलों के जानकार कहते हैं कि मुख्यमंत्रियों की सलाह पर गवर्नर के लिए प्रांतीय असेंबली को भंग करना बाध्यता हो जाएगी।
इस मामले में उनके पास देरी करने का विकल्प भी नहीं है क्योंकि अगर वो इस पर अमल नहीं करते तो 48 घंटों के बाद असेंबली स्वत: ही भंग मान ली जाएगी।
सरकार भले ही ये दिखाने की कोशिश करे कि इससे फ़र्क नहीं पड़ेगा, लेकिन दो प्रांतीय असेंबलियों के भंग होने और नेशनल असेंबली के 123 सांसदों के इस्तीफ़े के बाद एक संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा। इसका मतलब होगा कि देश की संसदीय व्यवस्था में 66 फ़ीसदी सीटें ख़ाली पड़ी हैं।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) ने नेता और प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ इस मामले में क़ानूनी रास्ते की तलाश में कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। लेकिन क्या इस संकट को टालने का कोई रास्ता क़ानून में है?
संविधान मामलों के जानकार डॉक्टर हसन असकरी रिज़वी कहते हैं कि असेंबलियां भंग करने को और टालने के दो रास्ते हो सकते हैं।
पहला, इमरान ख़ान की पार्टी के मुख्यमंत्रियों के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाना। लेकिन ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में साफ़ तौर पर पीटीआई बहुमत में है तो ये विकल्प वहाँ काम नहीं करेगा। लेकिन पंजाब में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ायद-ए-आज़म के साथ गठबंधन में पार्टी सत्ता में है और यहाँ इस विकल्प को अपनाया जा सकता है। अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, तो असेंबलियों को भंग करने को एक और सप्ताह के लिए टाला जा सकेगा।
पीडीएम के पास संख्याबल नहीं है और जिस तरह से फ्लोर क्रॉसिंग या दलबदल किया गया कोर्ट ने उसे दंडनीय बनाते हुए उस पर प्रतिबंध लगाया है।
तो पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही को पद से हटाने के लिए पर्याप्त संख्या मिल सके, इसकी उम्मीद नहीं है।
दूसरा विकल्प ये है कि गवर्नर मुख्यमंत्रियों को ये सलाह दें कि वो विश्वास मत ले कर आएँ। हालांकि डॉक्टर हसन असकरी मानते हैं कि अगर इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने गवर्नर को अलेंबली भंग करने को कहा तो फिर इसे रोका नहीं जा सकेगा।
डॉक्टर हसन असकरी कहते हैं कि केंद्र सरकार प्रांतीय असेंबलियों को भंग करने के मामले को लेकर कोर्ट का रुख़ कर सकती है। इस तरह से उन्हें इस मामले को कुछ वक़्त के लिए टालने में मदद मिलेगी।
अगर इमरान ख़ान राजनीतिक व्यवस्था से ख़ुद को दूर कर लेते हैं तो सरकार की विश्वसनीयता और वैधता पर सवाल खड़े होंगे। इससे एक तरह की अनिश्चितता पैदा होगी और मौजूदा वक़्त में पाकिस्तान की माली हालत ऐसी नहीं कि वो इसका जोखिम ले सके।
सरकार अब तक महंगाई से जूझ रहे अपने नागरिकों को कुछ राहत दे नहीं पाई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कड़ी शर्तों के बीच सरकार के पास बहुत कुछ करने की गुंज़ाइश नहीं बनती और ये भी हो सकता है कि वो आने वाले वक़्त में मुश्किल फ़ैसले ले।
क्या सेना कर सकती है हस्तक्षेप?
इमरान ख़ान ने अपने भाषण के एक बड़े हिस्से में पूर्व आर्मी प्रमुख रिटायर्ड जनरल क़मर जावेद बाजवा पर कई गंभीर आरोप लगाए।
इमरान ने बाजवा पर धोखा देने, उनके साथ डबल गेम खेलने और उनके भ्रष्ट विरोधियों के ख़िलाफ़ क़दम न उठाने का आरोप लगाया।
जानकार मानते हैं कि ऐसा करके वो सेना को संदेश दे रहे हैं और उन्हें कह रहे हें कि उनकी सरकार के गिरने का कारण सेना है और सेना के कारण ही देश मुश्किलों में फँस गया है।
डॉक्टर हसन असकरी रिज़वी कहते हैं कि नए आर्मी प्रमुख अभी स्थिति का आकलन कर रहे हैं। सेना में अभी चेंज ऑफ़ कमांड हो रहा है और नए सेना प्रमुख इसमें व्यस्त हैं। लेकिन अस्थिरता की आशंका होना भी चिंता का विषय है।
शाहज़ेब ख़ानज़ादा जैसे पत्रकार मानते हैं कि इमरान ख़ान को पता है कि सैन्य प्रतिष्ठान कैसे काम करता है।
ख़ासकर उन लोगों के मामले में जो उनके विरोधी हैं क्योंकि वो ख़ुद कभी इस गुट का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में सामने से हमला करने की उनकी रणनीति उनके पक्ष में है क्योंकि इससे वो अपने विरोधियों पर दवाब बनाए रख सकते हैं।
डॉक्टर हसन असकरी कहते हैं कि अगर स्थिति और बिगड़ी तो इस बात की संभावना बन सकती है कि महीने भर बाद सेना चुपचाप मामले में हस्तक्षेप करे और जल्द से जल्द चुनाव करवाने के लिए दवाब डाले।
लेकिन फिर चुनौती ये है कि इमरान ख़ान के साथ भी सेना का अनुभव कुछ बढ़िया नहीं रहा है और उन्हें लगता है कि इमरान ख़ान पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है।
वो कहते हैं, "इस वक़्त पाकिस्तान की राजनीति को समझना तो मुश्किल है ही, आने वाले सप्ताह में क्या होगा इसका भी आकलन लगा पाना बेहद मुश्किल है।"
Edited by : Nrapendra Gupta