नवीन नेगी (बीबीसी संवाददाता)
भारत की राजधानी दिल्ली सहित आसपास के इलाकों में प्रदूषण अपने जानलेवा स्तर पर पहुंच चुका है। रविवार को दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता (एयर क्वालिटी/एक्यूआई) 1,000 के आंकड़ों को भी पार कर गई। दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी पहले से ही लागू है लेकिन हालात दिन गुज़रने के साथ और बदतर होते जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए प्रदूषण के हालात पर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा सरकार के संबंधित अधिकारियों के साथ एक अहम बैठक की। बैठक में तय किया गया कि कैबिनेट सचिव लगातार प्रदूषण के हालात पर नज़र रखेंगे। साथ ही पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के मुख्य सचिव हर रोज़ अपने-अपने राज्यों में प्रदूषण के हालात को मॉनिटर करेंगे।
इसके साथ ही दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम और फ़रीदाबाद में भी 4 और 5 नवंबर के लिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं। दिल्ली में पहले से ही स्कूलों को बंद करने के आदेश दिए जा चुके थे।
इन सबके बीच सोमवार से दिल्ली में ऑड-ईवन स्कीम भी शुरू हो गई है। इस योजना के तहत दिल्ली में सोमवार, 4 नवंबर से 15 नवंबर तक ऑड तारीख वाले दिन सिर्फ ऑड नंबर की गाड़ियां और ईवन तारीख के दिन ईवन नंबर की गाड़ियां ही सड़कों पर उतर सकेंगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लोगों से इस योजना में सहयोग करने की अपील की है।
ऑड-ईवन योजना को लेकर विशेषज्ञों की मिली-जुली राय है। एक अहम सवाल ये है कि हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति में ये योजना कितनी कारगर हो पाएगी? यही समझने के लिए बीबीसी ने पर्यावरण मामलों के जानकार विवेक चट्टोपाध्याय और दिनेश मोहन से बात की।
दिल्ली में अभी ऐसी स्थिति है कि जो भी क़दम उठाए जाएं, वो वायु प्रदूषण को क़ाबू करने में कुछ-न-कुछ योगदान ज़रूर देंगे। ऑड-ईवन भी एक ऐसा ही क़दम है। जब भी प्रदूषण गंभीर होता है, इसे लागू किया जाना चाहिए। प्रदूषण कम करने वाले एक्शन प्लान में भी इसका ज़िक्र है।
ऑड-ईवन से फ़ायदा ये होगा कि सड़क पर गाड़ियों की संख्या कम होगी। गाड़ियों की संख्या कम होगी तो ट्रैफ़िक की स्पीड बढ़ेगी। इससे गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन कम होगा। दिल्ली में ट्रैफ़िक जाम की समस्या लगातार रहती है, ख़ासकर पीक ऑवर्स में। ऐसे में गाड़ियों से होने प्रदूषण में कहीं-न-कहीं फ़ायदा ज़रूर होगा।
कोहरे का असर न केवल रेल यातायात पर पड़ा है बल्कि लोगों का स्वास्थ्य भी इससे अछूता नहीं है।
ऑड-ईवन को प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर ही लागू किया जाता है। सामान्य दिनों में इसे लागू करने करने पर मुमकिन है कि लोग इससे बचने की तरकीबें निकाल लें, जैसे कि 2 गाड़ियां रखना। ऐसे में वाहनों की संख्या बढ़ने का डर रहता है।
ऑड-ईवन योजना बाहर के देशों में भी लागू की जाती है और एक निश्चित अवधि के लिए ही लागू की जाती है। जहां तक गाड़ियों की संख्या कम करने का विचार है तो मेरे विचार से पार्किंग शुल्क 4-5 गुना बढ़ा दिया जाना चाहिए। हालांकि इन सभी उपायों का एक ही मक़सद है- वाहनों की संख्या कम करना और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देना। अगर दोपहिया वाहनों पर भी ऑड-ईवन लागू किया जाता तो और अच्छा होता।
आईआईटी, कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार सर्दियों के मौसम में ट्रैफ़िक से लगभग 25-26% वायु प्रदूषण होता है। इस लिहाज़ से देखा जाए तो यह बहुत बड़ा हिस्सा नहीं है। इसके अलावा कई दूसरे स्रोतों से भी वायु प्रदूषण होता है, जैसे कि जैविक कचरा जलाने, धूल से और फ़ैक्टरियों से निकलने वाले धुएं से। मेरा मानना है कि प्रदूषण पर तभी क़ाबू पाया जा सकेगा, जब हर इसके हर स्रोत को रोकने के लिए एकसाथ उपाय किए जाएं। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हम किसी भी क़दम को कम या ज़्यादा नहीं आंक सकते।
हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि गाड़ियों से निकलने वाला धुआं बहुत ज़हरीला होता है। इसके कण सामान्य धूल कणों से बहुत छोटे होते हैं और बड़ी आसानी से हमारे शरीर में चले जाते हैं, इसलिए वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर क़ाबू पाना बेहद महत्वपूर्ण है।
प्रदूषण से राहत पाने के लिए ऑड-ईवन के अलावा औद्योगिक और जैविक कचरा जलाने के नियमों का सख़्ती से पालन किया जाना ज़रूरी है। इसके साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाना भी उतना ही ज़रूरी है। ये सभी चीज़ें अचानक नहीं की जा सकतीं। इसके लिए पूरे साल उपाय किया जाना होगा।
मेरा मानना है कि ऑड-ईवन योजना से प्रदूषण के स्तर में कोई ख़ास कमी नहीं आती है। कोई भी अध्ययन ये नहीं कहता कि वाहनों से 25-26% से ज़्यादा प्रदूषण होता है, वो भी सभी वाहनों को मिलाकर। अगर हम मान लें कि इसे ज़्यादा से ज़्यादा 30% भी मान लें तो इसमें कारों से होने वाला प्रदूषण 10% के लगभग होगा। अब अगर हम कारों से होने वाले प्रदूषण को आधा करने की बात कर रहे हैं तो यह घटकर 5% हुआ।
जब निजी गाड़ियों पर लगाम लगाई जाती है तो ऑटो और बाक़ी वाहन ज़्यादा संख्या में सड़क पर उतरते हैं यानी ज़मीनी सच्चाई देखें तो ऑड-ईवन से 2-3% से ज़्यादा प्रदूषण कम नहीं होगा। इस 2-3% प्रदूषण को मापना बेहद मुश्किल है, इसलिए ऑड-ईवन एक निष्प्रभावी योजना है।
प्रदूषण 1 या 2 साल में कम नहीं होगा। जिन देशों में भी प्रदूषण कम हुआ है, वहां की सरकारों ने इसके लिए लंबे वक़्त तक और लगातार काम किया है, इस पर पैसे ख़र्च किए हैं। मेरा मानना है कि अगर सरकार वाक़ई प्रदूषण कम करना चाहती है तो उसे इस क्षेत्र में रिसर्च को बढ़ावा देना चाहिए, साथ ही इसे वक़्त देना होगा।